Friday, May 10, 2024
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2 पराठे – एक फ़िक्र अंगेज़ और सबक़ आमोज़ वाक़िया 

2 पराठे – एक फ़िक्र अंगेज़ और सबक़ आमोज़ वाक़िया

अबू नस्र नामी एक शख़्स अपनी बीवी और एक बच्चे के साथ गरीबी की ज़िंदगी बसर कर रहा था ! एक दिन वो अपनी बीवी और बच्चे को भूख़ से निढाल और रोता – बिलकता घर में छोड़कर ख़ुद ग़मों से चूर कहीं जा रहा था ! कि राह चलते चलते उस का सामना एक आलिम ए दीन हज़रत अहमद बिन मिस्कीन से हुआ !

जिसे देखते ही अबू नस्र ने कहा;  – ए शेख़ मैं दुखों का मारा हूँ ! और ग़मों से थक गया हूँ ! शेख़ ने कहा मेरे पीछे चले आओ ! हम दोनों समुंदर पर चलते हैं !

समुंदर पर पहुंच कर शैख़-साहब ने उसे दो रकअत नफ़ल नमाज़ पढ़ने को कहा ! नमाज़ पढ़ चुका ! तो उसे एक जाल देते हुए कहा इसे बिस्मिल्लाह पढ़ कर समुन्दर में फेंक दो !

जाल में पहली बार ही एक बड़ी अज़ीम मछली फंस कर बाहर आ गई ! शैख़-साहब ने अबू नस्र से कहा इस मछली को जा कर फ़रोख़त (sale) करो ! और हासिल होने वाले पैसों से अपने घर वालो के लिए कुछ खाने पीने का सामान ख़रीद लेना !

Islamic Story 2 Parathe

अबू नस्र ने शहर जा कर मछली फ़रोख़त की ! हासिल होने वाले पैसों से एक क़ीमे वाला ! ओर एक मीठा पराठा ख़रीदा ! और सीधा शेख़ अहमद बिन मिस्कीन के पास गया ! और कहा कि हज़रत इन पराठों में से कुछ क़बूल कीजिए !

शैख़-साहब ने कहा – अगर तुमने अपने खाने के लिए जाल फेंका होता ! तो किसी मछली ने नहीं फँसना था ! ओर मैंने तुम्हारे साथ नेकी गोया अपनी भलाई के लिए की थी ना कि किसी मज़्दूरी के लिए !

तुम ये पराठे लेकर जाओ ! और अपने घर वालो को खिलाओ ! अबू नस्र पराठे लिए ख़ुशी ख़ुशी अपने घर की तरफ़ जा रहा था कि उसे ने रास्ते में भूख़ से मारी एक औरत को रोते देखा ! जिसके पास ही उसका बेहाल बेटा भी बैठा था !

अबू नस्र ने अपने हाथों में पकड़े हुए पराठों को देखा और अपने आपसे कहा कि: – इस औरत और इस के बच्चे और मेरे अपने बच्चे और बीवी मैं क्या फ़र्क़ है ? मुआमला तो एक जैसा ही है ! वो भी भूखे हैं और ये भी भूखे हैं ! पराठे किन को दूं ?

औरत की आँखों की तरफ़ देखा तो उस के बहते आँसू ना देख सका ! और अपना सर झुका लिया ! पराठे औरत की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा ये लो ! ख़ुद भी खाओ और अपने बेटे को भी खिलाओ, ! औरत के चहरे पर खुशी, ओर उसके बेटे के चेहरे पर मुस्कुराहट फ़ैल गई ।

अबु नस्र ग़मगीन दिल लिए वापस अपने घर की तरफ़ ये सोचते हुए चल दिया कि अपने भूके बीवी बेटे का कैसे सामना करेगा?

2 पराठे – एक फ़िक्र अंगेज़ और सबक़ आमोज़ वाक़िया 

घर जाते हुए रास्ते में इस ने एक ऐलान करने वाला देखा जो कह रहा था ! है कोई जो उसे अबू नस्र से मिला दे ! लोगों ने उस से कहा: – ये देखो यही तो है अबू नस्र

उसने अबु नस्र से कहा; तेरे बाप ने मेरे पास आज से बीस साल पहले तीस हज़ार दिरहम अमानत रखे थे ! मगर ये नहीं बताया था कि इन पैसों का करना कया है ? जब से तेरा वालिद फ़ौत हुआ है ! मैं तुझे ढूंढता फिर रहा हूँ कि कोई मेरी मुलाक़ात तुझसे करा दे !

आज मैंने तुम्हें पा ही लिया है ! तो ये लो तीस हज़ार(30,000) दिरहम ! ये तेरे बाप का माल है !

अबु नस्र कहता है ! मैं बैठे बिठाए अमीर हो गया ! मेरे कई घर बने और मेरा कारोबार फ़ैलता चला गया ! मैंने कभी भी अल्लाह के नाम पर देने में कंजूसी नहीं की एक ही बार में शुक्राने के तौर पर हज़ार हज़ार(1000) दिरहम सदक़ा दे दिया करता था ।

मुझे अपने आप पर रश्क आता था कि अल्लाह पाक की फ़ज़ल व अता से कैसे फ़राख़दिली से सदक़ा ख़ैरात करने वाला बन गया हूँ  !

