Friday, April 26, 2024
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तरावीह का बयान – तरावीह की मुकम्मल जानकारी

 तरावीह का बयान – 1 – Taravih Ka Bayan

सवाल
तरावीह सुन्नत है या नफ़्ल,
जवाब
तरावीह मर्द हो या औरत सबके लिए सुन्नते मुअक्किदा है इसका छोड़ना जाइज़ नहीं,
 बहारे शरीअत, वग़ैरह)
सवाल
तरावीह की कितनी रकअतें हैं,
जवाब
तरावीह की बीस (20) रकअतें हैं,
सवाल
बीस (20) रकअत तरावीह में क्या हिक्मत है,
जवाब
बीस (20) रकअत तरावीह में हिक्मत ये है के सुन्नतों से फ़राइज़ और वाजिबात की तक्मील होती है और सुबह से शाम तक फ़र्ज़ व वाजिब कुल बीस (20) रकअतें हैं,
तो मुनासिब हुआ के तरावीह भी बीस (20) रकअतें हों ताके मुकम्मल करने वाली सुन्नतों की रकआत और जिनकी तक्मील होती है यानी फ़र्ज़ व वाजिब की रकआत की तअदाद बराबर हो जाएं,
सवाल
तरावीह की बीस (20) रकअतें किस तरह पढ़ी जाएं,
जवाब
बीस रकअतें दस (10) सलाम से पढ़ी जाएं यानी हर दो (2) रकअत पर सलाम फेरे और हर तरवीहा यानी चार (4) रकअत पर इतनी देर बैठना मुस्तहब है के जितनी देर में चार (4) रकअतें पढ़ी हैं,
 दुर्रेमुख़्तार,बहारे शरीअत)
सवाल
तरावीह की नीयत किस तरह की जाए,
जवाब
नियत की मेंने दो (2) रकअत नमाज़ तरावीह की सुन्नत सुन्नत रसूलल्लाह की अल्लाह तआला के लिए (मुक़तदी इतना और कहे, पीछे इस इमाम के) मुंह मेरा तरफ़ कअबा शरीफ़ के अल्लाहू अकबर,
सवाल
तरवीहा पर (यानी हर चार रकअत के बाद) बैठने की हालत में चुपका बैठा रहे या कुछ पढ़े,
जवाब
इख़्तियार है चाहे चुपका बैठा रहे चाहे कल्मा या दुरूद शरीफ़ पढ़े और आम तौर पर ये दुआ पढ़ी जाती है
سبحان ذى الملك والملكوت سبحان ذى العزة والعظمته والهيبته والقدرة والكبرياء والجبروت سبحان الملك الحى الذى لاينام ولايموت سبوح قدوس ربنا و رب الملائكة والروح،،،

तरावीह की दुआ – Taravih Ki Dua

सब्हाना ज़िल मुल्की वल मलाकूती सुब्हाना ज़िल इज़्ज़ती वल अज़मती वल हैबती वल क़ुदरती वल किब्रियाई वल जबारूती सुब्हानल मलिकिल हय्यिल्लज़ी ला यनामू वला यमूतू सुब्बूहुन क़ुद्दूसुन रब्बुना व रब्बुल मलाईकती वर्रूह,
सवाल
तरवीह जमाअत से पढ़ना कैसा है,
जवाब
तरवीह जमाअत से पढ़ना सुन्नते किफ़ाया है यानी अगर मस्जिद में तरावीह की जमाअत न हुई तो मुहल्ले के सब लोग गुनाहगार हुए और अगर कुछ लोगों ने मस्जिद में जमाअत से पढ़ली तो सब बरीउल ज़िम्मा हो गए,
 आलम गीरी,बहारे शरीअत)
सवाल
तरवीह में क़ुरआन मजीद ख़त्म करना कैसा है,
जवाब
पूरे महीने की तरावीह में एक (1) बार क़ुरआन मजीद ख़त्म करना सुन्नते मुअक्किदा है और दो (2) बार ख़त्म करना अफ़ज़ल है और तीन (3) बार ख़त्म करना मज़ीद फ़ज़ीलत रखता है बशर्ते ये के मुक़तदियों को तकलीफ़ ना हो मगर एक (1) बार ख़त्म करने में मुक़तदियों की तकलीफ़ का लिहाज़ नहीं किया जाएगा,
