हज़रत मुहम्मद सल्ललाहो अलैहि व सल्लम का आखरी खुत्बा
मैदान-ए-अराफ़ात (मक्का) में 9 ज़िल्हिज्ज् ,10 हिजरी को हज़रत मुहम्मद सल्ललाहु अलैहि वसल्लम ने हज का आखरी ख़ुत्बा दिया था। बहुत अहम पैगाम दिया था। गौर से पढ़े हर बात बार बार पढ़े सोचे कि कितना अहम पैगाम दिया था ! हज़रत मोहम्मद सल्ललाहु अलैहि व सल्लम ने –
1. ऐ लोगो ! सुनो, मुझे नही लगता के अगले साल मैं तुम्हारे दरमियान मौजूद हूंगा ! मेरी बातों को बहुत गौर से सुनो ! और इनको उन लोगों तक पहुंचाओ जो यहां नही पहुंच सके।
2. ऐ लोगों ! जिस तरह ये आज का दिन ये महीना ! और ये जगह इज़्ज़त ओ हुरमत वाले हैं! बिल्कुल उसी तरह दूसरे मुसलमानो की ज़िंदगी ! इज़्ज़त और माल हुरमत वाले हैं। ( तुम उसको छेड़ नही सकते )
3. लोगों के माल और अमानतें उनको वापस कर दो।
4. किसी को तंग न करो, किसी का नुकसान न करो, ताकि तुम भी महफूज़ रहो।
5. याद रखो, तुम्हे अल्लाह से मिलना है, और अल्लाह तुम से तुम्हारे आमाल के बारे में सवाल करेगा।
6. अल्लाह ने सूद(ब्याज) को खत्म कर दिया, इसलिए आज से सारा सूद खत्म कर दो। (माफ कर दो )
7. तुम औरतों पर हक़ रखते हो ! और वो तुम पर हक़ रखती है ! जब वो अपने हुक़ूक़ पूरे कर रही हैं ! तो तुम भी उनकी सारी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करो।
8. औरतों के बारे में नरमी का रवय्या अख्तियार करो ! क्योंकि वो तुम्हारी शराकत दार और बेलौस खिदमत गुज़ार रहती हैं।
9. कभी ज़िना के करीब भी मत जाना
हज़रत मुहम्मद सल्ललाहो अलैहि व सल्लम का आखरी खुत्बा
10. ऐ लोगों !! मेरी बात ग़ौर से सुनो, सिर्फ अल्लाह की इबादत करो !
5-फ़र्ज़ नमाज़ें पूरी करो ! रमज़ान के रोज़े रखो ! और ज़कात अदा करते रहो ! अगर इस्तेताअत हो तो हज करो।
11. हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है। तुम सब अल्लाह की नज़र में बराबर हो। बरतरी सिर्फ तक़वे की वजह से है।
12. याद रखो ! तुम सब को एक दिन अल्लाह के सामने अपने आमाल की जवाबदेही के लिए हाज़िर होना है, खबरदार रहो ! मेरे बाद गुमराह न हो जाना।
13. *याद रखना ! मेरे बाद कोई नबी नही आने वाला ! न कोई नया दीन लाया जाएगा, मेरी बातें अच्छी तरह समझ लो।*
14. मैं तुम्हारे लिए दो चीजें छोड़ के जा रहा हूँ, क़ुरआन और मेरी सुन्नत, अगर तुमने उनकी पैरवी की तो कभी गुमराह नही होंगे।
15. सुनो ! तुम लोग जो मौजूद हो, इस बात को अगले लोगों तक पहुंचाना ! और वो फिर अगले लोगों तक पहुंचाए । और ये मुमकिन है ! के बाद वाले मेरी बात को पहले वालों से ज़्यादा बेहतर समझ ( और अमल ) कर सके ।
फिर आपने आसमान की तरफ चेहरा उठाया और कहा
16. *ऐ अल्लाह ! गवाह रहना, मैंने तेरा पैग़ाम तेरे बंदों तक पहुंचा दिया*
हम पर भी फ़र्ज़ है इस पैगाम को सुने, समझे, अमल करें और इसको आगे दुसरो तक़ भी भेजे ताकि अहम बाते सीखे
(या रब इसको लिखने वाले, पढ़ने वाले ओर दुसरो तक़ पहुचानें वाले की परेशानियों दूर कर !और उनको दुनिया और आखिरत में कामयाबी अता कर और तेरे सिवा किसी का मोहताज ना बना….
( आमीन या रब्बुल आलमीन )
*( सही अल-बुखारी, हदीस न. 1623 )