Monday, May 20, 2024
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Kin Chijo Se Roza Tut Jata Hai / Kin Chijo Se Roza Nahi Tutta

किन चीज़ों से रोजा टूट जाता है Kin Chijo Se Roza Tut Jata Hai

मस्अला : हुक्का , सिगार , सिग्रेट , पान , तम्बाकु , पीने खाने से रोज़ा ( Roza ) टूट जाता है । अगर्चे पान या तंबाकु की पीक थूक दी हो , क्योंकि इसके बारीक अजजा ज़रूर हलक में पहुंचते है ।

Mas”la : दूसरे का थूक निगल लिया या अपना ही थूक हाथ पर लेकर निगल लिया तो रोज़ा (Roza) टूट गया ।

मस्अला : औरत को बोसा लिया , छुआ , मुबाशरत की , या गले लगाया , और इंजाल हो गया तो इन हालतों में । रोज़ा (Roza) टूट गया ।

मरअलाः कसदन मुंह भर के की और रोज़ादार होना याद है तो रोज़ा (Roza) टूट जाएगा और अगर मुंह भर के न हो तो रोज़ा नहीं टूटेगा ।

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रमजान मुबारक और क़ुरान शरीफ की शफ़ाअत

किन चीज़ो से रोज़ा नहीं टूटता – Kin Chijo Se Roza Nahi Tut’taa

मस्अला : भूल कर खाना खाया , पिया , जिमअ किया रोज़ा (Roza) न टूटा । ख्याह रोज़ा (Roza) फर्ज हो या नफल ।

Mas”la मक्खी , धुवां , गुबार , हलक में जाने से रोज़ा (Roza) नहीं टूटता ! ख़्वाह वह गुबार आटे का ही क्यों न हो जो चक्की पीसने से उड़ता है ।

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मस्अला : तेल , सुर्मा लगाया तो रोजा Roza न टूटा ! अगरचे तेल या सुर्मा का मजा हलक में महसूस होता हो । बल्कि थूक में सुर्मा का रंग भी दिखाई देता हो ! तब भी रोजा (Roza) नहीं टूटता ।

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Mas”la : एहतिलाम हो जाने , या हम बिस्तरी करने के बाद गुस्ल न किया ! और उसी हालत में पूरा दिन गुज़ार दिया ! तो वह नमाज़ो के छोड देने के सबब सख्त गुनहगार होगा ! मगर रोज़ा (Roza) अदा हो जाएगा ।

मस्अला : इंजेक्शन ख्वाह रग में लगाया जाए या गोश्त । में इससे रोज़ा नहीं टूटता ! क्योंकि रोज़ा (Roza) उस चीज़ से टूटता है ! जो जोफे दिमाग या जोफे मेअदा तक मंफज से पहुंचे ! और इंजेक्शन से गोश्त या रग में जो दवा पहुंची ! वह गैर मंफज़ से है ! लिहाजा यह मुफसिदे सौम नहीं ।

Kin Chijo Se Roza Nahi Tut’taa

Mas”la : खून निकलवाने या कहीं जखम हो जाने से रोज़ा नहीं टूटता है , हां ! रोज़ा (Roza) की हालत में खून नहीं निकलवाना चाहिए कि रोजा (Roza) की हालत में ऐसा काम मकरूह है जिससे कमजोरी आए । रग के ज़रिये खून चढ़ाने से भी रोजा न टूटेगा ।

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मस्अला : मंजन करना रोजा (Roza) की हालत में मकरूह है ! बल्कि इसका कोई जर्रा हलक से नीचे चला गया तो रोज़ा (Roza) टूट जाएगा ।

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Mas“la : औरत की तरफ बल्कि उसकी शर्मगाह की तरफ नज़र की मगर हाथ न लगाया ! और इंजाल हो गया या बार बार जिमअ के ख्याल से इंजाल हो गया ! तो रोजा नहीं टूटा ।

मस्अलाः तिल या तिल के बराबर कोई चीज चबाई ! और थूक के साथ हलक से उतर गई तो रोजा (Roza) ना टूटा ! मगर उस चीज़ का मजा हलक में मेहसूस होता हो तो रोज़ा (Roza) टूट जायेगा ।

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जिन सूरतों में सिर्फ कजा लाज़िम है । Kin Surto Me Kaza Lazim Hai ?

