Thursday, May 9, 2024
HomeHIQAYAT17 Ramzan Jung-e-Badr - Islam Ki Pahli Jung

17 Ramzan Jung-e-Badr – Islam Ki Pahli Jung

 17 रमज़ानुल मुबारक यौम ए जंगे बद्र:- 17 Ramzan Jung-e-Badr

इस्लाम की पहली जंग जंगे-बद्र 17-रमज़ान सन् 2 हिजरी जुमअ के दिन हुई।

313 मुसलमान लश्कर और क़ुफ़्फ़रो का लश्कर लगभग1000 था।

अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के फ़ज़ल से और नबी करीम के सदके तुफ़ैल इस अज़ीम जंग में मुसलमानो की फ़तेह हुई।

बद्र मदीना-ए- मुनव्वरा से तकरीबन 80 मील के फासिले पर एक गांव का नाम है जहाँ ज़माना-ए-जाहिलियत में सालाना मेला लगता था। यहाँ एक कुवां भी था उसी के नाम पर इस जगह का नाम बद्र रख दिया गया।

17 Ramzan Jung-e-Badr

क़ुरआन की सूरह अनफ़ाल में तफ़सील के साथ इस का ज़िक्र है और इस जंग में मुसलमानो की फ़तेह मुबीन के बारे में इरशाद फ़रमाया कि;-

“और यक़ीनन अल्लाह ने तुम लोगों की मदद् फ़रमाई बद्र में जब की तुम लोग कमज़ोर और बे-सरो-समां थे।

[सूरह आले-इमरान, आयत नं0123]

जिसमे 70 कुफ़्फ़ार जहनम नसीब हुवे और 70 के लगभग पकड़े गये और बाकी मैदान छोड़-छोड़ कर भाग गए।

कुल 14 सहाबा रदियल्लाहु अन्हुमा शहीद हुवे।

क़ुफ़्फ़रो पे इतना खौफ़ तारी था की जैसे 1000 होकर भी 313 मुसलमानो से ख़ौफ़ खारहे थे। और सहाबा ए-किराम को ये यकीन था की मेरे नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दुआ खली नहीं जा सकती ।

हुज़ूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने तो एक दिन पहले ही फ़रमा दिया था की कल कौन-कौन काफिर कहाँ कहाँ पर मरा पड़ा होगा।

बिलकुल वही हुवा जिन जगहों की हुज़ूर ने निशान देही फ़रमाई वो काफिर उसी जगह पर ही मरा।

एक इंच भी इधर उधर नहीं ख़सक पाया।

You Also Read – Hazrat Ali Ki Shahadat

17 रमज़ानुल मुबारक यौम ए जंगे बद्र

” बद्र ” मदीनए मुनव्वरह से तकरीबन अस्सी मील के फ़ासिले पर एक गाऊं का नाम है ! जहां ज़मानए जाहिलिय्यत में  मेला लगता था ! यहां एक कूवां भी था ! जिस के मालिक का नाम ” बद्र ” था उसी के नाम पर इस जगह का नाम ” बद्र ” रख दिया गया !

इसी मकाम पर जंगे बद्र ( 17 Ramzan Ko Jung-e-Badr ) का वोह अज़ीम मा’रिका हुवा ! जिस में कुफ्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के दरमियान सख़्त खूंरेजी हुई ! और मुसलमानों को वोह अजीमुश्शान फ़त्हे मुबीन नसीब हुई !

जिस के बाद इस्लाम की इज्जत व इक्बाल का परचम इतना सर बुलन्द हो गया कि कुफ्फ़ारे कुरैश की अजमतो शौकत बिल्कुल ही खाक में मिल गई ! अल्लाह तआला ने जंगे बद्र के दिन का नाम ” यौमुल फुरकान ” रखा !

कुरआन की सूरए अनफ़ाल में तफ़्सील के साथ और दूसरी सूरतों में इजमालन बार बार इस मा’रिके का ज़िक्र फ़रमाया ! और इस जंग में मुसलमानों की फ़त्हे मुबीन के बारे में एहसान जताते हुए खुदा वन्दे आलम ने कुरआने मजीद में इरशाद फ़रमाया कि

अल कुरआन : –और यक़ीनन खुदा वन्दे तआला ने तुम लोगों की मदद फ़रमाई बद्र में  जब कि तुम लोग कमज़ोर और बे सरो सामान थे तो तुम लोग अल्लाह  से डरते रहो ताकि तुम लोग शुक्र गुज़ार हो जाओ ।

17 Ramzan Jung-e-Badr

हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने जब बद्र में नुजूल फ़रमाया तो ऐसी जगह पड़ाव डाला कि जहां न कोई कूवां था ! न कोई चश्मा ! और वहां की जमीन इतनी रेतीली थी कि घोड़ों के पाउं जमीन में धंसते थे !

