Monday, May 13, 2024
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Qurbani Ka Tarika Hindi Mein-Qurbani In Hindi

Qurbani Ka Tarika

अस्सलामो अलैकुम भाइयो और बहनो इस पोस्ट में हम जानेंगे क़ुर्बानी का तरीका ( Qurbani Ka Tarika ) और क़ुरबानी से रिलेटेड कई सवालों के जवाब जैसे –

  • क़ुर्बानी क्या है ?
  • कुरबानी किसके लिए होनी चाहिए ?
  • फ़जीलत क्या है ?
  • नमाज़ और कुरबानी का हूक्म
  • कुर्बानी का जानवर केसा हो
  • क़ुर्बानी का तरीका – Qurbani Ka Tarika ?
  • कुरबानी के गोश्त का क्या करना चाहिए ?
  • कुरबानी के बाल सींग और खुर भी नामए आमाल मे 
  • क़ुर्बानी किस पर वाजिब हैं ?

क़ुरआन और हदीस की रौशनी में देखते है की यह क़ुर्बानी क्या है ? और क़ुर्बानी का तरीका क्या है  Qurbani Kya Hai ? Or Qurbani Ka Tarika Kya Hai ?

इसकी हकीकत और फ़जीलत क्या है ? ताकि हमारी कुरबानी वाकई क़ुर्बानी बन सके महज़ एक रस्म बन कर न रह जाए

क़ुर्बानी क्या है ? Qurbani Kyqa Hai ?

उश्र, ज़कात, और फित्रा  की तरह क़ुर्बानी भी एक माली इबादत है । (जो मालदारों पर वाजिब है ।) और हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत भी है । जो इस उम्मत के लिए (हमेशा) बाकी रखी गई है ।

क़ुर्बानी किसे कहते हैं ? Qurbani Kise Kahte Hai ?

खास जानवर को मख़सूस दिनो और वक़्तों में अल्लाह तआला की रजा के लिए सवाब की नियत से ज़ब्ह करने को कुर्बानी कहते है

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कुरबानी किसके लिए होनी चाहिए ? Qurbani Kiske Liye Hona Chahiye ?

“आप कह दीजिए बेशक मेरी नमाज़ और मेंरी कुरबानी और मेरी जिन्दगी और मेरी मौत सिर्फ अल्लाह तआला के लिए ही है ! और जो तमाम जहानो का परवरदिगार है ! (सूरए अनआम)

इस आयते मुबारका ने वाज़ेह तौर पर बता दिया कि एक मुसलमान की पूरी” जिन्दगी सिर्फ और सिर्फ अल्लाह तआला के लिए ही होती है ! मुसलमानो की हर इबादत सिर्फ उसी जात के लिए होती है जो उसका ख़ालिक़ व मालिक है !

कुरबानी भी जो एक अहम तरीन इबादत हैं ! और जिसके ज़रिए इंसान अपने रब’का तक़र्रूब हासिल करता है !वह भी महज़ रजाए मौला के लिए करनी चाहिए !

इसके अलावा न तो यह कुरबानी किसी बुत या बुजुर्ग के नाम पर हो न ही इसका ‘मकसद लोगों को दिखलाना या शौहरत हो वर्ना कुरबानी का सवाब और मकसद दोनो’ बर्बाद हो जाएंगे !

आज कल रिवाज़ है कि बाज़ मालदार लोग कीमती जानवर ख़रीदते हैं ! और फिर अखबारात व्हाट्सएप्प फेसबुक और सोशल मिडिया पर एहतिमाम से यह खबर और तस्वीर शेयर करते है ! इस दिखावे से हमें बचने  की कोशिश करनी चाहिए ! कहीं हमारी क़ुरबानी जाय ना हो जाए !

रब्बे करीम हम सबकी कुरबानी क़ुबूल अता फरमाए !

अल्लाह तआला को तुम्हारें दिल का तक़वा चाहिए 

अल्लाह तआला को उऩ ( कूरबानियाे ‘) का गाेश्त और खून नही पहुँचता लेकिन उसको तुम्हारे दिल का तक़वा पहूँचता है ! ( सूरए हज )

इस आयत में कुरबानी का अस्ल फलसफा बयान फरमाया यानी जानवर को ज़िबह कर के महज़ गोश्त खाने खिलाने या उसका  खुन’ गिराने से तुम अल्लाह की रजा कभी हासिल नही कर सकते !  न यह गाेश्त और खून उठकर उसकी ” चारगाह तक पहुंचता है !