 बहारे शरीअत, दुर्रेमुख़्तार)
सवाल
बिला उज़्र बैठकर तरावीह पढ़ना कैसा है,
जवाब
बिला उज़्र बैठकर तरावीह पढ़ना मकरूह है बल्के बअज़ फ़ुक़हा ए किराम के नज़दीक तो नमाज़ होगी ही नहीं,
 बहारे शरीअत)
सवाल
बअज़ लोग शुरू रकअत से शरीक नहीं होते बल्के जब इमाम रुकू में जाने लगता है तो शरीक होते हैं उनके लिए क्या हुक्म है,
जवाब
ना जाइज़ है ऐसा हरगिज़ नहीं करना चाहिए के इसमें मुनाफ़िक़ीन से मुशाबहत पाई जाती है,
 ग़ुनियातुत्तालीबीन, बहारे शरीअत)
अनवारे शरीअत, उर्दू, सफ़ह 72/73/74)

*तरावीह का बयान क़िस्त 02* Tarvih Ka Bayan – 2

*20, रकअत पर सहाबा का इजमा है*
*﷽ اَلصَّــلٰوةُوَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَارَسُوْلَ اللّٰهﷺ*
हदीस शरीफ़,
हजरत अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने कहा के रसूले करीम अलैहिस्सलातू व तस्लीम ने फरमाया के
जो शख़्स सिदक़े दिल और एतेक़ादे सही के साथ रमज़ान में क़याम करे यानी तरावीह पढ़े तो उसके अगले गुनाह बख्श दिए जाते हैं,
 मुस्लिम शरीफ़, जिल्द 1, सफ़ह 259,
 मिश्कात शरीफ़, सफ़ह 114)
हदीस शरीफ़,
हजरत साइब बिन यज़ीद रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया हम सहाबा ए किराम हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह के ज़माना में 20 रकअत तरावीह और वित्र पढ़ते थे,
 बहक़ी जिल्द 2 सफ़ह 699)
इस हदीस शरीफ़ के बारे में मिरक़ात शरह मिश्कात जिल्द 2, सफ़ह 175, में है
इमाम नबवी ने ख़ुलासा में फ़रमाया
के इस रिवायत की अस्नाद (सनदें) सही है
हदीस शरीफ़,
हज़रत यज़ीद बिन रोमान रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया के हज़रते उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह के ज़माने में लोग 23 रकअत पढ़ते थे यानी 20 रकअत तरावीह और 3 रकअत वित्र,
 इमाम मालिक जिल्द 1 सफ़ह 115,
मलिकुल उल्मा हज़रत अल्लामा अलाउद्दीन अबू बकर बिन मसऊद कासानी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं के
मरवी है के हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने रमज़ान के महीना में सहाबा ए किराम को हज़रत उबी बिन कअब रज़िअल्लाहू तआला अन्ह पर जमा फरमाया तो वो रोज़ाना साहबा ए किराम को 20 रकअत पढ़ाते थे और उनमें से किसी ने मुख़ालिफ़त नहीं की तो 20 रकअत पर सहाबा का इज्मा हो गया
 बदायउस्सनाएअ जिल्द 1 सफ़ह 288)
और उम्दातुल क़ारी शरहे बुख़ारी जिल्द 5 सफ़ह 355 में है
अल्लामा इब्ने अब्दुलबर ने फ़रमाया के 20 रकअत तरावीह जम्हूरे उल्मा का क़ौल है,
उल्मा ए कूफा इमाम शाफ़ई और अक्सर फुक़्हा यही फ़रमाते हैं और यही सही है,
