Monday, May 13, 2024
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Hazrat Ali Akbar – हजरत अली अकबर रजियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत 

Hazrat Ali Akbar Ki Shahadat – हजरत अली अकबर रजियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत

मैदाने करबला में जब हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु के जुमला अहबाब व अक़रबा जामें शहादत नोश फरमा चुकें !

तो आपके  साथ सिर्फ आपके तीन साहबजादों के कोई न बचा ! यह तीन साहबजादे हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ), हज़रत अली असग़र (Hazrat Ali Asghar) और इमाम जैनुल आबिदीन ( Hazrat Jenul Abedin) रजियल्लाहु तआला अन्हुम थे !

हजरत इमाम जैनुल आबिदीन तो बीमार थे ! और हजरत अली असग़र रजियल्लाहु तआला अन्हु अभी शीरख़्वार  (दूध पीते बच्चे ) ही थे !

हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) की उम्र शरीफ़ 18 बरस की थी ! हज़रत इमाम हुसेन  रजियल्लाहु तआला अन्हु ने जब देखा कि अब सिवाए मेरे तीन बच्चों के और कोई बाकी न रहा ! तो आपने खुद मेदान में जाने का फैसला कर लिया ! और सवारी मंगवाई !

हथियार बदन पर आरास्ता फ़रमाये ! और रुखसत के वास्ते खेमे के अंदर तशरीफ़ लाये ! और सब को सब्र की तलक़ीन की !

हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) रजियल्लाहु तआला अन्हु यह मंजर देखकर इमाम के क़दमों पर गिरे ! और अर्ज करने लगे अब्बाजान !

खुदा वह दिन न दिखाये ! जबकि आप मेरे सामने शर्बते शहादत नोश फरमायें ! आप मेरे होते हुए मैदान में क्यों तशरीफ़ ले जाते हैं ? मुझे इजाज़त फ़रमाइये मैं जाता हूं’ !

हजरत इमाम ने फ़रमाया: ऐ अली अकबर किस दिल से तुझे मरने की  इजाजत दूं ? किन आंखों से तुमको जख्मों से चूर चूर देखूं !

हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) ने इमाम को कसमें देना और रोना शुरू किया ! आखिर हजरत इमाम ने इजाजत दे दी !और अपने हाथ से उनके बदन पर हथियार लगाये ! जिरह पहनाई ! अमामा सर पर रखा ! पटका कमर पर बांधा और घोडे पर बिठा दिया !

अहले बैत रकाब से आकर लिपट गये ! इमाम ने सबको हटा कर फ़रमाया ! जाने दो कि सफ़रे आखिरत है !  (तनकीहुश-शहादतैन सफा 167 )

हजरत अली अकबर रजियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत

हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु के साहबजादे हज़रत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) रजियल्लाहु तआला अन्हु जब मैदान में तशरीफ़ लाये ! तो दुशमन के लशकर में एक सन्नाटा छा गया !

हजरत अली 18 साल की उम्र शरीफ़ रख़ते थे ! और शक्ल व सूरत में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के बहुत मुशाब: थे !

आपका हुस्न व जमाल व जलाल देखकर दुशमन मुतहय्यर हो गये ! हजरत अली अकबर रजियल्लाहु तआला अन्हु मैदान में पहुंचे ! और रिज़्ज़ख्वानी करने लगे !

आपके सामने कोई न आया ! तो आपने खुद ही दुशमन के लशकर पर हमला कर दिया ! और दुशमन को तितर बितर कर दिया !  देर तक लडते रहे !

और फिर प्यास लगने की वजह से हज़रत इमाम की खिदमत में हाजिर हुए ! और प्यास का जिक्र किया !हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने उनके चेहरे का गर्द व गुबार साफ़ करके रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अंगूठी उनके मुंह में डाल दी !

जिसके चूसने से उम्हें तसकीन हुई ! फिर मेदान में आये ! अक्सर को जहन्नम भेजा ! फिर आप एक मर्तबा हजरत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु के हुजूर आये और प्यास का जिक्र किया !

तो हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु ने उस वक्त रोकर फ़रमाया ! कि जाने पिदर ! ग़म न खा अनकरीब तुम होजे कौसर पर सेराब होगे !

हजरत अली अकबर रजियल्लाहु तआला अन्हु यह बशारत सुनकर फिर मैदान की तरफ़ तशरीफ़ लाये ! और दुशमन के लशकर में घुसकर बहुतों को जहन्नम पहुंचाया !

जब दुशमन ने देखा कि यूं आप पर काबू नहीँ पा सकते ! तो उन्होंने आप को चारों तरफ से घेर लिया ! एक जालिम इब्ने नुमेर ने आपको एक ऐसा नेजा मारा कि आपकी पुश्ते मुबारक से पार हो गया ! आप घोडे से गिर गये !

उस वक्त आपने हजरत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु को पुकारा और फ़रमाया: या अब्बाजान ! अपने अली अकबर की ख़बर लीजिये !

Hazrat Ali Akbar Ki Shahadat

हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने अपने लख्ते जिगर की यह आवाज़ सुनी तो आप दौड़े ! मैदान में जाकर देखा ! कि अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) रजियल्लाहु तआला अन्हु जख्मों से चूर जमीन पर गिरे हुए हैं ! हज़रत इमाम ने वहां बैठकर बेटे का सर अपने जानू पर रखा ओंर फिर

होश आया चंद साअते कामिल के बाद जब

देखा कि मिट रही है शबीहे रसूले रब

आंसू बहा के रख दिये बेटे के लब पे लब

फ़रमाया बेटा छोड़ के जाते हो मुझको अब

दिल से गले लिपटने की हसरत निकाल लो

बाहें उठाके बाप की गर्दन में डाल लो

अकबर ने आंखें खोल के देखा रुखे पिदर

गालों पे अश्क़  आखो से टपके इधर उधर

फ़रमाया शह ने जानू पे रख कर सरे पिसर

रोते हो किस लिए भला ऐ गैरते कमर

यां से उठा कं आले पयम्बर में ले चलू

ग़मे मां का है तो आओं तुम्हें घर में ले चलूं

हजरत अली अकबर रजियल्लाहु तआला अन्हु की शहादत 

हजरत अली अकबर ( Hazrat Ali Akbar ) रजियल्लाहु तआला अन्हु ने आंखें खोलकर कहा-  अब्बाजान ! वह देखिये दादाजान दो प्याले शर्बत के लिये खडे हैं ! और मुझे एक दे रहे हैं ! में कहता हूँ ! कि मुझे दोनो दीजिये कि बहुत प्यासा हूँ !

वह फ़रमाते हैं कि एक तूपी दूसरा तेरे बाप हुसेन (रजियल्लाहु तआला अन्हु ) के लिये है ! कि वह भी बहुत प्यासा है !  यह प्याला वह आकर पियेगा ! यह कहा और आप वहीँ राही-ए…जन्नत हो गये ! इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन !

सबक : हजरत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु बडे ही साबिर

व शुक्र और इस्तिकलाल के मालिक थे !

कि 18 साल के अपने लख्ते जिगर को अल्लाह की राह में कुरबान होने के लिये खुद अपने हाथो तैयार फ़रमाते हैं !और शिकवा शिकायत का कोई लफ़्ज़ तक नहीं लाते !

हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने मैदाने करबला में बहुत बड़ा इम्तिहान दिया ! ओंर आपने उस इम्तिहान में बहुत बडी कामयाबी हासिल की !

इससे आगे पढ़े – नन्हे हज़रत अली असग़र की शहादत का किस्सा 

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