Friday, May 10, 2024
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ayat e karima in hindi – ayat e kareema hindi mein

ayat e karima आयते करीमा – आयते करीमा की बड़ी ही फ़ज़ीलत है ! जब भी कोई मुश्किल आन पढ़े ! हमें आयते करीमा ( ayat e kareema ) का विर्द करते रहना चाहिए !

आयते करीमा ( ayat e karima ) पढ़ने के बहुत फायदे है ! जिनमे से कुछ हम यहाँ बता रहे है !

आयते करीमा की फ़ज़ीलत – 

  • आयते करीमा ( ayat e karima ) पढ़ने से ज़हनी सुकून हासिल होता है !
  • इंसान के माल में बेपनाह बरक़त होती है ! इंसान अगर आयते करीमा पढ़कर अपने माल पर फूंक मार दे तो उस माल में बहुत बरक़त होगी !
  • अगर कोई बीमार शख्स को आयते करीमा पढ़कर दम किया हुआ पानी पिलाया जाए तो इंशा अल्लाह वह ठीक हो जाए
  • रिज़्क़ में इज़ाफ़ा के लिए भी आयते करीमा का विर्द करते रहना चाहिए !
  • अच्छा रोज़गार हासिल करने के लिए आयते करीमा का विर्द करते रहना चाहिए !

हज़रते सय्यिदुना सा’द रज़ियल्लाहुतआला अन्हु से रिवायत कि शहंशाहे खुश खिसाल , पैकरे हुस्नो जमाल , दाफेए  रंजो मलाल , साहिबे जूदो नवाल, रसूले बे मिसाल , बीबी आमिना के लाल हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया – हज़रते जुन्नून यानी हज़रते यूनुस अलैहिस्सलाम ने मछली के पेट में यह कलिमात ( ayat e karima ) कहे !

ayat e karima in hindi

ला इला-ह इल्ला अन्त सुब्हानक इन्नी कुन्तु मिनज़्ज़ालिमीन *

तर-ज-मए कंज़ुल ईमान  – कोई माबूद नहीं सिवा तेरे पाकी है तुझको बेशक मुझसे बे जा हुवा !

या – ए अल्लाह ( अज़्ज़वजल ) ! तेरे सिवा कोई माबूद नहीं , तू पाक है , बेशक मैं  जुर्म ( अत्याचार ) करने वालों में से हूँ !

 

लिहाज़ा जो मुस्लमान इन कलिमात ( ayat e karima ) के साथ किसी मक़सद के लिए दुआ मांगे अल्लाह तआला उस की दुआ क़ुबूल फ़रमाता है !

बीमार शख्स बीमारी की हालत में चालीस मर्तबा यह दुआ ( ayat e karima ) पढ़े ! हदीस शरीफ में आया है की जिस मुसलमान ने बीमारी की हालत में चालीस मर्तबा यह मुबारक आयत पढ़ ली ! और  उसी बीमारी में उसका इंतकाल हो गया ! तो चालीस शहीदों के बराबर सवाब पायेगा ! और अगर तंदुरुस्त गया तो उसके तमाम गुनाह बख़्श दिए जाएंगे !

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सख़्त मुसीबत हो या किसी परेशानी का कोई हल नहीं निकलता है ! या वाक़ई हमारी जायज़ हाज़त हो तो आयते करीमा ( ayat e karima ) का दौर करवाना चाहिए और दुआ करना चाहिए !  दिल से निकली हुई दुआ अल्लाह ( अज़्ज़वजल ) कभी रद्द  करते !

मेरे प्यारे दोस्तों कोई भी अमल इंसान करता है ! उसे नेक नियति से करना चाहिए ! कोशिश करे हर हाल में नमाज़ क़ज़ा ना हो !

क़ुरआन शरीफ की तिलावत में कोताही ना करो ! एक रुकू ही पढ़ो मगर रोज़ाना का मामूल होना चाहिए ! क्यूंकि क़ुरआन में ही शिफा है ! और क़ुरआन पढ़कर मांगी गयी दुआ कभी रद्द नहीं होती !

इस्लाम ये तालीम देता है की सबसे पहले फ़र्ज़ अदा करे ! फिर वाज़िब और फिर सुन्नत ! अगर आप कोई नमाज़ नहीं पढ़ते सिर्फ किसी भी वज़ीफ़ा को तरजीह देते है ! तो ये सही तरीका नहीं है !

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