एक-बार मैंने ख्वाब देखा कि हिसाब किताब का दिन आ पहुंचा है,और मैदान में तराज़ू नसब कर दिया गया है ! ऐलान करने वाले ने आवाज़ दी अबु नस्र को लाया जाये और उसके गुनाह-ओ-सवाब तोले जाएं ! कहता है;  ! पलड़े में एक तरफ़ मेरी नेकियां और दूसरी तरफ़ मेरे गुनाह रखे गए ! तो गुनाहों का पलड़ा भारी था ।

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मैंने पूछा आख़िर कहाँ गए मेरे सदक़ात जो मैं अल्लाह की राह में देता रहा था ?  तौलने वालों ने मेरे सदक़ात नेकियों के पलड़े में रख दिए ! हर हज़ार, हज़ार दिरहम के सदक़ा के नीचे नफ़स की शहवत, मेरी ख़ुद-नुमाई की ख़ाहिश और रिया कारी का रंग चढ़ा हुआ था ! जिसने इन सदक़ात को रुइ से भी ज़्यादा हल्का बना दिया था ।

मेरे गुनाहों का पलड़ा अभी भी भारी था ! मैं रो पड़ा और कहा हाय रे मेरी नजात कैसे होगी ? ऐलान करने वाले ने मेरी बात को सुना तो फिर पूछा; है कोई बाक़ी उस का अमल तो ले आओ.

मैंने सुना के एक फ़रिश्ता कह रहा था हाँ ! उस के दिए हुए दो पराठे हैं जो अभी तक मीज़ान में नहीं रखे गए ! वो दो पराठे तराज़ू पर रखे गए तो नेकियों का पलड़ा उठा ज़रूर मगर अभी ना तो बराबर था और ना ही ज़्यादा ।

ऐलान करने वाले ने फिर पूछा; है इसका और कोई अमल ?  फ़रिश्ते ने जवाब दिया हाँ उस के लिए अभी कुछ बाक़ी है ! ऐलान करने वाले ने पूछा वो क्या ? कहा उस औरत के आँसू जिसे इसने अपने दो पराठे दिए थे ! औरत के आँसू नेकियों के पलड़े में डाले गए ! जिनके पहाड़ जैसे वज़न ने तराज़ू के नेकियों वाले पलड़े को गुनाहों के पलड़े के बराबर ला कर खड़ा कर दिया ।

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अबु नस्र कहता है मेरा दिल ख़ुश हुआ कि अब नजात हो जाएगी ! ऐलान करने वाले ने पूछा है कोई और बाक़ी अमल इसका ?

फ़रिश्ते ने कहा; हाँ, अभी उस बच्चे की मुस्कराहट को पलड़े में रखना बाक़ी है जो पराठे लेते हुए उस के चेहरे पर आई थी ! मुस्कुराहट को पलड़े में रखी गई नेकियों वाला पलड़ा भारी से भारी होता चला गया ।

ऐलान करने वला बोल उठा ! ये शख़्स नजात पा गया है ! अबु नस्र कहता है; मेरी नींद से आँख खुल गई और मैंने अपने आपसे कहा; ए अबु नस्र आज तुझे तेरे बड़े बड़े सदक़ों ने नहीं बल्कि आज तुझे तेरे 2 पराठो ने बचा लिया !

मेरे प्यारे अज़ीज़ो और दोस्तों

इस वाक़िये से हमें सबक लेना चाहिए ! अल्लाह का फ़ज़लो करम और मुस्तफ़ा जान-ए-रहमत के फ़ैज़ान ने अगर आपको अमीर दौलत मंद कर दिया है ! तो ख़ुदारा ख़ुलूस के साथ अपनी दौलत का सही इस्तिमाल करें ।

आपके माल व दोलत पर अगर आपका, आपके अहल-ए-ख़ाना, आपके रिश्तेदारो का हक़ है ! तो उसी दौलत पर गरीबो का भी हक़ है ।

( अल्लाह पाक इरशाद फ़रमाता है  وَ فِیْۤ اَمْوَالِهِمْ حَقٌّ لِّلسَّآىٕلِ وَ الْمَحْرُوْمِ )

लिहाज़ा बग़ैर शौहरत व नामवरी और बग़ैर सेल्फी के, हक़दार को उसका हक़ दें ! ताकि किसी की इज़्ज़त-ए-नफ़स मजरूह ना हो और रब की बारगाह  मे ये नेकी मक़बूल हो ।

मेरे भाईयों और बहनो ये नाज़ुक तरीन वक़्त इम्तिहान का है ! ग़रीबों की ग़ुर्बत व सब्र का इम्तिहान ! अमीरों मालदारो के ख़ुलूस व सख़ावत का इमतिहान ! आख़िर में ऐक छोटी सी दरख़ास्त पढ़ने के बाद इसे दुसरों तक ज़रूर पहुंचा दें ताकि कोई और भी फ़ायदा उठा  सके ।

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