अबी बिन कअब से मनक़ूल है इसमें सहाबा का इख़्तिलाफ़ नहीं,
और अल्लामा इब्ने हजर ने फ़रमाया
सहाबा ए किराम का इस बात पर इज्मा है के तरावीह 20 रकअत हैं,
और मराक़ीउलफ़लाह शरह नूरुल ईज़ाह मैं है तरावीह 20 रकअत है इसलिए के इस पर सहाबा ए किराम का इज्मा है और मौलाना अब्दुल हई साहब फिरंगी महली उम्दातुर्रिआयह हाशियह शरह वक़ायह जिल्द 1 सफ़ह 175 में लिखते हैं,
हज़रत उमर हज़रत उस्मान और हज़रत अली रज़िअल्लाहू तआला अन्हुम के ज़माने में और उनके बाद भी सहाबा ए किराम का 20 रकअत तरावीह पर एहतेमाम साबित है,
इस मज़मून की हदीस को इमाम मालिक, इब्ने सअद, और इमाम बहक़ी वगैरहुम ने तख़रीज की हैं
और मौलाना अली क़ारी अलैहिर्रहमातुल्लाहुल बारी तहरीर फ़रमाते हैं
सहाबा ए किराम का इस बात पर इज्मा है के तरावीह 20 रकअत हैं,
मिरक़ात जिल्द 3, सफ़ह 194,
अहले हदीस यानी ग़ैर मुक़ल्लिद वहाबी जो 20 रकअत तरावीह का इन्कार करते हैं वो इन आहादीसे मुक़द्दसा और बुज़ुर्गों के अक़वाल से सबक़ हासिल करें और मुसलमानों को 8, रकअत तरावीह बताकर गुमराह करने की कोशिश ना करें वरना जहन्नम में जाने के लिए तैयार रहें,
*20, रकअत तरावीह पर जमहूर का क़ौल है और उसी पर अमल है*
*﷽ اَلصَّــلٰوةُوَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَارَسُوْلَ اللّٰهﷺ*
इमाम तिर्मिज़ी रहमातुल्लाही तआला अलैह फ़रमाते हैं,
कसीर उल्मा का इसी पर अमल है जो हज़रत मौला अली, हज़रत फ़ारूक़े आज़म और दीगर सहाबा रज़िअल्लाहू अन्हुम से 20. रकअत तरावीह मनक़ूल है,
और सुफ़ियान सूरी, इब्ने मुबारक और इमाम शाफ़ई रहमातुल्लाहि तआला अलैहिम भी यही फ़रमाते हैं के
तरावीह 20.रकअत है, और इमाम शाफ़ई रहमातुल्लाही तआला अलैह ने फ़रमाया के
हमने अपने शहर मक्का शरीफ़ में लोगों को 20.रकअत तरावीह पढ़ते हुए पाया है,
 तिर्मिज़ी, बाबे क़याम शहरुर्रमज़ान, सफ़ह 99)
और मौलाना अली क़ारी रहमातुल्लाहि तआला अलैह शरह निक़ाया में तहरीर फ़रमाते हैं,
20 रकअत तरावीह पर मुसलमान का इत्तेफ़ाक़ है इसलिए के इमाम बहक़ी ने सहीह् अस्नाद से रिवायत की है के
हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म, हज़रत उस्मान गनी, और हज़रत मौला अली, रज़िअल्लाहू तआला अन्हुम के मुक़द्दस ज़मानों में सहाबा ए किराम और ताबेईने इज़ाम 20 रकअत तरावीह पढ़ा करते थे,
और तहतावी अलामिराक़िउल फ़लाह, सफ़ह 224 में है,
हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ रज़िअल्लाहू तआला अन्ह के अलावा दीगर ख़ुलफ़ाए राशिदीन रिज़वानुल्लाही तआला अलैहिम अजमईन की मुदावमत से 20, रकअत तरावीह साबित है, और अल्लामा इब्ने आबिदीन शामी रहमातुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं,
