हजरते आसिया का ईमान – Firon Ki Bivi Hazrat Aasiya Ka Iman
हज़रते आसिया ( Hazrat e Aasiya ) रदियल्लाहु तआला अन्हा ने अपना ईमान अपने शोहर फ़िरऔन ( firon) से छुपाया था ! जब फ़िरऔन को इस का पता चला तो उस ने हुक्म दिया ! कि इसे गूना-गूं अज़ाब दिये जाएं ! ताकि हज़रते आसिया ईमान को छोड़ दें !
लेकिन हज़रते आसिया ( Hazrat e Aasiya ) साबित कदम रहीं ! तब फ़िरऔन ( firon) ने मीखें मंगवाई और इन के जिस्म पर मीखें गड़वा दी ! और फ़िरऔन कहने लगा : अब भी वक्त है *ईमान* को छोड़ दो !
मगर हज़रते आसिया ( Hazrat e Aasiya ) ने जवाब दिया तू मेरे वुजूद पर कादिर है ! लेकिन मेरा दिल मेरे रब की पनाह में है ! अगर तू मेरा हर उज़्ब काट दे तब भी मेरा इश्क बढ़ता जाएगा !
मूसा अलैहिस्सलाम का वहां से गुज़र हुवा ! आसिया ( Hazrat e Aasiya ) ने मूसा से पूछा : मेरा रब मुझ से राजी है या नहीं ? हज़रते मूसा . ने फरमाया : ऐ आसिया ! आस्मान के फ़िरिश्ते तेरे इन्तिज़ार में हैं
और अल्लाह तआला तेरे कारनामों पर फ़ख़्र फ़रमाता है, सुवाल कर तेरी हर हाजत पूरी होगी। आसिया ने दुआ मांगी : ऐ मेरे रब मेरे लिये अपने जवारे रहमत में जन्नत में मकान बना दे ! मुझे फ़िरऔन ( firon), उस के मज़ालिम और ज़ालिम लोगों से नजात अता फरमा ।
Firon Ki Bivi Hazrat Aasiya Ka Iman
हज़रते सलमान रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं : आसिया ( Hazrat e Aasiya ) को धूप में अज़ाब दिया जाता था ! जब लोग लौट जाते तो फ़िरिश्ते अपने परों से आप पर साया किया करते थे ! और वोह अपने जन्नत वाले घर को देखती रहती थीं।
हज़रते अबू हुरैरा رَضِىَ اللّٰهُ تَعَالٰى عَنٔه कहते हैं कि जब फ़िरऔन ( firon) ने हज़रते आसिया ( Hazrat e Aasiya ) को धूप में लिटा कर चार मीखें इन के जिस्म में गड़वाई ! और इन के सीने पर चक्की के पाट रख दिये गए ! तो हज़रते आसिया ने आस्मान की तरफ़ निगाह उठा कर अर्ज की :
तर्जमा- “ऐ मेरे रब मेरे लिये अपने पास जन्नत में घर बना ! और मुझे फ़िरऔन ( firon) और उस के काम से नजात दे ! और मुझे ज़ालिम लोगों से नजात बख़्श” (कंज़ुल ईमान)
हज़रते हसन رَضِىَ اللّٰهُ تَعَالٰى عَنٔه कहते हैं अल्लाह तआला ने इस दुआ के तुफैल आसिया ( Hazrat e Aasiya ) को फ़िरऔन ( firon) से बा इज्जत रिहाई अता फ़रमाई ! और इन को जन्नत में बुला लिया ! जहां वोह जी हयात की तरह खाती पीती हैं।
*इस हिकायत से येह बात वाजेह हो गई कि मसाइब और तकालीफ़ में अल्लाह की पनाह मांगना ! उस से इल्तिजा करना और रिहाई का सुवाल करना मोमिनीन और सालिहीन का तरीका है।*
मुकाशफतुल क़ुलूब
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