उसके यहां तो तुम्हारे दिल का तक़वा और अदब पहूंचता है ! कि केसी खुश दिली और जोशे मुहब्बत के साथ एक कीमती और नफीस चीज़ उसकी इजाज़त से उसके नाम पर कुरबान कर दी ! गोया इस कुरबानी से जाहिर कर दिया कि हम खुद भी तेरी राह मे इसी तरह कुरबान होने के लिए तय्यार है । – माखूज़ अज़ फवाएदे उस्मानी

नमाज़ और कुरबानी का हूक्म एक साथ – Qurbani Ka Hukm

“बेशक हमने आपको कौसर अता की, पस आप अपने रब के सामने नमाज़ पढ़े ! और ” कुरबानी (Qurbani) करें ! बिला-शुबहा आपका दुश्मन ही बेनिशान होने वाला है !

( सूरए कौसर) 

दीने इस्लाम में नमाज़ को जाे कुछ मकाम व मरतबा है उससे हर मुसलमान बखूबी वाकिफ़ है ! यही दीन का सुतून और मोमिन की  मेराज है ! यही काफिर और मोमिन के दर्मियान फ़र्क़ करने वाली चीज है !

इसी तरह माली इबादात में कुरबानी का एक खास मकाम है !  क्यों कि अस्ल तो यह था कि अपने जान और माल” की कुरबानी दी जाती ! और बवक़्ते जरुरत हर मुसलमान दीने इस्लाम के लिए यह सब कूछ कुरबान कर देता ! लेकिन आम हालात मे जिलहिज्जह की दसवीं तारीख़ को हज़रत इब्राहीम व इस्माईल अलेहिस्सलाम की यादगार में जानवर जिबह करने को ही काफी करार दे दिया ! इस आयते मुबारका में दोनो’ का हुक्म एक साथ दिया जा रहा है ! जिसेसे कुरबानी की अज़मत का अंदाजा लगाया जा सकता है !

कुरबानी के गोश्त का क्या करना चाहिए ? 

‘ ‘ पस  जब वह जानवर अपने पहलू पर गिर जाए ( यानी जिबह मुकम्मल हो जाए ) तो उससे खुद भी खाओ और खिलाओ उनको जाो सब्र किए बैठे है ! और उनको मी जो बेकरारी जाहिर करते हैं’ ! ( यानी सवाल करते है ‘) इसी तरह हम ने उन जानवरो’ को तुम्हारें काबू में दे दिया है ताकि तुम शुक्र अदा करो !( सूरए हज )

इस आयत से मालूम हुआ कि जानवरों से खुद खाना जाइज़ और दुरुस्त है ! बल्कि अगर सारा गोश्त खुद ही रख ले तो यह भी जाइज़ है ! लेकिन पसंदीदा नहीं ! उलमा फ़रमाते हैं कि गोश्त के तीन हिस्से करने चाहिए !

एक अपने घर में रख दो ! दूसरा करीबी रिश्तेदारों में तक्रसीम कर-दे ! और तीसरा हिस्सा ” गरीब और कमजोर लोगों ‘कों दे दे ! इस तरह एक कुरबानी से सिलए रहमी और मसाकीन की इमदाद करने जैसै अजीम फवाएद और नेकियां भी समेट सकता है !

आखिर में फ़रमाया कि गोश्त ज़रूर खाओ ! मगर साथ अपने रब का शुक्र अदा करो ! ताकि नेमतों में मजीद इजाफा हो ! फिर यह भी देखो कि कितने ताक़तवर जानवरों को तुम कितनी आसानी  से -ज़िबह कर लेते हो !यकीनन यह अल्लाह करीम ही की जात है जिसने तुम्हें उन पर क़ाबू दे दिया है ! इस लिए उसका दिल से खूब शुक्र अदा करो।

कुरबानी के बाल सींग और खुर भी नामए आमाल मे 

हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है ! कि नबी करीम सल्लललाहो  अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: कुरबानी के दिन ( दस जिलहिज्जह. को  ) कोई नेक अमल अल्लाह तआला के नज़दीक कुरबानी का खून बहाने से बढ़ कर महबूब और पसंदीदा नहीं और कयामत के दिन कुरबानी करने वाला अपने जानवर के बालों, सींगों और खूरो  को ले आएगा “( और यह चीजे सवाबे अजीम मिलने का ज़रिया बनेंगी)

नोज़ फ़रमाया कि कुरबानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह तआला के नज़दीक शरफ़े कूबूलियत हासिल कर लेता है लिहाजा तुम खुशदिली के साथ कुरबानी किया करो । ‘ ‘ ( तिरमिजी शरीफ )

हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहू तआलाअन्हुमा फरमाते है’ कि रसूलअल्लाह  सल्लललाहो अलैहि वसल्लम ने बकरईद के दिन फरमाया कि आज के दिन कोई शख्स कुरबानी से बेहतर अमल नहीं कर सकता ! सिवाए यह कि सिला रहमी करे ( याद रहै कि सिला रहमी नफ़्ली कुरबानी का बदल तो हो सकती है वाजिब  कुरबानी का नहीं ) (तबरानी)

Qurbani Se Releted Kuch Hadeese – 

अल्लाह तबारक वतआला इरशाद फरमाता है (तरजमा) “अपने रब के लिए नमाज़ पढो ! और क़ुर्बानी करो !( अल कौसर 2 ” 108 )”

हुजूरे अकरम नूरे मुजस्सम सय्यदे आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया “कि कुर्बानी के दिनों में इब्ने आदम का कोई अमल (काम) खुदाए तआला के नज़दीक खून बहाने ( कुर्बानी करने ) से ज्यादा प्यारा नहीं ! (तिर्मिंजी)

और फरमाते हैं सरकारे दो आलम सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम -“कि जिसने खुश दिली और तालिबे सवाब होकर कुर्बानी की ! वो जहन्नम की आग से पर्दा हो जाएगा ।” (तिबरानी)

और फामाते है सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम -“जिसने जिलहिज्जा का चांद देख लिया और उसका इरादा कुर्बानी करने का है तो जब तक कुर्बानी न कर ले तब तक बाल नाखुन न तरशवाए ! (मुस्लिम )

और फरमाते हैं रसूले अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम -“जिस का हाथ पहुंचता हो (यानी हैसियत) और क़ुर्बानी न करे ! वो हरगिज़ हमारी मस्जिद (ईदगाह) के पास न आए ।” (जामेउल अहादीस)

और फरमाते है आकाए कायनात -“बेशक कुर्बानी के जानवरों में अफजल वो जानवर है! जो कीमती और तन्दरुस्त हो ।” (जामेउल अहादीस)

हुजूरे अकदस सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने रात में कुर्बानी करने से मना फरमाया । (तिबरानी)

नबीए करीम सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम ने हजरत अली रदियल्लाहु तआला अन्हु को हुक्म दिया कि कुर्बानी के उंर्टों के पास खडे हो जाओं ! और उनमें से उजरत के तौर पर कुछ कस्साब को न दो और “फ़रमाया कि सारे ऊंटो का ” गोश्त, झूलें और खालें सब तक्सीम कर दो । (जामेउल अहादीस)

हज़रत जैद बिन अरकम . रदियल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि सहाबा ने अर्ज की या रसूलल्लाह ये कुर्बानियां क्या है?

फ़रमाया तुम्हारे बाप (हज़रत) इबराहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है ! लोगों ने अर्ज की या रसूलल्लाह हमारे लिए इसमें क्या सवाब है ? तो फरमाया हर बाल के बदले (एक) नेकी है । (इब्जे माजा)

 

क़ुर्बानी किस पर वाजिब हैं ?

मुसलमान, मुकीम, मालिके निसाब पर वाजिब है ! और कुर्बानी जिस तरह मर्द पर वाजिब है इसी तरह औरत पर भी वाजिब है 1 इस शर्त के साथ कि कुर्बानी वाजिब होने के शराइत पाए जाएं !

मालिके निसाब से मुराद इतना माल होना है ! जितना माल होने से सदकए फित्र वाजिब होता है ! यानी 521/2 तोला चांदी या 71/2 तोला सोना, या इन दोनॉ में से किसी एक का मालिक हो ! (बहाने शरीअत हिस्सा 15)

याद रहे कि 521/2 तोला चांदी, और 71/2 तोला सोने कीं कीमत का एतबार मौजूदा दौर के हिसाब से किया जाएगा ! एक तोला का वज़न 12 ग्राम 122 मिलीग्राम 6 पाँइन्ट है ! इसके मुताबिक साढे सात तोला सोने का वज़न 92 ग्राम 312 मिलीग्राम और बावन तोला चांदी का वज़न 653 ग्राम 184 मिलीग्राम है ।

लिहाजा जो शख्स इतने रुपये का मालिक हो ! और उस पर क़र्ज़ भी ना हो उस पर क़ुर्बानी वाजिब है ! या हाजते असलिया के अलावा अगर कोई शख्स किसी ऐसी चीज का मालिक है ! जैसे खेती की ज़मीन, या जरुरत के अलावा मकान ! चाहे खाली पडा हो या किराये पर दे रखा हो ! अगर उसकी कीमत 521/2 तोला चांदी की कीमत के बराबर है ! तो वो मालदार है ! और उस पर कुर्बानी वाजिब है !