तरावीह 20, रकअत है यही जमहूरे उल्मा का क़ौल है और मशरिक व मग़रिब सारी दुनिया के मुसलमानों का इसी पर अमल है,
 शामी, जिल्द 1, मिसरी सफ़ह 195)
और शैख़ ज़ैनुद्दीन इब्ने नज़ीम रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं,
20 रकअत तरावीह जमहूरे उल्मा का क़ौल है इसलिए के मोअत्ता इमाम मालिक में हजरत यज़ीद बिन रोमान रज़िअल्लाहु तआला अन्ह से रिवायत है उन्होंने फ़रमाया के
हज़रत उमर फ़ारूक़े आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह के ज़माने में सहाबा ए किराम 23 रकअत पढ़ते थे यानी 20 रकअत तरावीह और 3 रकअत वित्र और इसी पर सारी दुनिया के मुसलमानों का अमल है,
 बहरुर्राइक़, जिल्द 2, बाबुल वित्र वन्नवाफ़िल, सफ़ह 66)
और इनाया शरह हिदाया फ़सले फ़ी क़यामे रमज़ान में है
हज़रत उमर रज़िअल्लाहु तआला अन्ह के शुरू ज़माना ए ख़िलाफ़त तक सहाबा ए किराम तरावीह अलग-अलग पढ़ते थे बअदहू हज़रत उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह ने फ़रमाया के
में एक इमाम पर सहाबा ए किराम को जमा करना बेहतर समझता हूं फिर उन्होंने हज़रत उबी बिन कअब रज़िअल्लाहू तआला अन्ह पर सहाबा ए किराम को जमा फ़रमाया, हज़रत उबी ने लोगों को 5, तरवीहा 20 रकअत पढ़ाई,
 इनाया, शरह हिदाया, जिल्द 1, सफ़ह 484,
और किफ़ाया फसले फ़ी क़यामे रमज़ान जिल्द 1 सफ़ह 407, में है
तरावीह कुल 20 रकअत है और ये हमारा मसलक है और यही मसलक इमामे शाफ़ई रहमतुल्लाहि तआला अलैह का भी है,
और बदाएउस्सनाएअ, जिल्द 1, फसले फ़ी मिक़दारुल तरावीह सफ़ह 288 में है
तरावीह की तादाद 20 रकअत है, 5,तरवीहा 10 सलाम के साथ, हर दो सलाम एक तरवीहा है और यही आम उल्मा का क़ौल है,
और इमाम गज़ाली रहमतुल्लाही तआला अलैह तहरीर फरमाते हैं,
तरावीह 20 रकअत है,
अहयाउल उलूम जिल्द 1, सफ़ह 201,
और शरह बक़ाया जिल्द 1, सफ़ह 175, में है
तरावीह 20 रकअत मसनून है, और फ़तावा आलमगीरी जिल्द 1 फसले फित्तरावीह, मिसरी सफ़ह 108 में है
तरावीह 5,तरवीहा है, हर तरवीहा 4 रकअत का दो सलाम के साथ,
ऐसा ही सिराजिया में है और हज़रत शाह वलीउल्लाह साहब मुहद्दिसे देहलवी रहमतुल्लाही तआला अलैह फ़रमाते हैं,
तरावीह की तादाद 20 रकअत है,
 हुज्जतुल्लाहुल बालिग़ह, जिल्द 2 सफ़ह 18)
ग़ैर मुक़ल्लिद अहले हदीस यानी वहाबी जो 8 रकअत तरावीह पढ़ते हैं वो अपनी आंखें खोलें, वरना ख़सारा ही ख़सारा,

*तरावीह का बयान, क़िस्त.3*

*20, रकअत तरावीह की हिक्मत*
*﷽ اَلصَّــلٰوةُوَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَارَسُوْلَ اللّٰهﷺ*