येह देख कर हज़रते हुबाब बिन मुन्ज़िर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने अर्ज किया कि या रसूलल्लाह आप ने पड़ाव के लिये जिस जगह को मुन्तख़ब फ़रमाया है ! येह वहीं की रू से है या फ़ौजी तदबीर है ?

आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि इस के बारे में कोई वही नहीं उतरी है ! हज़रते हुबाब बिन मुन्ज़िर रजि अल्लाह तआला अन्हो ने कहा ! कि फिर मेरी राए में जंगी तदाबीर की रू से बेहतर येह है ! कि हम कुछ आगे बढ़ कर पानी के चश्मों पर कब्जा कर लें ! ताकि कुफ़्फ़ार जिन कूओं पर काबिज़ हैं ! वोह बेकार हो जाएं !

क्यूं कि इन्ही चश्मों से उन के कूओं में पानी जाता है !  हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम  ने उन की राए को पसन्द फ़रमाया और इसी पर अमल किया गया ! खुदा की अज़ीम शान कि बारिश भी हो गई !

जिस से मैदान की गर्द और रेत जम गई जिस पर मुसलमानों के लिये चलना फिरना आसान हो गया ! और कुफ़्फ़ार की जमीन पर कीचड़ हो गई !

जिस से उन को चलने फिरने में दुश्वारी हो गई ! और मुसलमानों ने बारिश का पानी रोक कर जा बजा हौज़ बना लिये ! ताकि येह पानी गुस्ल और वुजू के काम आए ! इसी एहसान को खुदा वन्दे आलम ने कुरआन में इस तरह बयान फ़रमाया कि।

अल कुरआन : – और खुदा ने आस्मान से पानी बरसा दिया ताकि वोह तुम लोगों को पाक करे ।

17 Ramzan Jung-e-Badr

17 रमज़ान सि . 2 हि . जुमुआ की रात थी तमाम फ़ौज तो आराम व चैन की नींद सो रही थी ! मगर एक सरवरे काएनात सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ज़ात थी ! जो सारी रात खुदा वन्दे आलम से लौ लगाए दुआ में मसरूफ़ थी !

सुब्ह नुमूदार हुई तो आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने लोगों को नमाज़ के लिये बेदार फ़रमाया फिर नमाज़ के बाद कुरआन की आयाते जिहाद सुना कर ऐसा लरज़ा खेज़ और वल्वला अंगेज़ वा’ज़ फ़रमाया कि मुजाहिदीने इस्लाम की रगों के खून का क़तरा क़तरा जोशो खरोश का समुन्दर बन कर तूफानी मौजें मारने लगा !

और लोग मैदाने जंग के लिये तय्यार होने लगे ! कौन कब ? और कहां मरेगा ? रात ही में चन्द जां निसारों के साथ आपसल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम  ने मैदाने जंग का मुआयना फ़रमाया !

उस वक़्त आपके दस्ते मुबारक में एक छड़ी थी ! आप उसी छड़ी से ज़मीन पर लकीर बनाते थे और येह फ़रमाते जाते थे कि येह फुलां काफ़िर के क़त्ल होने की जगह है ! और कल यहां फुलां काफ़िर की लाश पड़ी हुई मिलेगी !

चुनान्चे ऐसा ही हुवा कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम – ने जिस जगह जिस काफ़िर की क़त्ल गाह बताई थी ! उस काफ़िर की लाश ठीक उसी जगह पाई गई ! उन में से किसी एक ने लकीर से बाल बराबर भी तजावुज़ नहीं किया!

सरीह तौर पर येह मस्अला साबित हो जाता है कि कौन कब ? और कहां मरेगा ? इन दोनों गैब की बातों का इल्म अल्लाह तआला ने अपने हबीब सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को अता फ़रमाया था !

 

RELATED ARTICLES

Most Popular