कुर्बानी वाजिब होने के लिए माल पर साल गुजरना ज़रुरी नहीँ है । अगर कुर्बानी के दिनॉ ही में किसी माल निसाब को पहुंचा उस पर भी कुर्बानी वाजिब है !

नोंट –

घर में कुर्बानी उस शख्स पर वाजिब है जो माले निसाब का मालिक हो ! अगर किसी ने अपने नाम से कुर्बानी करने के बजाए घर के उन लोगों के नाम से क़ुरबानी की जो माले निसाब के मालिक नहीं है ! जैसे

बच्चे, या फौत शुदा लोग तो उनकी तरफ से कुर्बानी नफ़्ल अदा होगी । और अपने नाम से नही की ! तो गुनाहगार होगा !  हां अपने नाम से क़ुर्बानी करने के साथ बाद या पहले घर के दूसरे लोगों के नाम से भी दूसरी अलग कुर्बानी का इंतेजाम करना बहुत ही उम्दा और अच्छा काम है !

याद रहे कि साहिबे निसाब पर हर साल . कुर्बानी वाजिब है ! कुछ लोगों का यह खयाल है ! कि अपनी तरफ से जिन्दगी में सिर्फ एक बार कुर्बानी वाजिब है ! शरअन गलत और बे बुनियाद है ! (अनवारूल हदीस)

कुर्बानी के दिन – Qurbani Ke Din

कुर्बानी के तीन दिन हैं ! 10 वीं जिल्हिज्जह की सुबह सादिक से 12 वीं जिल्हिज्जह के गुरुबे आफ़ताब तक ! यानी तीन दिन और दो रातें ! मगर शहर में नमाजे ईद से पहले कुर्बानी नही कर सकते !

हां देहात में सुबह सादिक ही से हो सकती है !  लेकिन मुस्तहब ये है कि सूरज निकलने के बाद करे ! कुर्बानी के लिए सबसे अफजल पहला दिन है ! फिर दूसरा, फिर तीसरा । (बहारे शरीअत)

नोट – कुर्बानी तीन दिन करना, यह अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबएकिराम रदियल्लाहु अन्हुम की सुन्नते मुबारका है ! जैसा कि हिदाया में है “वहिया जाएज़तुन फी-सलासति अय्यामिन यौमुन्नहरे व यौमाने बादुहु’

हज़रत उमर, हज़रत अली, हज़रत अब्बास रदियल्लाहु अन्हुम फ़रमाते हैं “अय्यामुन्नहरे सलासतुन” कुर्बानी के तीन दिन हैं ! लिहाजा साबित हुआ कि कुर्बानी तीन दिन करना आकाए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और सहाबए किराम रदियल्लाहु अन्हुम की मुक़द्दस सुन्नत है !

मसअला –

कुर्बानी के वक्त में कुर्बानी ही करनी वाजिब है ! इतनी कीमत या इतनी कीमत का जानवर सदका करने से वाजिब अदा ना होगा ! और कुर्बानी का वक़्त गुज़र जाने के बाद कुर्बानी फौत हो गई ! अब नही हो सकती !

हां अगर कुर्बानी के लिए कोई जानवर ख़रीद रखा है तो उसको सदका करदे ! वरना एक बकरी की कीमत सदका करे ! और कुर्बानी के लिए जानवर ख़रीदने के बाद कुर्बानी करने से पहले जानवर ने बच्चा दे दिया तो कुर्बानी के ही दिनो में उसे भी ज़ब्ह कर दें ! Or बेच दिया तो उसकी कीमत सदका करें ! और ना ज़ब्ह किया ना बेचा और अय्यामे नहर गुज़र गए तो सदका करे ! ( बहारे शरीअत )

कुर्बानी का जानवर केसा हो – 

ऊंट 5 साल, भैस 2 साल, भेड़-बकरी 1 साल की ! इससे उम्र कम हो तो कुर्बानी जाइज़ नहीं ! हां अगर दुम्बा या भेड का 6 माह का बच्चा इतना बडा हो कि दूरसे देखने में साल भर का मालूम होता हो ! तो उसकी कुर्बानी जाइज़ है !