20 रकअत तरावीह की हिक्मत ये है के रात और दिन में कुल 20 रकअत फ़र्ज़ व वाजिब हैं, 17 रकअत फ़र्ज़ और 3 रकअत वित्र और रमज़ान में 20 रकअत तरावीह मुक़र्रर की गईं ताके फ़र्ज़ व वाजिब के मदारिज (दर्जा) और बढ़ जाएं और उनकी खूब तकमील हो जाए जैसा के बहरुर्राइक़ जिल्द 2, फसले फ़ी क़यामे रमज़ान सफ़ह 67 पर है अल्लामा हब्ली रहमतुल्लाही तआला अलैह ने ज़िक्र फ़रमाया के तरावीह के 20 रकआत होने में हिक्मत ये है के वाजिब और फ़र्ज़ जो दिन रात में कुल 20 रकअत हैं उन्हीं की तकमील के लिए सुन्नतें मशरूअ् हुई हैं तो तरावीह भी 20 रकअत हुई ताके मुकम्मल करने वाली तरावीह और जिनकी तकमील होगी यानी फ़र्ज़ व वाजिब दोनों बराबर हो जाएं, और मिराक़ीउलफ़लाह के क़ौल
*و هى عشرون ركعة*
के तहत अल्लामा तहतावी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं
20 रकअत तरावीह मुकर्रर करने में हिक्मत ये है के मुकम्मल करने वाली सुन्नतों की रकआत और जिनकी तकमील होती है यानी फ़र्ज़ व वाजिब की रकआत की तादाद बराबर हो जाएं, और दुर्रे मुख्तार मअ् शामी जिल्द 1, मुबहस सलातुल मरीज़ सफ़ह 495 में है
तरावीह 20 रकअत है और 20 रकअत तरावीह में हिक्मत ये है के मुकम्मल मुकम्मल के बराबर हो, और दुर्रे मुख्तार की इसी इबारत के तहत शामी में नहर से मनक़ूल है
वाज़ेह हो के फ़राइज़ अगरचे पहले से भी मुकम्मल हैं लेकिन माहे रमज़ान में इसके कमाल की ज़्यादती के सबब ये मुकम्मल यानी 20 रकअत तरावीह बढ़ा दी गई तो वो खूब कामिल हो गए,
 अनवारुल हदीस, सफ़ह 150—151)
तरावीह पढ़ाने वाले हाफ़िज़ को सवाब कम मिलता है और तरावीह सुनने वाले मुक़्तदियों को सवाब ज़्यादा मिलता है,
फ़तावा फ़क़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफ़ह 201)
शबीना यानी एक रात की तरावीह में पूरा क़ुरआन मजीद पढ़ना जिस तरह आजकल रिवाज है के कोई बैठा बातें कर रहा है, कुछ लोग लेटे हैं, कुछ लोग चाय पी रहे हैं, कुछ लोग मस्जिद से बाहर बीड़ी सिगरेट पीने की में मशगूल हैं, और जब जी चाहा तो एक आध रकअत में शामिल भी हो गए, इस तरह का शबीना नाजाइज़ है, हां अगर ये फ़िज़ूल में मशागिल ना हों और सब मुसल्लियान तरावीह की (20) बीसों रकअतों में शरीक रहें और दिल लगाकर क़ुरआन मजीद को सुनें और हाफ़िज़ साहब अकेले या चंद हाफ़िज़ मिलकर पूरा क़ुरआन मजीद पढ़ें तो ये जाइज़ है,
📚 बहारे शरीअत हिस्सा 4, सफ़ह 37)
 सामाने आखिरत सफ़ह 189)
दो रकअत तरावीह की नियत की क़अदा भूल गया 3 रकअत पढ़ कर बैठा और सजदा ए सहू किया तो नमाज़ नहीं हुई और तीनों रकअतों में जिस क़दर क़ुरआन पढ़ा गया उसका इआदा किया जाए, और अगर 4 रकअत पूरी कर ली मगर 2 रकअत पर क़अदा ना किया तो ये चारों दो ही रकअत के क़ाइम मुक़ाम शुमार होंगी और अगर दोनों क़अदे किए तो चारों रकअतें हो गईं,
📚फतावा रज़वियह जिल्द 3, सफ़ह 520,

*तरावीह का बयान, क़िस्त, 4*

*﷽ اَلصَّــلٰوةُوَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَارَسُوْلَ اللّٰهﷺ*
मसअला,
हर दो रकअत के बाद दो रकअत पढ़ना मकरूह है यूंही दस रकअत के बाद बैठना भी मकरूह,
📚दुर्रे मुख़्तार,आलमगीरी,
मसअला,
तरावीह में जमाअत सुन्नते किफ़ाया है के अगर मस्जिद के सब लोग छोड़ देंगे तो सब गुनाहगार होंगे और अगर किसी एक ने घर में तन्हा पढ़ ली तो गुनाहगार नहीं मगर जो शख़्स मुक़तदा हो के उसके होने से जमाअत बड़ी होती है और छोड़ देगा तो लोग कम हो जाएंगे उसे बिला उज़्र जमाअत छोड़ने की इजाज़त नहीं,
📚आलमगीरी,
मसअला,
तरावीह मस्जिद में ब जमाअत पढ़ना अफ़ज़ल है अगर घर में जमाअत से पढ़ी तो जमाअत के तर्क का गुनाह ना हुआ मगर वो सवाब ना मिलेगा जो मस्जिद में पढ़ने का था,
📚आलमगीरी,
मसअला,
अगर आलिम हाफ़िज़ भी हो तो अफ़ज़ल ये है के खुद पढ़े दूसरे की इक़्तिदा ना करे और अगर इमाम ग़लत पढ़ता हो तो मस्जिदे मोहल्ला छोड़कर दूसरी मस्जिद में जाने में हर्ज नहीं यूंही अगर दूसरी जगह का इमाम खुश आवाज़ हो या हल्की क़िराअत पढ़ता हो या मस्जिदे मोहल्ला में खत्म ना होगा तो दूसरी मस्जिद में जाना जाइज़ है,
📚आलमगीरी,
मसअला,
खुश ख़वान को (अच्छी आवाज़ वाले को) इमाम बनाना ना चाहिए बल्के दुरुस्त ख़वान (अच्छा क़ुरआन पढ़ने वाले) को बनाएं,
📚 अलमगीरी,
मसअला,
अफ़सोस स़द अफ़सोस के इस ज़माना में हाफ़िज़ की हालत निहायत ना नगुफ्ता बा (निहायत ख़राब) है अक्सर तो ऐसा पढ़ते हैं के
يعلمون تعلمون،
यअलमून तअलमून, के सिवा कुछ पता नहीं चलता,
अल्फ़ाज़ व हुरूफ़ खा जाया करते हैं जो अच्छा पढ़ने वाले कहे जाते हैं उन्हें देखिए तो हुरूफ़ सही नहीं अदा करते,
ء، ا، ع، और, ذ، ز، ظ، और, ث، س، ص، ت، ط،
वग़ैरह हुरूफ़ में तफ़रक़ा नहीं
करते (यानी सही मख़रज के साथ नहीं पढ़ते) जिससे क़तअन नमाज़ ही नहीं होती (हुज़ूर सदरुश्शरिअह अलैहिर्रहमा फ़रमाते के फक़ीर को इन्हीं मुसीबतों की वजह से 3 साल  ख़त्मे क़ुरआन मजीद सुनना ना मिला मौला अज़्ज़ा व  जल्ल मुसलमान भाइयों को तौफ़ीक़ दे के,
ماانزل الله،
पढ़ने की कोशिश करें,
मसअला,
आजकल अक्सर रिवाज़ हो गया है के हाफ़िज़ को उजरत देकर तरावीह पढ़वाते हैं ये नाजाइज है देने वाला और लेने वाला दोनों गुनाहगार हैं, उजरत सिर्फ़ यही नहीं के पेश्तर (पहले) मुक़र्रर कर लें के ये लेंगे ये देंगे बल्के अगर मालूम है के यहां कुछ मिलता है अगरचे उससे तय ना हुआ हो ये भी नाजाइज़ है के
المعروف كا لمشروط،
हां अगर कह दे के कुछ नहीं दूंगा या नहीं लूंगा फिर पढ़े और हाफ़िज़ की खिदमत करें तो इसमें हर्ज नहीं के,
الصریح يفوق الدلالۃ،
मसअला,
