karbala Ka Waqiya – शेर का हमला
हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु के जब अहबाब व अकारिब सब शहीद हो गये ! तो हजरत इमाम खुद मैदान में तशरीफ़ लाये ! और पहले कूछ रिज्जिया अशआर पढे !
फिर लशकर इब्ने सअद से इत्मामे हुज्जत के लिये बहुत कूछ फ़रमाया ! मगर वह जालिम न माने और बहरहाल लड़ने पर आमादा हुए ! सब अपनी तलवारें और नेजे चमका कर बढे !
हजरत इमाम ने जुल्किकार ( तलवार ) म्यान से निकाली और दुशमनों पर हमला कर दिया ! अल्लाह ! अल्लाह ! यह हमला क्या था अल्लाह के शेर का हमला था !
जो आपके मुकाबले में आया उसे सीधा जहन्नम में पहुंचा दिया ! सैकडों जफाकारों से लडे ! और सैकडों को जहन्नम में पहुंचा दिया ! जिस तरफ निगाह पलटी सफ़-की-सफ़ उलट दी’!
karbala Ka Waqiya
चली शाहे दीं की ग़र्ज़ जुल्फ़ीकार
न पैदल रहा सामने, न सवार
यहां तक किया जालिमो को हलाक
छुपाया लइनो ने मुंह जेरे खाक
दिए रन करें पलटे दम ब दम
शुजाअत ने भी आ के चूमे क़दम
दिलेर ऐसा है और न होगा कोई
सुना आज तक, न देखा कोई
हजारों की कुश्तो के पुश्ते बंधे
तो जिन्दो को जानो के लाले पडे
सुनो! उस दिलावर की यह शान है
कि रुस्तम की भी रूह कुरबान है !
(तनक़ीह सफा 80 )
सबक : हजरत इमाम आली मकाम रजियल्लाहु अन्हु बडे ही बहादुर व शुजा, दिलेर और शेर के बेटे शेर थे !