Saturday, May 11, 2024
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Shab E Barat माहे शाबान और शबे बरात की फजीलत

माहे शाबान की फ़ज़ीलत –  SHABAN KI FAZILAT

हज़रत अबू ओमामा बाहली रदियल्लाहो अन्हो फरमाते हैँ ! अल्लाह कें रसूल ने फ़रमाया -” जब शाबान (Shaban)का महीना आ जाए ! तो अपने बदन पाक रखो ! अपनी नियतें अच्छी रखो ! उन्हे हसीन बनाओ ! यह रमज़ान कें मुबारक महीने के इस्तकबाल का महीना है । इसी महीने की पंद्रहवी तारीख को शबे बरात (Shab E Barat) मनाई जाती है !

अल्लाह कें प्यारे रसूल इस महीने में खूब रोजा रखा करते थे ! _ हज़रत बीबी आइशा फ़रमाती हैं ! मक्की मदनी आका सल्ललाहो अलैहि व सल्लम रोजा रखना शुरू फ़रमाते ! तो बंद करने का नाम नहीं लेते ! और जब रोजा रखना बंद कर देते तो ऐसा लगता कि अब आगे रोज़ा नहीं रखेंगे ।

हज़रत ओसामा रदियल्लाहो अन्हो का बयान हे ! मैंने अल्लाह के रसूल से पूछा -.या रसूलल्लाह ! क्या बात हैँ ! आप रमजान के-बाद सब से ज्यादा शाबान में रोजा रखते हैँ ?

आपने फ़रमाया ! लोग रजब और रमज़ान कें बीच कें महीने ( शाबान ) से गाफिल रहते है ! हालांकि यह ऐसा महीना है ! जिस मे बन्दों के आमाल अल्लाह की बारगाह मे पेश किए जाते हैँ ! इसलिए मैं इस बात को पसंद करता हू ! कि जब मेरे अमाल अल्लाह के दरबार में पेश किए जाए तो से रोजे से हूँ ! यही वजह थी कि हमारे आका इस महीने में ज्यादा से ज्यादा रोजा रखा करते थे !

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Shab E Barat –

कहा गया हे कि फरिश्तों कें लिए साल में दो राते ईद व खुशी के लिए हैं ! जैसे दुनिया में मुसलमानो के लिए दो राते ईद की है …

फरिश्तों की ईद शबे बरात (Shab E Barat) और शबे कद्र (Shab E Qadr) है ! और मोमीनो के लिए ईदुल फ़ित्र और ईदुल अज़्हा की राते ! इसीलिए शाबान की पन्दहवीं रात को फरिश्तों की ईद की रात का नाम दिया गया है !

इस रात की इबादत साल भर के गुनाहों का कफ़्फ़ारा बनती है ! इन रातो में अल्लाह की इबादत करना ! इबादत मे सारी रात ‘गुजार देने की बरकत से गुनाह मुआफ़ हो जाया करते है ! हदीस शरीफ़ में है ! जिसने दोनो ईद और शाबान की 15 वी राते जाग कर इबादत में गुजार दी ! तो उस का दिल कभी नहीं मरेगा !

शबे बरात ( Shab E Barat) को शफाअत की रात भी कहा जाता है ! हदीस शरीफ में है ! प्यारे रसूल ने शाबान की 13 वी रात में अपनी उम्मत की शफाअत की दुआ मांगी ! तो अल्लाह पाक ने अपती रहमत से एक तिहार्ह उम्मत की शफाअत की दुआ क़ुबूल कर ली !

अगली रात 14 र्वी शब मे आपने फिर हम गुनाहगार उम्मतियो की बख़्शीश के लिए दुआ फरमीई ! तो रब्बे कदीर ने ‘ 2 तिहाई उम्मत की शफाअत फरमा दी !

