alvida jumma mubarak
माहे रमजानुल मुबारक का आखिरी जुमा गोया पूरे माहे सियाम का इख़्तिताम ‘ और उसके रुखसत होने की ख़बर देता है ! इसी तअस्सुर की बिना पर मुसलमानो में आखिरी जुम्मे को जुमअतुल विदाअ या अलविदा जुमा ( Alvida Jumaa Mubarak ) कहा जाने लगा
और ऐसा मालूम हाेता है कि इस उर्फ का माखूज हज्जतुल विदाअ है ! तो हुजूरे अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ज़िन्दगी का आखिरी हज था ! पस रमजान का आखिरी जुमा दर हक़ीक़त माहे मुबारक के रुखसत होने का पैगाम् और इखूतिताम की निशानी है ।
जिन ‘ ‘ मुसलमानो’ का माहे सियाम की तकमील और मुक़्द्दस जिम्मेदारियाे’ से औहदा बरआ होने की
ख़ुशी है ! वह आखि री जुमें को’ तकमील माहे सियाम को निशानी समझ कर खुश हौते है !
Alvida Jumaa Mubarak
और उनके कूलूब जजूबाते तशक्कुर से लबरैज होते हैं । वह आखिरी जुमें को ऐसे ही खुश हौते है जैसै तवील
मसाफ़त तय करके मंजिल पर पहुचने वाले मुसाफिर काे खुशी होती ‘है ! मगर यह बात सिर्फ जजूबात व कैफियत की हद तक महदूद है ।
इस दिन को त्यौहार बनाना शरीअते इस्लामिया मे इजाफा करने के बराबर है ! फिर कुछ अल्लाह के मखसूस बन्दे ऐसे भी होते हैं कि वह आखिरी जुमें को ‘ रमजान की जुदाई का निशानी समझकर दिलगीर और रंजीदा होते है ।
वह महसूस करते हैं कि रोजा ‘और तरावीह की बरक़त,सहर व इफ्तार की फ़ज़ीलते तिलावते कुरआन की रूह परवर आवाज़ अब खत्म हो रही हैं ! और वह इस पर गमजदा है और अल्लाह की नजर में यह दोनों मुतजाद क़ैफ़ीयते काबिले क़द्र और मुस्तहिक़्क़ अज़्र व सवाब हैं ।
रमजान का आखिरी जुमा मुसलमानों को यह पैगाम भी देता है ! एतिबार खात्मा का हैं यानी जो आखिरी साअतें बाकी रह गई हैं ! उन्हे ग़नीमत जानकर उनकी क्रद्र की जाए और अगर गफलत हुई है ! तो उसकी तलाफ़ी के लिए इन आखिरी साअतों से फायदा उठाया जाए !
Alvida Jumaa Mubarak Stauts
01. अपने नसीब को कभी बुरा मत कहो कि यह तुम्हारा नसीब ही तो है जो हम मोहम्मद सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की उम्मत में पैदा हुए ! अलविदा जुम्मा मुबारक – Alvida Jumaa Mubarak
02. जिसका दिल खुदा के खौफ से खाली हो उसका घर कभी अल्लाह की रहमत से नहीं भर सकता जो नसीब में है वह चलकर आयेगा जो नसीब में नहीं है वह आकर भी चला जाएगा Alvida Jumaa Mubarak
03. अपने रब पर हमेशा भरोसा रखना क्योंकि अल्लाह वह नहीं देता जो हमें अच्छा लगता है बल्कि अल्लाह वह देता है जो हमारे लिए अच्छा होता है Alvida Jumaa Mubarak
04. यू बरसे आज तुझ पर लुत्फो करम की बारिश , की बारगाह ए इलाही से तेरी दुआ रद्द ना हो
05. किसी से नेकी करते वक्त बदले की उम्मीद ना रखो क्योंकि नेकी का सिला अल्लाह देता है इंसान नहीं
07. सिर्फ एहसास ए नदामत एक सजदा और चश्मे तर ऐ खुदा कितना आसान है मनाना तुझको
08. वही अंधेरों को नूर देता है
जिक्र उसका दिल को सुरूर देता है
उसके दर से जो भी मांगो
वो खुदा जरूर देता है
09. हम चांद पर कदम रखने वालों को क्यों माने हम तो उनकी उम्मत में से हैं जिन्होंने जमीन पर रहकर अपनी ऊँगली के इशारे से चांद के दो टुकड़े कर दिए
