Thursday, May 9, 2024
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Hazrat Ali Murtza Ki Shahadat Ka Waqia – 21 ramzan

अली मुर्तज़ा की शहादत – 21 ramzan shahadat hazrat ali ki

अमीरुल मुअमिनीन हज़रते मौला अली शेरे खुदा کَرَّمَ اللہ تَعَالٰی وَجْہَہُ الْکَرِیْم मक्का शरीफ़ में पैदा हुए !

आप की अम्मीजान हज़रते बीबी फ़ातिमा बिन्ते असद  رضی اللہ عنہ  ने अपने वालिद के नाम पर आप का नाम ” हैदर ” रखा !

वालिद ने आप का नाम ” अली ” रखा और हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने आप को ” असदुल्लाह ” के लकब से नवाज़ा ( मिरआतुल मनाजीह , 8/412 )

इस के अलावा ” मुर्तजा ( चुना हुवा ) ” , ” कर्रार ( पलट पलट कर हम्ले करने वाला ) ” , ” शेरे खुदा ” और ” मौला मुश्किल कुशा ” आप के मशहूर अल्काबात हैं !

हज़रत मौला मुश्किल कुशा , अलिय्युल मुर्तजा , शेरे खुदा की कुन्यत ” अबुल हसन ” और ” अबू तुराब ” है ! आप प्यारे आका , मक्की मदनी मुस्तफ़ा हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के चचाज़ाद भाई थे !

आप ने 4 साल 8 माह, 9 दिन तक ख़िलाफ़त फ़रमाई ! 17 या 19 रमज़ानुल मुबारक को एक ख़बीस ख़ारिजी के कातिलाना हम्ले से आप शदीद ज़ख्मी हो गए ! और 21 रमज़ानुल मुबारक , इतवार की रात आप शहीद हो गए !

अली मुर्तज़ा की शहादत – 21 ramzan shahadat hazrat ali ki

जिस तरह इब्ने सबा के गिरोह को सहाबा-ए-किराम से अदावत थी !उसी तरह ख़ारजी गिरोह को अहले-बैत से अदावत थी ! यह दोनो गिरोह ही इस्लाम और मुसलमानों के लिये खतरनाक साबित हुए !

चुनांचे मौला अली रजियल्लाहु तआला अन्हु से उन ख़ारजियो को सख्त अदावत थी ! एक ख़ारजी मलऊन ने जिसका नाम इब्ने मलजम था ! हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु ( hazrat ali ) को शहीद करने कां प्रोग्राम बनाया !

एक तलवार को खास इसी नापाक मकसद के लिये जहर में बुझाया और मौके की तलाश में रहा ! हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु की राजधानी कूफा थी !

Hazrat Ali Murtza Ki Shahadat Ka Waqia

आप एक रोज़ सुबह की नमाज़ पढ़ने मस्जिद को जा रहे थे कि इब्ने मलजम ख़ारजी ने, जो रास्ते से छुपकर बैठा हुआ था !  हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु पर हमला कर दिया ! और आपके माथे पर तलवार मारी !

हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु ने तलवार का ज़ख़्म खाकर एक नारा मारा ! खुदा की कसम मै अपनी मुराद को पहुंचा ! और फिर आप जमीन पर गिर गये ! और हुक्म फ़रमाया कि मेरे कातिल को पकडकर मेरे पास लाओ !

यह सुनकर लोग इब्ने मलजम ख़ारजी को पकडकर ले आये ! हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु ( hazrat ali ) ने फ़रमाया इस मेरे मेहमान के लिये नर्म बिस्तर बिछाओं ! अच्छा खुश जायकदार खाना पकाकर इसे खिलाओ ! इसे ठंडा पानी भी पिलाओ !

ज़ख़्म से खून ज्यादा निकल जाने से फिर आपको बहुत कमजोरी लाहक़ हुई ! आपको शिद्दत से प्यास लगी ! घर वाले आपके लिये शर्बत बनाकर लाये ! हजरत अली ने फ़रमाया कि पहले मेरे कातिल को यह शर्बत पिलाओ !

घर वाले जब यह शर्बत इब्ने मलजम के पास लाये तो वह बदबख्त बोला मै जानता हूं कि तुमने मेरे लिये जहर घोलकर रखा है ! यह कहकर पीने से इंकार कर दिया !

अली मुर्तज़ा की शहादत

हज़रत अली ( hazrat ali ) यह बात सुनकर रोये ! और फ़रमाया: ऐ बदनसीब ! अगर तू इस वक्त मेरा यह शर्बत पी लेता ! तो में क्यामत के दिन जामे कौसर हरगिज़ न पीता ! जब तक पहले तुझे न पिला देता !

मगर मै क्या करूं कि तूने मेरे साथ रहना पसंद नहीं किया ! इसके बाद आपकी हालत बहुत नाजुक हो गयी ! और फ़रमाया: मैं देख रहा हू कि बहुत बडी जमाअत फरिश्तों की है ! उनके साथ बहुत बडे काफिले नबियों के हैं !

सबसे आगे सालारे क़ाफ़िला हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं ! मुझसे फ़रमाते हैं कि ऐ अली ! खुश हो जाओं कि अब तुम बडे चैन और राहत से बुलाये जाते हो !

इसके बाद आपने कूछ वसीयतें फ़रमाइ ! फिर कुछ मुश्क बतौर तबर्रुक निकाला और दिया ! पूछा गया कि यह मुश्क कैंसा है ? फ़रमाया: हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि के मुबारक जनाज़े को इस मुश्क से बसाया गया था !

उस वक्त थोडा -सा मुश्क बतोर तबर्रुक मैंने आज के दिन के लिये रख लिया था ! जब मुझे गुस्ल -देकर कफ़न पहनाओं तो यह मुश्क मेरे बदन पर लगा देना !

फिर अस्सलामु अलैकुम कहा ! इसके बाद कलिमा शरीफ़ का विर्द फ़रमाया और अपनी जान राहे हक में कुरबान कर दी !

( सीरतुस-सालिहीन सफ़ा 111 ) 

सबक : Hazrat Ali Ki Shahadat

उन अल्लाह वालों की यह सीरत है ! कि अल्लाह की राह में ज़ख़्म खाते हैं और कसम खाकर फ़रमाते हैं कि हम अपनी मुराद को पहुंचे ! अपने कातिल की ख़ातिर व मदारात करते हैं !

उन पर बडी बडी मुसीबतें नाजिल होती हैं ! वह हर हाल में खुदा की मर्जी पर राजी रहते हैं ! यह भी मालूम हुआ कि इन पाक लोगों की मौत महज एक इंतिकाले मकानी (यानी एक मकान से दूसरे मकान में जाना) होती है ! वह बडे इत्मीनान के साथ अस्सलामु अलैकुम फ़रमाकर और कलिमा शरीफ़ का विर्द फ़रमाते हुए अपने महबूबे हक़ीक़ी के पास पहुंच जाते हैं !

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