तीसरी रात जिसे शबे बरात ( Shab E Barat) कहा जाता हैं ! आका ने फिर दुआ मांगी तो रब ने पूरी उम्मत की शफाअत की बशारत फरमा दी ! औऱ यह भी फ़रमाया  ! प्यारे ! मैं तुम्हारी शफाअत से उम्मत को बक्श दूंगा ! लेकिन जो आदमी मेरी रहमत से मायूस हो जाएगा ! और गुनाह करता ही रहेगा ! उसे नहीं बख्शूंगा !

Shab E Barat –

इसे बख़्शिश की रात भी कहा जाता है ! जिस मे शिर्क करने वाले और कीना रखने वालो को नहीं बक्शा जाता ! इसे आजादी की रात भी कहा जाता है !

हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहो अन्हो का बयान है ! सरकार ने मुझें हज़रत बीबी आइशा कें घर किसी काम से’ भेजा ! में वहां पहुंचा ! और कहने लगा उम्मुल मोमेनीन ! जल्दी कीजिए क्यों कि आका 15 वी शाबान की रात ( Shab E Barat) के बारे ने कुछ बयान फरमा रहे थे ! मेरी बात सुन कर उन्होंने फ़रमाया ! अनस मेरे पास बैठ जाओ ! मैं 15 वी रात की बात बताती हूँ ।

एक बार की बात है ! इस रात में आका की बारी थी ! सरकार तशरीफ़ लाए ! और मेरे साथ लेट गए मैं सो गयी  1 इत्तेफाक से आंख खुली तो सरकार को अपने बिस्तर पर न पाया । में तलाश में निकली,

मस्जिदे नबवी से गुजरने लगी तो अचानक मेरा पैर ’आपसे लग  गया । मैंने पाया कि आप सज़दे मे सर रख कर यूँ दुआ मांग रहे थे इलाही ! मेरे  बदन और खयालात ने भी तेरा सज़्दा किया । में तुझ पर दिल से ईमान लाया हूं। यह मेरा हाथ है

मेंने अपने इस हाथ से कोई गुनाह का काम नहीं किया ए मेरे अज़ीम रब तुझसे ही हर बड़े काम की उम्मीद की जाती है मेरे बड़े गुनाहों को बक्श दे मेरे इस सर ने तुझे सजदा किया जिसे तूने ही पैदा फरमाया है उसे शक्ल सूरत अता फरमाए उसमें कान और आंख पैदा फरमाए

फिर आपने सजदे से सर उठाया और यूं दुआ मांगने लगे इलाही तू मुझे डरने वाला दिल अता फरमा ! जो शिर्क से पाक साफ हो काफिर व बदबख्त ना हो !

Shab E Barat –

फिर आप सजदे में गिर गए मैंने सुना आप फरमा रहे थे ! ए अल्लाह मैं तेरी नाराजगी से पनाह मांगता हूं ! और तेरी रजा का तलब गार हूं !

फिर जब आपने सर उठाया तो मैं कहने लगी या रसूल अल्लाह आप पर मेरे मां-बाप कुर्बान आप यहां तशरीफ़ फरमा है . और मैं तो वहां कमरे में थी आपने फरमाया उमेरा आज शाहबान की 15वीं रात है ! आज इस रात में अल्लाह पाक अपने कर्म से बेशुमार गुनाहगारों को बक्श देता है !

लेकिन शराब पीने वाले रिश्तेदारीयाँ तोड़ने वाले, बाजा बजाने वाले चुगलखोरो को माफ नहीं फरमाता

शाहबान की 15वीं रात में मलकुल मौत को उन लोगों के नाम लिखवा दिए जाते हैं . जो अगले शाहबान तक मरने वाले होते हैं.

आदमी पेड़ पौधे लगाता है ! औरतों से निकाह करता है ! मकान बनाता है ! हालांकि उसका नाम मुर्दों की लिस्ट में होता है ! और मलकुल मौत इस इंतजार में रहते हैं . कि कब उसका नंबर आए और वह अपना काम कर गुजरे  !