10 तू अगर मुझे नवाजता है तो यह तेरा करम है यार रब
वरना तेरी रहमतों के काबिल मेरी बंदगी नहीं
Alvida Jumaa Mubarak Stauts
11. हम आग से डरते हैं कि वह जला देगी हम पानी से डरते हैं कि वह डुबो देगा तूफान से डरते हैं कि वह तबाह कर देगा लेकिन हम अल्लाह से क्यों नहीं डरते जिसने इन सब को पैदा किया
12. या अल्लाह हमें ऐसी माफी अता कर जिसके बाद कोई गुनाह ना हो
13. फिर नया दिन नई सुबह बहुत सी उम्मीद है अल्लाह खैर की खबरें और मोहब्बत के उजाले रखना
14. समंदर बहुत गहरा है मगर तुम उतना ही पानी ले सकते हो जितना तुम्हारे हाथ में आता है
कुरान पढ़ो तो दिल खिल जाए नमाज पढ़ो तो चेहरा रोशन हो जाए कितनी दिलकश है रसूले खुदा की सुन्नत की अमल करो तो जिंदगी संवर जाए
15. बेजुबानो को जब वह जुबान देता है ! पढ़ने को फिर वह कुरान देता है बख्शने पर आ जाए जब उम्मत के गुनाहों को तोहफे में फिर वह रमजान देता है ! अलविदा जुमा मुबारक
16. ए रमजान तेरी रुखसत को सलाम जाते हाथ जाते आसमान को भी रुला दिया अलविदा रमजान
17. सोचो जरा क्या पाया हमने
क्या अपने रब को मनाया हमने
क्या जाने कभी नसीब यह माह हो ना हो
रब की रहमत का क्या हक पाया हमने – Alvida Jumam Mubarak
18. या अल्लाह हमने जो रोज रखें जो इबादत है कि और जो नमाज पढ़ी या अल्लाह कुबूल फरमा और जो हमसे गलतियां हुई या अल्लाह उन्हें दरगुजार कर देना ! और हम सब को माफ कर देना हम सबकी कयामत के दिन मगफिरत फरमाना आमीन
माहे मुबारक अल विदाअ – Mahe Mubarak Alvidaa
हो वस्फ़ मुझसे क्या बयां, माहे मुबारक अल विदाअ
मद्दाह तेरा है क़ुरआं माहे मुबारक अल विदाअ
इस्लाम के रूहें रवां माहे मुबारक अल विदाअ
तुझ पर निछावर जिस्म’व जां माहे मुबारक अल विदाअ
रहमत ही रहमत थी अयां माहे मुबारक अल विदाअ
अर्ज ईं जमीं ता आसमा, माहे मुबारक अल विदाअ
ऐ मुर्ग़ ज़ारे कुन फकां माहे मुबारक अल विदाअ
दुनिया में था जन्नत निशां, माहे मुबारक अल विदाअ
ऐ हाफिज ‘हर हिफ़्ज़ ख्वां माहे मुबारक अल विदाअ ‘ ‘
क्या हों तरवीहे’ ‘बयां माहे मुबारक अल विदाअ
वो लैलतिल कद्र ‘अब-कहाँ , माहे मुबारक अल विदाअ
नाज़िल हों जिसमें कूदसियां माहे मुबारक अल विदाअ
उन पे भी था तू मेहरबां, माहे मुबारक अल विदाअ
हालत थी जिनकी ख़स्ता जां माहे मुबारक अल विदाअ
था किस कदर तू दुरफशा , माहे मुबारक अल विदाअ
तुझ से थीं शब बेदारिया , माहे मुबारक अल विदाअ
कितनी थीं तुझ में” खूबियां, माहे मुबारक अल विदाअ .
गुलजार दिन, शब गुलिस्ता, माहे मुबारक अल विदाअ
था ज़िक़्रे हक विर्दे ज़बां, माहे मुबारक अल विदाअ
हर हर दहन था गुलं फ़शां , माहे मुबारक अल विदाअ
रुखसत में तेरी अल अमां, माहे मुबारक अल विदाअ
मय ख़्वार है सब नीम जां , माहे मुबारक अल विदाअ
आंखों से आंसू हैं रवां , माहे मुबारक अल विदाअ
रोता है हर पीरो जवां, माहे मुबारक अल विदाअ
क्यों हो न फिर गिरियां कुनां , माहे मुबारक अल विदाअ
कासिर है असगर की ज़बां , माहे मुबारक अल विदाअ
nazm- Asgar Bahraich
वस्फ़ – तारीफ
मद्दाह – तारीफ़ करने वाला
अयाँ – ज़ाहिर
क़ुदसियां – फ़रिश्ते
ख़स्ता जां – परेशान हाल
गुल फ़शां – फूल बखेरना
नीम जां – अधमरा
पीरो जां – बूढ़े जवान