Imam Hussain Ki Dua
मुहर्रम की 10 वीं को हज़रत इमाम आली मकाम ने जो खेमे के गिर्द खंदक खुदवा रखी थ्री ! वह लकडियों से भरवाकर उसमें आग रौशन कर दी ! ताकि हरम शबखूं ( छापा मारना ) वगेरह से महफूज रहें ! और दुशमन खेमे तक न पहुंच सके !
एक यजीदी बे दीन ने आग रौशन देखकर कहा: ऐ हुसेन ! आतिशे दोजख से पहले तुमने अपने आपको आग में डाल दिया है ! ( मआज़ अल्लाह )
हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया: ऐ दुशमने खुदा ! तूने झूठ कहा ! फिर आपने काबे की तरफ़ मुंह करके फ़रमाया: ऐ अल्लाह इसे आग की तरफ खींच !
यह दुआ करते ही उस बे दीन के घोडे का पांव एक सुराख में फंस गया ! घोडा गिरा लगाम हाथ से छुटी, पांव लगाम में उलझा, घोडा उसे लेकर भागा, हत्ता कि उसे खंदक ” की आग में लाकर गिरा दिया ओंर खुद चला गया !
हज़रत इमाम ने सज्द-ए-शुक्र अदा किया !और सिर उठाकर बा-आवाजे बुलंद फ़रमाया: इलाही ! हम तेरे रसूल की आल हैं ! हमारा इंसाफ़ जालिमो से लेना !
Imam Hussain Ki Dua
इतने में एक और बेदीन ने हजरत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु को मुखातिब करके कहा: देख ऐ हुसैन ! नहृरे फुरात कैंसे मौजें मार रही है ! मगर उससे तुझे एक कतरा भी नसीब न होगा ! यूं ही प्यासा क़त्ल किया जायेगा !
इमाम यह सुनकर आज़ुर्दा ( सताया हुआ ) हुए ! और आबदीदा होकर दुआ फ़रमायी: इलाही! इसे प्यासा मार ! यकायक उसके घोडे ने शोखी करक उसे गिराया ! वह उठकर घोडा पकडने दौडता फिरा, प्यास गालिब हुई ! प्यास-प्यास पुकारता रहा ! मगर हलक से पानी न उतरा आखिर इसी प्यास की हालत में मर गया ।
( तज़किरा सफा 68 )
सबक-
हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु अल्लाह के महबूब थे ! खुदा आपकी सुनता था ! मगर शहादत चूंकि आपके नाम लिखी जा चुकी थी ! और अल्लाह व रसूल की यंही मर्जी थी ! आप राजी बरजाए हक़ थे ! आपने बडे सब्र के साथ जामे शहादत पिया !