Friday, May 10, 2024
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माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत 

माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत ( मफ़हूमे क़ुरआन व हदीस )

मसाइलो फ़ज़ाइल रमज़ानुल मुबारक –

1. इसी महीने (माहे रमज़ान ) में क़ुरआन मजीद नाज़िल किया गया !( सूरह बक्रह )

2. रोजे का मक़सद तक़वा पैदा करना है (सूरह बक्रह)

3. रमजान का महीना (माहे रमज़ान ) रहमतो बरकत का महीना है !
4. हर मुसलमान पर माहे रमजान के रोजे फर्ज हें !
5. मजनून और नाबालिग पर रोजा फर्ज नहीं है।
6. जन्नत में एक दरवाजा है जिसे रय्यान कहते हैं ! इसमें सिर्फ रोज़ेदार ही दाख़िल होंगे ( बुखारी व मुस्लिम )
7. सुबह सादिक से गुरूब आफताब तक खाने पीने , और जिमाअ से परहेज किया जाये ( सूरह बक्रह )
8. माहे रमज़ान के रोज़े की नियत सुबह सादिक्‌ से पहले. कर लेनी चाहिय। (अबू दाऊद)
9. फरमाते है हुजूर सलल्‍लल्लाहो अलैहि वसलल्‍लमः – रमजान में उमरा मेरे साथ हज के बराबर है ( बुखारी )
10. सुबह सादिक्‌ से कुछ देर पहले सहरी खानी चाहिये ! सहरी खाने में बरकत है ! (बुखारी व मुस्लिम)
11रोज़ेदार को लड़ाई झगड़े, गाली गलौज और बेहूदा कामों से बचना जूरूरी है ! (बुखारी वं मुस्लिम)
माहे रमज़ान की फ़ज़ीलत 
12. रोज़े की हालत में क़सदन जिमा करने से रोजा टूट जाता है जिससे कफ्फारा भी लाजिम आ सकता है ! कफ्फारा में एक गुलाम आजाद करे, या दो महीने के , मुतावातिर रोजे रखें, या साठ मिस्कीनों को दोनों , वक्‍त भर पेट खाना खिलायें !
13 रोज़े की हालत में कसदन खाने-पीने, कसदन के ., (उल्टी) करने और औरत को हैज आ जाने से रोजा ४ टूट जाता है जिसकी कजा करनी जरूरी है। (बुखारी)
14 भूलकर खाने-पीने, खुद-ब-रख़ुद के आने, सुर्मा ‘ लगाने, गुस्ल करने, एहतेलाम हो जाने, जिनाबत की हालत मे सुबह सादिक्‌ के बाद ग़ुस्ल करने से रोजा नहीं टूटता है। (अबू दाऊद)
15 मसुसाफिर, मरीज, हामिला और दूध पिलाने वाली औरत को रोज़ा न रखने की इजाज़त है ! मगर बाद में छूटे हुये रोज़ो की अदायगी जरूरी है ! (तिरमिजी)
16 . हैज़ व निफास वाली औरत भी रोज़ा ना रखे ! पाक होने के बाद छूटे हुये रोज़ो की कज़ा करे। ( बुरख़ारी व मुस्लिम )
177. हर शै के लिये ज़कात है और बदन की ज़कात रोज़ा है और निस्फ़  सब्र है। (इब्ने माजा)
18. नमाज़े तरावीह आख़ीर रात में पढ़ना अफजल है (बुखारी)
19 माहे रमजान में एक रात बडी क़द्रो मंजिलत और ख़ैरो बरकत वाली है ! यह रात हजार महीनों से बेहतर है ! (सूरह क़द्र )
20 – शबे क़द्र माहे रमज़ान के आख़री अशरह की 21,23,25,.27 और 29 वीं रात में तलाश करनी चाहिये । (बुखारी)
21 शब्रे क॒द्र में कयाम करने का बहुत सवाब है ! शबे क़द्र में यह दुआ पढ़नी चाहिये: ।
dua e shabe qadr