इसलिए हमें चाहिए कि इस रात हम अपने गुनाहों से तौबा करें ! और उस पर साबित क़दम रहने की कोशिश करें ताकि हमारा मेहरबान रब अपने करम से हमें बख्श दे ! आमीन !

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शबे बरात की फजीलत – Shab E Barat Ki Fazilat

शबे बरात (Shab E Barat) में बांट दिया जाता है . हर हिकमत वाला काम हमारे हुक्म से (कुरान )

जिस महीने शबे बरात (Shab E Barat) आती है . उस महीने के बारे में हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का इरशाद है .

माहे शाबान तमाम महीनों से अफजल है ! जिस तरह मैं तमाम नबियों में अफजल हूं ! और फरमाते हैं . रजब (Rajab) अल्लाह का महीना है . और शाबान (Shaban) मेरा महीना है . और रमजान (Ramadan) मेरी उम्मत का महीना है ! सुभान अल्लाह

शबे बरात की इबादत Shab E Barat Ki Ibadat

जब शाहबान (Shaban) की 15 तारीख पाओ ! तो रात में इबादत करो और दिन में रोजा रखो . इसमें शबे बेदारी ( रात में जागकर ) के साथ जिक्रे खुदा व रसूल ! इबादतो रियाज़त, नमाजो तिलावत,सदका व खैरात, तौबा अस्तगफार सलातो सलाम और जियारते कुबूर ( कब्र की जियारत ) व इसाले सवाब करना .

इन सब पर अमल करें.और दोनों जहां की बरकत और नेमतों से मालामाल हो

1. पंद्रहवी शाबान को गुसल करें . फिर सुरमा लगाकर यह दुरूद शरीफ पढ़े.

Shab E Barat Darood Sharif दुरूद शरीफ

अल्लाहुम्मा सल्लि अला सैयिदना व मौलाना मोहम्मदिन नूरि कल मुनीरि व अला आलिही व अस हा बिही  व बारिक व सल्लिम 

shabe barat ka darood

अल्लाह ने चाहा तो इबादत में जिस्म थकान से महफूज रहेगा . और पूरे साल आंखों में कोई तकलीफ नहीं होगी ! इंशा अल्लाह तआला !

2.सबसे पहले तौबाह करें किसी का हक हो तो फौरन अदा करें . कोई मुसलमान नाराज हो तो राजी कर ले और आपस में मुसाफा व मुआंका करके दिल को बिल्कुल साफ कर ले

3.सदका व खेरात करें . कि हुसुले सवाब के साथ साथ सद कात  व खैरात से बलाए रद्द होती हैं !

4. अहलो अयाल की खातिर मदारात करें . अच्छी और उम्दा ग़ीज़ा खाएं . और खिलाए . खुसूसन हलवा पकाए . कि महबूब ए खुदा सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम की पसंदीदा गीजा है.

5. जियारत ए कुबूर के लिए ख़ुसूसन इस रात (Shab E Barat) को अहले सुन्नत के कब्रिस्तान जाना . और तिलावत व ज़िकरो अज़्कार का इसाले सवाब करना . सुन्नते रसूल अले हिस्सलाम है .

6 . जिक्रे खुदा व रसूल की महफिल ए मुनअकिद करना . वाजो नसीहत करना . हम्द व नात शरीफ व  मन्क़बत पढ़ना.  मिलादे पाक बयान करना . और बारगाह ए रिसालत में दरूद ओ सलाम खड़े होकर पेश करना . बड़ी सआदत है. यह काम कुरआन हदीस से साबित खुदा और रसूल को पसंद और अहले सुन्नत व जमाअत का मामूल है.

 7. दुआ इबादत की जान बल्कि खुद एक इबादत है . इसलिए इस रात में खूब दुआएं करना चाहिए . ख़ुसूसन दुआएं निस्फ-शाबान ( Dua E Nisf Shaban ) पढ़नी चाहिए.