एक इमाम दो मस्जिदों में तरावीह पढ़ाता है अगर दोनों में पूरी पूरी पढ़ाए तो ना जाइज़ है और मुक़्तदी ने दो मस्जिदों में पूरी पूरी पढ़ी तो हर्ज नहीं मगर दूसरी में वित्र पढ़ना जाइज नहीं जबके पहली में पढ़ चुका और अगर घर में तरावीह पढ़कर मस्जिद में आया और इमामत की तो मकरूह है,
📚आलमगीरी,
मसअला,
लोगों में तरावीह पढ़ ली अब दोबारा पढ़ना चाहते हैं तो तन्हा तन्हा पढ़ सकते हैं जमाअत की इजाज़त नहीं,
📚आलमगीरी,
मसअला,
अफ़ज़ल ये है के एक इमाम के पीछे तरावीह पढ़ें और दो के पीछे पड़ना चाहें तो बेहतर ये है के पूरे तरवीहा पर इमाम बदलें मसलन आठ.8, एक के पीछे और बारह.12, दूसरे के
📚आलमगीरी,
मसअला,
नाबालिग़ के पीछे बालिग़ीन की तरावीह ना होगी यही सही है,
📚आलमगीरी,
मसअला,
रमज़ान शरीफ़ में वित्र जमाअत के साथ पढ़ना अफ़ज़ल है ख़्वाह उसी इमाम के पीछे जिसके पीछे इशा व  तरावीह पढ़ी या दूसरे के पीछे,
📚आलमगीरी,दुर्रे मुख़्तार, बहारे शरिअत हिस्सा 4, सफ़ह 34—-35)

*तरावीह का बयान. क़िस्त.5*

*﷽ اَلصَّــلٰوةُوَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَارَسُوْلَ اللّٰهﷺ*
मसअला,
ये जाइज़ है के एक शख़्स इशा व वित्र पढ़ाए दूसरा तरावीह जैसा के हज़रत उमर रज़िअल्लाहू तआला अन्ह इशा व वित्र की इमामत करते थे और उबई बिन कअब रज़िअल्लाहू तआला अन्ह  तरावीह की,
📚आलमगीरी,
मसअला,
अगर सब लोगों ने इशा की जमाअत तर्क कर दी तो तरावीह भी जमाअत से ना पढ़ें हां इशा जमाअत से हुई और बअज़ को जमाअत न मिली तो ये जमाअते तरावीह में शरीक हों
📚दुर्रे मुख़्तार,
मसअला,
अगर इशा जमाअत से पढ़ी और तरावीह तन्हा तो वित्र की जमाअत में शरीक हो सकता है अगर इशा तन्हा पढ़ ली अगरचे तरावीह बा जमाअत पढ़ी तो वित्र तन्हा पढ़े,
📚दुर्रे मुख़्तार,रद्दुल मोहतार,
मसअला,
इशा की सुन्नतों का सलाम ना फेरा उसी में तरावीह मिलाकर शुरू की तो तरावीह नहीं हुई,
📚आलमगीरी,
मसअला,
तरावीह बैठकर पढ़ना बिला उज़्र मकरूह है बल्के बअज़ों के नज़दीक तो होगी ही नहीं,
📚दुर्रे मुख़्तार,
मसअला,
मुक़्तदी को ये जाइज़ नहीं के बैठा रहे जब इमाम रुकू करने को हो तो खड़ा हो जाए के ये मुनाफ़िक़ीन से मुशाबहत है अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल इरशाद फ़रमाता है👇
तर्जमा—- मुनाफ़िक़ जब नमाज़ को खड़े होते हैं तो थके जी से,
📚 ग़ुनियह, वगैरह,
मसअला,
इमाम से ग़लती हुई कोई सूरत या आयत छूट गई तो मुस्तहब ये है के उसे पहले पढ़ कर फिर आगे बढ़े,
📚आलमगीरी,
मसअला,
दो रकअत पर बैठना भूल गया खड़ा हो गया तो जब तक तीसरी का सजदा ना किया हो बैठ जाए और सजदा कर लिया हो तो चार पूरी कर ले मगर ये दो शुमार की जाएंगी और जो दो पर बैठ चुका है तो चारों हुईं,
📚आलमगीरी,
मसअला,
तीन रकअत पढ़कर सलाम फेरा अगर दूसरी पर बैठा ना था तो ना हुई उनके बदले की दो रकअत फिर पढ़े,
📚आलमगीरी,
मसअला,