अल्लाहुम्मा इन्नका अफुव्वुन तुहिब्बुल अफ़वा फ़अफु अन्नी या ग़फूर 0

22. माहे रमज़ान के आख़िरी अशरह का ऐतिकाफ सुन्नते नबवी है। ( बुख़ारी व मुस्लिम )
23 शरई इस्तेलाह में इबादत की नियत से मस्जिद में रहने और बाहर न निकलने को ऐतिकाफ़ कहते हैं ! ऐतिकाफ मस्जिद में करें ! ( सूरह बक्रह )
24. जिसने रमज़ान में दस दिनों का ऐतिकाफ कर लिया तो ऐसा है ! जैसे दो हज और दो उमरे किए !( शोअबुल ईमान)
25. ऐतिकाफ़ की हालत में बीवी से सोहबत करने और बिला जरूरत मस्जिद से बाहर जाने से ऐतिकाफ़ टूट जाता है। (बुख़ारी)
26. ब–हालते ऐतिकाफ़ सिर्फ क़ज़ाए हाजत के लिये ही बाहर निकलें। (बुख़ारी) !
27 – मुतलक़न हर मस्जिद में ऐतिकाफ़ दुरुस्त है ! अगरचेह उस मस्जिद में जमाअत न होती हो, हा सबसे अफज़ल मस्जिदे हरम शरीफ़ है !
28 सदक़ए फित्र नमाज़े ईद को जाने से पहले पहले दे देना चाहिए ! वर्ना रोज़ा आसमान व ज़मीन के दरमियान मुअल्लक रहता है ! (तारीख़े बग़दाद)
29. जब रमज़ान के तीस दिन पूरे हो जायें या रमजान की 29 तारी\ख़ को चांद नज़र आ जाये तो अगले दिन ईद मनायें। (बुख़ारी व मुस्लिम)
30. ईदुल फित्र के दिन अल्लाह तआला की बड़ाई बयान करें ! और उसका शुक्र अदा करें ! (सूरह बक्रह) और इस दुआ को कसरत से पढें:
अल्लाहु अकबर अल्लाहु अकबर, ला इलाहा इल्लल्लाहो, वलल्‍लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर व लिल्लाहिल हम्द
31. नमाज़े र्ईद दो रकअत बिला अज़ान व इक़ामत  खुले मैदान में अदा करें ( बुख़ारी व मुस्लिम )
32 एक मर्तबा ईद के दिन बारिश हुई तो सरकार सल्ललल्लाहो अलैहि वसल्‍लम ने मस्जिद में ईद की
नमाज़ पढ़ी ! (अबू दाऊद)
33. जो ईदैन की रातों में कयाम करे, उसका दिल न मरेगा जिस दिन लोगों के दिल मरेंगे ! (इब्ने माज़ा) !

माहे रमज़ान में सेहरी और इफ़्तार

1. सुबह सादिक से कुछ देर पहले सहरी खानी चाहिये , सहरी खाने में बरकत है। (बुखारी व मुस्लिम)
2. सूरज गुरूब होने के फौरन बाद इफ़्तार करें, ताख़ीर ( देरी ) न करें। (बुखारी व मुस्लिम)
क पढें
3. इफ़्तार के बाद ये दुआ पढ़ें:-
अल्लाहुम्मा लका सुमतो व व बैका आमन्तो व अला रिज़क़िका अफतरतु (अबू दाऊद)
4. खजूर या पानी से इफ़्तार करना सुन्नत है। (अबू दाऊद)
5. अल्लाह अज़्जा-वजल और उसके फरिश्ते सहरी खाने वालों पर दुरूद भेजते हैं । (इब्ने हब्बान)
6 . सहरी कुल की कुल बरकत है !  इसे न छोड़े, अगरचे: एक घूँट पानी ही पी ले ! (अल-मुस्नद)
7. तीन चीज़ों में बरकत है, जमात, सुरीद और सहरी। (अल-मोअजमुल कबीर)
8. सहरी खाने से दिन के रोज़े पर इस्तेआनत करो | (इब्ने माजा)
9. तीन शख़्सो के खाने में हिसाब नहीं जबकि हलाल खाया 4.रोज़ादार 2.सहरी खाने वाला, 3.सरहद पर घोड़े बांधने वाला | (अलमोजमुल कबीर) ‘
10. हमारे और अहले किताब के रोज़ो में फर्क सहरी का लुक्मा है। (मुस्लिम)
11 – हमेशा लोग खैर के साथ रहेंगे, जब तक इफ़्तारमें जल्दी करेंगे। (बुखारी)
12. मेरी उम्मत मेरी सुन्नत पर रहेगी जब तक इफ़्तार में सितारों का इन्तेज़ार न करे। (इब्ने हब्बान)

13 . तीन चीज़ों को अल्लाह अज़्जा-वजल महबूब रखता है,

1. इफ्तार में जल्दी करना,
2. सहरी में ताखीर करना,
3. नमाज में हाथ पर हाथ रखना | (अल्मोजमुल औसत).
14. यह दीन हमेशा गालिब रहेगा जब तक लोग इफ़्तार में जल्दी करते रहेंगे यहूदो नसारा  ताख़ीर ( देरी ) करते हैं |(अबू दाऊद) ,
15. जब तुम में कोई रोजा इफ़्तारकरे तो खजूर या छुहारे से इफ़्तार करे कि वह बरकत है और अगर न मिले तो पानी से कि वह पाक करने वाला है। (तिरमिजी)
16. जो रोज़ादार का रोज़ा इफ़्तार कराये तो उसे भी उतना ही । मिलेगा ! (शोबुल ईमान)
17. जिस ने हलाल खाने या पानी से रोज़ा इफ़्तार कराया, ! फरिश्ते माहे रमज़ान में उसके लिये इस्तिगफार करते हैं ! (अल्मोअजमुल कबीर)
18. जो रोज़ादार को पानी पिलायेगा, अल्लाह तआला उसे मेरे हौज से पिलायेगा ! (शोबुल ईमान)
नोट: इफ्तार में जल्दी करने का मतलब यह है कि वक़्त हो जाने पर यानि गुरूब होने के बाद ताख़ीर ( देरी ) न करे, ऐसा नहीं कि गुरुब होने से पहले ही इफ़्तार कर ले ! अगर किसी ने ऐसा किया तो रोज़ा जाता रहेगा !
यूँही सहरी में ताखीर से मुराद यह है कि आखीर वक्‍त में सहरी खायें ! ऐसा नहीं कि  सहरी का वक्‍त खत्म होने के बाद भी खाते रहें !
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