दुआए निस्फ़ शअबान – Dua E Nisf Shaban

बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम 

अलाहुम्मा या जल मन्नि  वला यमुत्रु अलैहि ० या जलजलालि वल इकराम 0 या जत्तोलि वल इनआम ० ला इलाहा इला अन्ता ज़हरल्लाजीन ० वजारल मुस्तजिरीन व अमानल खाइफीन 0 अल्लाहुम्मा इन कुन्ता कतब तनी इन्दका फी उम्मिल किताबि शकीय्यन औ महरूमन ओं मतरुदन औ मुक़त्तरन अलय्या फिरिज्क़ 0 फ़म्हु अल्लाहुम्मा बि फ़दलिका शकावती व हिरमानी व तर्दी वक तितारि रिज़्क़ी 0 

व सबितनी इन्दका फी उम्मिल किताबि सईदम मरजूकम मुवफ्फक़ल लिलखैरात 0 फ इन्नका कुल्ता व कौलुकल हक़्क़  फी क़िताबिकल मुन्जल 0 अला लिसानि नबीय्यिकल  मुरसल 0 यम्हुल्लाहु मा यशाउ वयूस्बितु व इन्दहू उम्मुल किताब 0 इलाही बीतजल्लि यिल अअज़म 0 फी लैलतिन्निस्फे मिन शहरि शअबानुल मुक़र्रमल्लती  युफ़ रकु फीहा कुल्लु  अमरिन हकीमिंव व युबरम 0 अन तकशिफा अन्ना मिनल बलाइ वल बलवाई मा नअलमु वमाला नअलम वमा अन्ता बिही अअलम 0 इन्नका अन्तल अअज़्ज़ुल अकरम 0 वसल्ललाहो तआला अला सय्यिदिना मुहम्मदिव व अला आलिही व सहबिहीँ व सल्लम 0 वल हम्दु लिल्लाहि रब्बिल  आलमीन 0  

शबे बरात के नवाफ़िल –Shab E Barat Ki Nafl Namaz

(1) बाद नमाजे मग़रिब छ: रकअत नफ्ल दो-दो की नियत से पढे ! हर रकअत पर सलाम फेरने के बाद यासीन शरीफ़ तीन बार और कुल हुवल्लाहु शरीफ़ (सूरह इखलास ) इक्कीस बार पढे !

पहली मर्तबा सूरए यासीन दराजिये उम्र के लिए (लम्बी उम्र के लिए )

दूसरी मर्तबा वुसअते रिज़्क़ के लिये (रिज़्क़ में बरक़त के लिए ) और तीसरी मर्तबा बलाये दफअ होने के लिए पढे ।

(2) बाद नमाजे इशा बारह रकअत नफ्ल अदा करे । चार रकअत पर सलाम फैरे और हर रकअत में सूरए   फातिहा के बाद कुल हुवल्लाहु शरीफ़ दस मर्तबा पढे ! नमाज़ से फारिग हो कर तीसरा और चौथा कलिमा दस बार और  दरुद शरीफ सो मर्तबा पढे ।

Shab E Barat Ki Namaz

(3) तक़र्रूब  की नियत से (अल्लाह का कुर्ब हासिल करने की नियत से ) गुस्ल करे ! फिर दो रकअत नमाज़ तहिय्यतु वुज़ु पढे ! हर रकअत मे सूरए फातिहा के बाद आयतल कुर्सी एक बार और कुल हुवल्लाहु शरीफ़ तीन बार पढे फिर उसके बाद आठ रकअत नमाज़ नफ्ल दो सलाम (यानी चार -चार रकअत की नियत से ) से पढे,

जिसकी हर रकअत में सूरए फातिहा के बाद हन्ना अन्जलनाहु एकबार और कुल हुवल्लाहु शरीफ़ पच्चीस बार पढे ।

(4) दो-दो रकअत करके सौ रकअत नफ़्ल पढे ! इसकी, बडी फ़जीलत है, (सूरए फातिहा के बाद जो सूरत याद

