Monday, May 13, 2024
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Karbala Mein Hujoor Sallallaho Alaihi Wa Sallam ki Aamad

मुहर्रम की दसवीं रात – सरवरे अंबिया की आमद

मुहर्रम की दसवीं रात शाम में सुबह तक हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने इबादते इलाही में गुजार दी । रात के पिछले पहर आप पर एक इस्तिग़राक़ ( डूब जाना, मुहिंब हो जाना) की केंफियत तारी हुई !

हक़ तआला की याद में इस -क़द्र महव हुए कि दुनिया व माफीहा (दुनिया की जैब व जीनत) की तरफ़ तवज्जह न रही !

इस आलम में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरिश्तों की जमाअत के साथ मैदाने करबला में तशरीफ़ लाये और हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु को बच्चों की तरह गोद में लेकर खूब प्यार फ़रमाया ! और फ़रमाया:

ऐ जान व दिन के चैन नुरुलऐन (आखों का तारा) ! मेरे हुसैन मैं खुब जानता हूं ! कि दुशमन तेरे पीछे पडे हैं ओंर तुझे क़ल्ल करना चाहते हैं !

बेटा तुम सब्र व शुक्र से इस वक्त को गुज़राना ! तेरे जितने कातिल हैं!  क्यामत के दिन मेरी शफाअत से महरूम रहेंगे ! और तुझे शहादत का बहुत बडा दर्जा मिलने वाला है !

थोडी देर में तुम इस कर्ब व बला से छुट जाओगे । बेटा ! जन्नत तेरे लिये संवारी गयी है ! तेरे मां बाप बहिश्त के दरवाजे पर तेरी राह देख रहे हैं !

यह बातें इरशाद फ़रमाकर हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फिर हजरत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु के सर व सीने पर हाथ मुबारक फेरकर दुआ की !

“ऐ अल्लाह ! मेरे हुसेन को सब्र व अज़्र इनायत फरमा !”

जब हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु इस मुकाशफ़े ( उलूमे ग़ैबी का जाहिर हो जाना ) से चोंके और अहले-बैत से यह सारा माजरा ध्यान किया ! तो सब हैरत से एक दूसरे का मुंह तकने लगे !

( तनकीहुश-शहादतैन)

सबक़

करबला का सारा किस्सा हुजूर सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम की नजरे आली में था ! हुजूर जालिमों का जुल्म और साबिरों का सब्र मुलाहजा फरमा रहे थे ।

Karbala Ki Kahaniya Hindi Mein 

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