मगर याद रखिए सिर्फ 6 माह के दुम्बे की कुर्बानी जाइज़ नहीं ! बल्कि उसका ‘ इतना तगड़ा होना ज़रुरी है कि दूर से देखने में साल भर का लगे ! कुर्बानी का जानवर मोटा ताजा और बे’ऐब होना चाहिए ।

अगऱ थोडा सा ऐब हो तो कुर्बानी मकरूह होगी ! और ज्यादा ऐब हो तो कुर्बानी होगी ही नही ! ( फतावा रज़विया शरीफ जिल्द 8 )

नोट – शरीअते इस्लामिया में जानवर की उम्र का लिहाज़ किया गया है. दांतो का नहीं ! बहुत से लोग दांतो पर ध्यान देते है !

ये उनकी भूल है ! लिहाजा उम्र का ख़याल रखा जाए ! जिस जानवर की शरअन जो उम्र तय है वही होनी चाहिए ! दांत अगरचे कमोबेश हो ! Ab Janiye Qurbani Karne Ka Tarika

कुर्बानी का तरीका – Qurbani Ka Tarika 

कुर्बानी के जानवर को बाएं पहलू पर इस तरह लिटाएं कि किब्ले की तरफ उसका मुंह हो और ज़ब्ह करने वाला अपना दाहिना पांव उसके पहलू पर रख कर तेज छूरी से जल्द ज़ब्ह कर दे !

और ज़ब्ह से पहले यह दुआ पढे ! “इन्नी वज्जहतु… तर्जमा मैने अपना मुंह उसकी तरफ़ किया जिसने आसमान और ज़मीन बनाए और मैं मुश्रिक़ीन में नहीँ । ( पारा 7 सूरह अनआम ) अल्लाहुम्म लका वमिन का बिस्मिल्लाहीँ अल्लाहु अकबर दुआ ख़त्म होते ही छुरी चला दें !

कुर्बानी अपनी तरफ से हो तो ज़ब्ह के बाद ये दुआ पढे ।

अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन्नी कमा तकब्बलता मिन ख़लीलिक इबराहीमा अलैहिस्सलामु व हबीबिक मुहम्मदिन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !

अगर दूसरे की तरफ से ज़ब्ह किया हो तो मिन्नी कीं जगह मिन फला कहें ! यानी उसका नाम ले ! मतलब अल्लाहुम्मा तकब्बल मिन ( यहाँ जिसकी तरफ से क़ुरबानी हो उसका नाम ले जैसे- मिन रशीद  , मिन जमील वगैरह कमा तकब्बलता मिन ख़लीलिक इबराहीमा अलैहिस्सलामु व हबीबिक मुहम्मदिन सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम !

और अगर जानवर मुश्तरक ( शिरकत की कुर्बानी ) हो ! मतलब कुछ लोग मिलकर क़ुर्बानी कर रहे हो तो – ऊंट, भैंस वगेरह, तो फला ( मिन ) की जगह सब शरीको के नाम ले !

नोट कुर्बानी का जानवर अगर खुद ज़ब्ह ना कर सके तो किसी सुन्नी सहीहुल अकीदा ही से ज़ब्ह कराएं ! अगर किसी बद अकीदा और बेदीन जैसे वहाबी, देवबंदी, गैर मुकल्लिद, कादियानी वगेरह से क़ुर्बानी का जानवर ज़ब्ह कराया तो कुर्बानी नही होगी !

ईसीं तरह हरगिज़ हरगिज़ किसी बद मजहब व बेदीन के साथ कुर्बानी में हिस्सा ना लें । वरना आपकी कुर्बानी भी जाया (बेकार) हो जाएगी ! और गुनाह का बोझ सर पर आएगा वो अलग है ! ख़याल रहे कि क़ुर्बानी का गोश्त वगेरह कुफ्फार व मुश्रिक़ीन को देना मना है !

( फ़तावा रज़विया, फतावा फेजुर्रसूल )

Qurbani Ka Tarika –

हमने जो क़ुरबानी का तरीका ( Qurbani Ka Tarika ) बताया है और जो भी क़ुरबानी से रेलेटेड लिखा है ! यही बिलकुल सुन्नी तरीका है ! क़ुरबानी का तरीका ( Qurbani Ka Tarika ) और ईद उल अज़्हा ( Eid-Ul-Azha ) के वारे में खुद भी जानिए ! और अपनों में शेयर करके सवाबे दारेन भी हासिल कीजिये !

अल्लाह हम सबको समझने और अमल करने की तौफ़ीक़ अता फरमाए ! और जो भी मोमिन भाई बहन क़ुर्बानी कर रहे है उन सबकी क़ुर्बानी क़ुबूल अता फरमाये ! आमीन या रब्बुल आलमीन !

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