हो पढे ) हदीस मे आया है कि जो शख्स इस रात में सौ रकअत नफ्ल अदा करेगा तो अल्लाह तआला सौ फरिश्ते उसके लिये मुक़र्रर फरमा देगा ।

उनमें से तीस फरिश्ते उसको जन्नत की खुशखबरी सुनाते रहेंगे, तीस फरिश्ते जहन्नम से वे खोफ्री की बशारत देते रहे’गे , तीस फरिश्ते बला व आफ़त को दफा करते रहेंगे और दस फरिश्ते उस शख्स को शैतान के फ्रितनो से महफूज रखगे !

शबे बरात की फ़तिहा ओर हलवा – Shab E Barat Ki Fatiha Or Halwa 

अहले सुन्नत व जमाअत मौका ब मौका पाकीजा व मरगूब गिजाओ’ पर फातिहा देकर ईसाले सवाब करते है, यह बिहम्बिही तआला कु रआनो अहादीस से साबित है

और खास तौर पर शबे बरात मे अपने अजीजो अकारिब और दीगर बुजुर्गों क्री अरवाहे तय्यिबात को इसाले सवाब के लिये दीगर पसन्दीदा गिजाओ  के अलावा हलवे पर फातिहा देते है, यह जाइज़ व मुबाह ही नहीं बल्कि मस्नून व मुस्तहब है ।

इस सिल्सिले मे हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजियल्लाहो तआला अन्हुमा रिवायत फरमाते है कि _ शबे बरात ने’ मुसलमानो’ की रूहे’ अपने अपने घरों पर आती है’ और कहती है’ ।

Shab E Barat Ki Fatiha

ऐ घर वालो ! हमारे ऊपर रहम करो, हम पर मेहरबानी करो !  आज की रात हमारे लिये कुछ सदका व खैरात करो ! क्योकि हम ईसाले सवाब के मोहताज है ! हमारे नाम से आमाल जारी हैं, (फिर फरमाते हैं) अगर घर वाले हस्बे इस्तिताअत सदका व खैरात फातिहा व ईसाले सवाब करते हैं तो यह रूहें खुशी खुशी उसके हक़ मे’दुआएं खैर करती हुई वापस चली जाती हैं ( और फ़रमाते हैं) अगर यह रूहें कुछ नहीं पाती है तो हसरत व मायूसी के साथ वापस होती है’ ।

बहर हाल मोमिन पाक हलवा उसके अज्जा यानी रवा मेदा घी शक्कर और मेवाजात वगेरह सब पाक और जाइज फिर उस पर कुरआने पाक कीं तिलावते पाक के बाद उसका सवाब पाक लोगों की पाक रूहों को पहुंचाया जाता है और हदीसे पाक से साबित कि रसूले पाक को हलवा पसन्द था

इस लिये पाक लोग पाकीजा हलवा पकाते भी हैं और खाते भी है’ और खिलाते भी हैं । सच फामग्या कुर’आने क़रीम ने

फिर भला बताइये इतनी पाकीजा और नफीस ‘चीज जो अगर कोई नापाक या नाजाइज़ बताये यह कहॉ का

इन्साफ़ है ? (खाना ना जाइज़ नहीं समझते)

पाकीजा चीजो और शीरीनी व्र तबरूकात को नजिस नाज़ाइज़ कहने लिखने और समझने वाले यह कहा करते हें कि सामने रखकर फ़ातिहा देना ग़लत है । तो में उनकों इल्ज़ामी जवाब देता हूँ कि सामने रखना तुम्हारे नज़दीक ग़लत है तो पीठ के पीछे रख लिया करो, लेकिन दुरूद फातिहा करो तो सही ।

खुदा हम सबको हक़ समझने, हक़ कहने औंर हक़ पर काइम रहने की तोफीक़ अता फ़रमाए । (आमीन)

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