मस्अला : यह गुमान था कि अभी सुवह नहीं हुई ! इसलिए खा लिया या पिया या जिमअ कर लिया ! और बाद में मालूम हुआ ! कि सुबह हो चुकी थी तो कज़ा लाज़िम है । यानी उस रोजे के बदले बाद रमजान एक रोज़ा (Roza) रखना पड़ेगा ।

Mas”la : मुसाफिर ने इकामत की , हैज व नफास वाली औरत पाक हो गई ! मरीज था अच्छा हो गया ! काफिर था मुसलमान हो गया ! मजनून को होश आ गया ! नाबालिग था बालिग हो गया ! इन सब सूरतों में जो कुछ दिन का हिरसा वाकी रह गया हो ! उसे रोजा (Roza) की मिस्ल गुज़ारना वाजिब है ।

मस्अला : हैज व नफास वाली औरत सुबह सादिक के बाद पाक हो गई ! अगर्चे जहव-ए-कुबरा से पेश तर हो और । रोज़ा की नियत कर ली ! तो आज का रोज़ा (Roza) न हुआ न फर्ज । न नफिल और मरीज या मुसाफिर ने नियत कर ली ! या मजनून था ! होश में आकर नियत कर ली ! तो इन सब का रोजा हो गया ।

Mas”la : मय्यत के रोजे कजा हो गए थे ! तो उसका वली उसकी तरफ से फ़िदया अदा करे ! यानी जबकि वसियत की और माल छोड़ा हो ! वरना वली पर जरूरी नहीं ! कर दे तो बेहतर है ।

Kin Surto Me Kaza Lazim Hai ?

मस्अला : रोजा तोड़ने का कफ्फारा यह है ! कि मुमकिन हो तो एक रकबा यानी बंदी या गुलाम आजाद करे ! और यह न कर सके मसलन उसके पास न लोंडी गुलाम है न इतना माल कि खरीदे ! या माल तो है मगर रकबा मैयस्सर नहीं ! जैसे आज कल यहां हिन्दुस्तान में तो पै दर पै साठ रोजे रखे । यह भी न कर सके तो साठ मसाकीन को भर – भर पेट दोनों वक्त खाना खिलाए ! और रोजे की सूरत में अगर दर्मियान में एक दिन का भी छूट गया ! तो अब से साठ रोजे रखे ,

पहले के रोजे महसूब ( शुमार ) न होंगे अगर्चे उन्सठ रख चुका था ! अगर्चे बीमारी वगैरा किसी उज के सवव छूटा हो !मगर औरत को हैज आ जाए तो हैज़ की वजह से जितने नागे हुए ! यह नागे नहीं शुमार किए जायेगें ! यानी पहले के रोजे और हैज़ के बाद वाले दोनों मिल कर साठ हो जाने से कफ्फारा अदा हो जाएगा । ( बहारे शरीअत )

मस्अला : अगर दो रोजे तोड़े तो दोनों के लिए दो कपफारे दे । अगर्चे पहले का अभी कफ्फारा अदा न किया हो ! यानी जबकि दोनों दो रमजान Ramzan के हों ! और अगर दोनों रोजे एक ही रमजान Ramzan के हों और पहले का कपफारा अदान किया हो ! तो एक ही कपफारा दोनों के लिए काफी है । ( बहारे शरीअत )

जिन सुरतों में कफ्फारा भी लाज़िम है Kin Surto Me Qaffara Lazim Hai ?

मस्अला : जिस जगह रोजा तोड़ने का कफ्फारा लाजिम आता है ! उसमें शर्त यह है कि रात ही को रोजा – ए – रमजान की नियत की हो ! अगर दिन में नियत की और तोड़ दिया तो लाज़िम नहीं ।

Mas”la : कपफारा लाजिम होने के लिए यह भी जरूरी है ! कि रोजा (Roza) तोड़ने के बाद कोई ऐसा अम्र वाकिअन हुआ हो ! जो रोजा (Roza) के मनाफी हो या बगैर इख्तियार ऐसा अम्र न पाया गया हो ! जिसकी वजह से रोजा इफतार करने की रूखसत होती ।

मस्अला : सहरी का निवाला मुंह में था कि सुबह तुलूअ हो गई या भूल कर खा रहा था ! निवाला मुंह में था कि याद आ गया ! और निगल लिया दोनों सूरत में कफ्फारा वाजिब ! अगर मुंह से निकाल कर फिर खाया हो ! तो सिर्फ कज़ा वाजिब होगी कफ्फारा नहीं ।

नोट : रोज़ा (Roza) के मुतअल्लिक तफसील मालूमात के लिए बहारे शरीअत का मुतालआ करें ।

रमजान मुबारक और क़ुरान शरीफ की शफ़ाअत

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