Sunday, May 12, 2024
HomeKARBALA KI KAHANIहज़रत इमाम हुसैन और यज़ीदियो की हुज्जत

हज़रत इमाम हुसैन और यज़ीदियो की हुज्जत

इत्तमामे हुज्जत

यजीदियों ने जब हर तरह से हजरत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु से लडना ही चाहा ! तो हजरत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु भी अमामा-ए-रसूल बांधकर जुलफिकारे हेदरे कर्रार ( हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु की तलवार ) हाथ में लेकर और घोडे पर सवार होकर मैदान में तशरीफ़ ले आये ! इब्ने सअद के लशकर के करीब होकर फ़रमाया

ऐ ईराक वालो! तुम खुब जानते हो कि में नवासा-ए-रसूल ( सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ) फ़रजंद बतूल ओर दिलबंदे (फरजंद) अली मुर्तजा ओंर बिरादरे हसन मुजतबा हूं ।

देखो यह अमामा किसका है? गौर करो कि ईसाई अब तक निशान पाये ईसा को बोसा देते हैं । गर्ज हर दीन व मिल्लत के लोग अपने पेशवाओं की यादगार को दोस्त रखते हैं !

में तुम्हारे रसूल का नवासा हू ! अली शेरे खुदा का फर्जन्द हूँ । अगर तुम मेरे साथ कोई सुलूक नहीं कर सकते तो कम-से-कम मुझे क़त्ल ही न करो !

बताओं तुमने किस वजह से मेरा और मेरे अहले व अयाल का पानी बंद कर रखा है ? क्या मेंने तुममें से किसी का खून किया है ! या किसी की जागीर ज़ब्त की है ? जिसका बदला तुम मुझसे ले रहे हो !

तुमने खुद मुझको यहां बुलाया और अब यह अच्छी मेरी मेहमान नवाजी कर रहे हो ? ज़रा सोचो कि तुम क्या कर रहे हो?

आप यह तकरीर फरमा ही रहे थे ! कि खेमें से रोने की आवाज आईं ! आपने लाहौल पढी ! और हज़रत अब्बास और अली अकबर से फ़रमाया: तुम जाकर सबको रोने से मना करो ! ओंर कहो जरा सब्र करो कि अभी तुम्हें बहुत रोना है !

दोनों हज़रात ने अहले हरम को रोने से बाज रखा ! हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने फिर इब्ने सअद से खिताब फ़रमाया:

“ऐ कूफियों तुम्हें मेरा हस्ब  व नस्ब  (खानदान) मालूम है जिसका मिस्ल आज रूए ज़मीन पर नही है ! फिर सोच लो कि तुमने खुद ही मुझे खुतूत लिखकर बुलाया है ! फिर अब मेरे खून के प्यासे हो !

देखो यह तुम्हारे रवुतूत हैं । हज़रत इमाम ने खुतूत दिखाये तो उन बेवफाओं ने इंकार कर दिया ! और कहा ये हमारे खुतूत ( ख़त ) नहीं हैं !

हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने उनके झूठ से हैरान होकर फरमाया: बहम्दुलिल्लाह हुज्जत तमाम हुई !  मुझ पर कोई हुज्जत न रही ! (तजकिरा सफा 70 )

सबक :

हज़रत इमाम आली मकाम रजियल्लाहु तआला अन्हु आखिर तक यही चाहते थे ! कि यह लोग अपनी बेवफाई से बाज आयें ! और मेरे खून नाहक से हाथ न रंगे !

मगर उन बदबख्तो के नसीब बुरे थे ! यह भी मालूम हुआ कि हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाडु तआला अन्हु अपने इन नाम के और झूठे -महबूबो से बेजार ( खफा ) होकर दुनिया से तशरीफ़ ले गये !

Battle Of Karbala

RELATED ARTICLES

Most Popular