Monday, May 13, 2024
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10 vi Muharram Imam Hussain Ki Shahadat Ka Din

10 vi Muharram Imam Hussain Ki Shahadat Ka Din

मेदाने करबला में दसवीं मुहर्रम को जब हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु के जुमला अहबाब व अकारिब शहीद हो गये ! तो हज़रत इमाम हुसैन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने खुद पोशाक बदली !

कुबाए मिस्री पहनी ; अमामा रसूले खुदा बांधा सपरे (ढाल) हमजा और जुलफिकारे हैदरे कर्रार (तलवार) लेकर घोडे पर सवार होकर मैदान में जाने का इरादा किया ।

इतने में हज़रत के साहबजादे हजरत अली औसत यानी हजरत इमाम जैनुल आबिदीन रजियल्लाहु तआला अन्हु जो उस वक्त बीमार थे ! और कमजोरी है की वजह से उठ न सकते थे !

बडी मुश्किल से असा (लाठी) थामे हुए ! कमजोरी की वजह से लडखडाते हुए ! हजरत इमाम’ के पास आकर अर्ज़ करने लगे ! कि अब्बाजाना मेरे होते हुए आप क्यो तशरीफ़ ले जा रहे हैं ? मुझे भी हुक्म दीजिये ! कि मैं भी दर्जाए शहादत हासिल कर लूं ! और हाँ अपने भाईयों से जा मिलू !

इमाम यह गुफ्तगू सुनकर आबदीदा हो हैं गये ! इरशाद फ़रमाया ऐ राहते जाने हुसेन लुम खेमे अहले-बैत में जाकर  बैठो ! और शहादत का इरादा न करो !

बेटा रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम की नस्ल तुम्हारे जीने ही से बाकी रहेगी ! क्यामत तक मुन्कता न होगी (ख़त्म न होगी)

हज़रत इमाम का यह इरशाद सुनकर साहबजादे खामोश हो गए ! फिर हजरत इमाम ने उनको नसीहत व वसीयत करके तमाम उलूम जाहिरी व बातनी ओर राज़े इमामत से आगाह फ़रमाया जो तरीका तालीम सीना ब सीना रसूले मकबूल सल्लल्लाहु अलेहि वसल्लम से जारी हुआ था ! सब उसी वक्त उन पर मुन्कशिफ़ फरमा दिया ।

फिर आप खेमे के अंदर तशरीफ़ लाये और अहले-बैत की तरफ़ मुखातिब होकर हर एक से अलविदाई कलाम फ़रमाया ।

बकौल शायर: 10 vi Muharram

अलविदा ऐ अहले बैते मुस्तफा

अलविदा ऐ आले पयम्बर *अलविदा!

फिर गले लिपट के आबिद से कहा

ऐ मेरे बीमार दिलबर !अलविदा!

जैनब व कुलसूम से यह फिर कहा

अब है तुम से भी बिरादर अलविदा

.बोले फिर बाली सकीना से हुसेन

ऐ मेरी मज़लूम दुख्तर अलविदा

शहरबानो से यही कहते थे शाह

ऐ मेरी ग़मख़्वार मुजतर अलविदा

बस खुदा हाफिज तुम्हारा दोस्ती

साबिर व मज़लूम मुज़तर अलविदा

(तनकीहुश-शहादतेन सफा 78 )

सबक –

हजरत इमाम जैनुल आबिदीन बीमारी के आलम में भी जज़्बाए जिहाद और शहादत की तड़प का इजहार फ़रमाते हैं !

फिर जो उनका नाम लेवा होकर तंदरुस्ती के आलम में भी नमाज़ तक को न जाये तो वह किस कद्र गाफिल है ? हजरत जैनुल आबिदीन के बीमार होने में यह हिकमत छुपी थी कि आपसे नस्ल चलना थी !

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