Friday, May 10, 2024
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Ramzan Ke Roze ke Jismani Fayde-रमज़ान के रोज़े के फायदे

रमज़ान के रोज़े रखने के जिस्मानी फायदे  – Ramzan Ke Roze ke Jismani Fayde

*पहले दो रोज़े:* Ramzan Ke Pahle 2 Roze

पहले ही दिन ब्लड शुगर लेवल गिरता है ! यानी ख़ून से चीनी के ख़तरनाक असरात का दर्जा कम हो जाता है।

दिल की धड़कन सुस्त हो जाती है ! और ख़ून का दबाव कम हो जाता है ! नसें जमाशुदा ग्लाइकोजन को आज़ाद कर देती हैं ! जिसकी वजह से जिस्मानी कमज़ोरी का एहसास उजागर होने लगता है ! ज़हरीले माद्दों की सफ़ाई के पहले मरहले के नतीज़े में सरदर्द, सर का चकराना, मुंह का बदबूदार होना और ज़बान पर मवाद जमा होता है।

*तीसरे से सातवें रोज़े तक:* Ramzan Ke 3 Se 7 Roze

जिस्म की चर्बी टूट फूट का शिकार होती है ! और पहले मरहले में ग्लूकोज में बदल जाती है ! कुछ लोगों में चमड़ी मुलायम और चिकना हो जाती है ! जिस्म भूख का आदी होना शुरु हो जाता है ! और इस तरह साल भर मसरूफ़ रहने वाला हाज़मा सिस्टम छुट्टी मनाता है।

ख़ून के सफ़ेद जरासीम (white blood cells) और इम्युनिटी (रोग प्रतिकार शक्ति) में बढ़ोतरी शुरू हो जाती है, हो सकता है ! रोज़ेदार के फेफड़ों में मामूली तकलीफ़ हो ! इसलिए कि ज़हरीले माद्दों की सफ़ाई का काम शुरू हो चुका है ! आंतों और कोलोन की मरम्मत का काम शुरू हो जाता है ! आंतों की दीवारों पर जमा मवाद ढीला होना शुरू हो जाता है।

Ramzan Ke Roze ke Jismani Fayde

*आठवें से पंद्रहवें रोज़े तक:* Ramzan ke 8×15 Roze

आप पहले से चुस्त महसूस करते हैं ! दिमाग़ी तौर पर भी चुस्त और हल्का महसूस करते हैं, हो सकता है कोई पुरानी चोट या ज़ख़्म महसूस होना शुरू हो जाए ! इसलिए कि आपका जिस्म अपने बचाव के लिए पहले से ज़ियादा एक्टिव और मज़बूत हो चुका होता है ! जिस्म अपने मुर्दा सेल्स को खाना शुरू कर देता है ! जिनको आमतौर से कीमोथेरेपी से मारने की कोशिश की जाती है। इसी वजह से सेल्स में पुरानी बीमारियों और दर्द का एहसास बढ़ जाता है ! नाड़ियों और टांगों में तनाव इसी अमल का क़ुदरती नतीजा होता है ! जो इम्युनिटी के जारी अमल की निशानी है !

रोज़ाना नमक के ग़रारे नसों की अकड़न का बेहतरीन इलाज है।

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सोलहवें से तीसवें रोज़े तक – 16×30 Roze

जिस्म पूरी तरह भूक और प्यास को बर्दाश्त का आदी हो चुका होता है। आप अपने आप को चुस्त, चाक व चौबंद महसूस करते हैं।

इन दिनों आप की ज़बान बिल्कुल साफ़ और सुर्ख़ हो जाती है। सांस में भी ताज़गी आ जाती है। जिस्म के सारे ज़हरीले माद्दों का ख़ात्मा हो चुका होता है, हाज़में के सिस्टम की मरम्मत हो चुकी होती है। जिस्म से फ़ालतू चर्बी और ख़राब माद्दे निकल चुके होते हैं। बदन अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने फ़राएज़ अदा करना शुरू कर देता है।

बीस रोज़ों के बाद दिमाग़ और याददाश्त तेज़ हो जाते हैं ! तवज्जो और सोच को मरकूज़ करने की सलाहियत बढ़ जाती है ! बेशक बदन और रूह तीसरे अशरे की बरकात को भरपूर अंदाज़ से अदा करने के क़ाबिल हो जाते हैं ! ( शब ए क़द्र भी बीसवें रोज़े के बाद है )

यह तो दुनिया का फ़ायदा रहा जिसे बेशक हमारे ख़ालिक़ अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमारी ही भलाई के लिए हम पर वाजिब किया ! मगर देखिए उसका अंदाज़े करीमाना कि उसके एहकाम मानने से दुनिया के साथ साथ हमारी आख़िरत भी संवारने का बेहतरीन बंदोबस्त कर दिया।

सुब्हानल्लाहि व बेहम्दिहि सुब्हानल्लाहिल अज़ीम

अल्लाह हुम्मा अज्जील ले वलियेकल फ़रज

इस मुबारक माहे रमजान में पूरी उम्मत के लिए दुआ करें

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