क़अदा में मुक़तदी सो गया इमाम सलाम फेर कर और दो रकअत पढ़कर क़अदा में आया अब ये बेदार हुआ तो अगर मालूम हो गया तो सलाम फेर कर शामिल हो जाए और इमाम के सलाम फेरने के बाद जल्दी पूरी करके इमाम के साथ हो जाए,
📚आलमगीरी,
मसअला,
वित्र पढ़ने के बाद लोगों को याद आया के दो रकतें रह गईं तो जमाअत से पढ़ लें और आज याद आया के कल दो रकअतें रह गई थीं तो जमाअत से पढ़ना मकरूह है,
📚आलमगीरी,
मसअला,
सलाम फेरने के बाद कोई कहता है ! दो हुईं कोई कहता है तीन तो इमाम के इल्म में जो हो उसका एतबार है और इमाम को किसी बात का यक़ीन ना हो तो जिसको सच्चा जानता हो उसका क़ौल एतबार करे अगर इसमें लोगों को शक हो के बीस हुईं या अट्ठारह तो दो रकअत तन्हा-तन्हा पढ़ें
📚आलमगीरी,
मसअला,
अगर किसी वजह से नमाज़े तरावीह फ़ासिद हो जाए तो जितना क़ुरआन मजीद उन रककतों में पढ़ा है इआदा करें ताके ख़त्म में नुक़सान ना रहे,
📚आलमगीरी,
मसअला,
अगर किसी वजह से ख़त्म ना हो तो सूरतों की तरावीह पढ़ें और इसके लिए बअज़ों ने ये तरीका रखा है के *अलम तरा कैफ, से आखिर तक*  2 बार पढ़ने में 20 रकअतें हो जाएंगी
📚आलमगीरी,
मसअला,
एक बार बिस्मिल्लाह शरीफ़ जिहर (आवाज़) से पढ़ना सुन्नत है और हर सूरत की इबतिदा में आहिस्ता पढ़ना मुस्तहब और ये जो आजकल बअज़ जाहिलों ने निकाला है के 114 बार बिस्मिल्लाह जिहर (आवाज़) से पढ़ी जाए वरना खत्म ना होगा मजहबे हन्फी में बेअसल है,
मसअला,
मुताख़्ख़िरीन ने खत्में तरावीह में तीन बार क़ुलहु वल्लाह पढ़ना मुस्तहब कहा और बेहतर ये के ख़त्म के दिन पिछली रकअत में अलिफ लाम मीम से मुफ़्लिहून तक पढ़े,
मसअला,
शबीना के एक रात की तरावीह में पूरा क़ुरआन पढ़ा जाता है जिस तरह आजकल रिवाज है के कोई बैठा बातें कर रहा है कुछ लोग लेटे हैं कुछ लोग चाय पीने में मशगूल हैं कुछ लोग मस्जिद के बाहर हुक़्क़ा नोशी कर रहे हैं (बीड़ी सिगरेटपी रहे हैं) और जब जी में आया एक आध रकअत में शामिल भी हो गए ये नाजाइज़ है,
फ़ायदा,
हमारे इमामे आज़म रज़िअल्लाहू तआला अन्ह रमज़ान शरीफ़ में 61 ख़त्म किया करते थे 30 दिन में और 30 रात में और एक तरावीह में और 45 बरस इशा के वुज़ू से नमाज़े फ़जर पढ़ी है,
📚 बहारे शरिअत हिस्सा 4. सफ़ह 36—37) पुराना एडीसन, मतबूआ क़ादरी किताब घर, बरेली शरीफ़,
*तरावीह का बयान मुकम्मल हुआ*
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1 COMMENT

  1. Assalam walaiqum bhaijaan, Bhai me regular aapki post padhta rahta hun aur aap aise hi Deen ki baat share krke Naik kaam krte rahiye..and Bhai me bhi 1 blog bnana chah rha hu bhai blog design me aapki help Chahiye plz help me…,

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