Monday, May 20, 2024
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Ramzan Mubarak or Nujul-e-Quran Sharif

माहे रमज़ानुल मुबारक और नुजूले कुरआन – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran Sharif

माहे रमजानुल मुबारक Ramzan Mubarak इसी माहे मुकद्दस में कुरआन अजीम ( Quran-e-Azim ) का नुजूल हुआ ! जो बनी नूअे  इंसान के लिए सरापा हिदायत है ! लिहाजा अब आइये नुजूले कुरआने मुकद्दस के हवाले से चंद बातें मुलाहिजा करते हैं ।

माहे रमजानुल मुबारक Ramzan Mubarak  जिस तरह से अल्लाह रब्बुल इज्जत का बहुत बड़ा इनाम है ! इसी तरह इस माहे मुबारक में कुरआने मुकद्दस का नुजूल भी मोमिनीन के लिए बहुत बड़ी दौलत है !

ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

कुरआन पाक वह नुस्ख – ए – कीमीया है ! जो हमें जिंदगी के हर मोड़ पर उसूल व कवानीन अता फरमाता है और कामयाब जिंदगी गुजारने का सलीका सिखाता है ।

लफ्जे कुरआन Quran  के मअनी और अल्लाह तआला की इस मुकद्दस किताब का नाम कुरआन क्यों रखा गया है ! उसे भी समझ लें ताकि अज़मते कुरआने मुकद्दस दिल में बैठ जाए !

और फिर कुरआने मुकद्दस किस तरह नाजिल हुआ ? कितनी मुद्दत में नाज़िल हुआ ? इसे भी समझने की कोशिश करें ! ताकि कुरआने मुकद्दस दिल के निहां खाना – में घर कर जाए ।

लफ्जे कुरआन के मआनी और वजह तसमिया

लफ्जे कुरआन या तो कुरउन से बना है या से किरातुन से । कुरउन का माअना जमा होना है , इस माअना के लिहाज से ‘ कुरआन ‘ को कुरआन कहने की चंद वजहें हैं ।

Ramzan Quran Status

1 . कुरआन सारे अव्वलीन व आखरीन के उलूम का मजमूआ है , दीन व दुनिया का कोई भी ऐसा इल्म नहीं जो कुरआने करीम में न हो , जैसा कि अल्लाह तआला ने इर्शाद फरमाया हमने तुम पर एक किताब नाजिल की जो हर चीज़ का रोशन बयान है ।

2 . कुरआन सूरतों और आयतों का मजमूआ

3 . कुरआन तमाम बिखरे हुओं को जमा करने वाला है । देखो !

ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

हिंदी , सिंधी , अरबी , अजमी लोग , इनके लिबास , तआम , जबान , तरीके जिंदगी सब अलग है , कोई सूरत न थी कि यह अल्लाह तआला के बिखरे हुए बन्दे जमा होते लेकिन कुरआने करीम ने इन सब को जमा फरमाया !

और इनका नाम मुसलमान रखा ! खूद फरमाया इसने तुम्हारा नाम मुसलमान रखा । और अगर किरातुन से बना है ! तो इसका माअना है ” पढ़ी हुई चीज । इस माअना के एतबार से भी इसको कुरआन कहने की चंद सूरतें हैं ।

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4 . दीगर अंबियाए किराम को किताबें या सहीफे हक तआला की तरफ से लिखे हुए अता फरमाए  गए ! लेकिन कुरआन करीम पढा हुआ उतरा ! इस तरह कि हज़रत जिब्रील अमीन हाज़िर होते और पढ़ कर सुना जाते ।

5 . जिस कद्र कुरआने करीम पढ़ा गया ! और पढ़ा जाता है ! इस कद्र कोई दीनी व दुनियावी किताब दुनिया में न पढ़ी गई ! क्योंकि जो आदमी कोई किताव बनाता है ! वह थोडे से लोगों के पास पहुंचती है ! और वह भी एक आध बार पढ़ते हैं ! और फिर कुछ दिनों के बाद खत्म हो जाती हैं !

ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

 

इसी तरह पहली आसमानी किताबें भी खास खास जमाअतों में और कुछ दिनों रह कर अव्वलन तो बिगड़ी फिर खत्म हो गई । मगर कुरआने करीम की शान यह है ! कि सारे आलम की तरफ आया और सारी खुदाई में पहुंचा ।

सबने पढ़ा और बार – बार पढ़ा ! और दिल न भरा अकेले में पढ़ा ! जमाअतो के साथ पढा ! लुत्फ बात तो यह है कि हुजुर सल – लल्लाहो अलैहिवसल्लम ने पढ़ा और कुफ्फार ने भी पढ़ा ।

 ( तफसीरे नईमी जि . अब्बल मुलख्वसन )

 नुजूल का मअना – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

नुजूल का माना है ऊपर से नीचे उतरना । कुरआने मुकद्दस दो तरीकासे नाजिल हुआ ।

1 . जिब्रीले अमीन आते थे ! और आकर सुनाते थे ! यह नुजूल बजरिया कासिद हुआ 1

2 . कुरआने करीम की बाज़ आयतें मेअराज में बगैर वास्त – ए – जिबीले अमीन अलैहिस्सलाम नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम को अता की गई । जैसा कि मिश्कात शरीफ बाबुल मेअराज में है कि सूरए बकरा की आखरी आयतें हुजूर सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम को मेअराज में अता की गई ।

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लिहाजा कुरआन का नुजूल दूसरी आस्मानी किताबों के नुजूल से शानदार है ! कि वह लिखी हुई आई ! और यह बोला हुआ आया ! और लिखने और बोलने में बड़ा फर्क है ! क्योंकि बोलने की सूरत में बोलने के तरीके से इतने मआनी बन जाते हैं ! कि जो लिखने से हासिल नहीं हो सकतें ।

मसलन एक शख्स ने हम को लिख कर दिया ! तुम दिल्ली जाओगे ! तो इस लिखी हुई ! इबारत से हम एक ही मतलब हासिल कर सकते हैं !

लेकिन इस जुमले को अगर वह बोले तो पाँच छः तरीकों से बोल कर इसके पाँच छः माअना पैदा कर सकता है । ऐसे लहजों से बोल सकता है । जिससे सवाल , हुक्म , तअज्जुब , तमस्खुर वगैरा के मानापैदा हो जाएं ।

( तफसीरे नईमी : जि . अव्वल )

नुजूले कुरआन कितनी बार हुआ- Ramzan Mubarak or Nujul-e-Quran

कुरआने मुकद्दस का नुजूल चंद बार हुआ ! अव्वलन लोहे मेहफूज से पहले आसमान की तरफ नजूल हुआ ! कि यकबारगी माहे रमज़ान की शबे कद्र में हुआ । इसी के बारे में कुरआने करीम में इर्शाद हुआ !

माहे रमजान में कुरआन उतारा गया । फिर नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर तेईस साल के अरसे में थोड़ा थोड़ा क़द्रे जरूरत आता रहा और बाज़ आयतें दो दो बार भी नाज़िल हुई हैं , जैसे सूरह फातिहा वगैरा ।

( कुतुबे तफासीर )

खुलासा यह हुआ कि हुजूर पर कुरआन का नुजूल कई तरीकों से हुआ ! लेकिन एहकाम इस नुजूल से जारी 8 फरमाए जाते थे ! जो वज़रिया जिबील अलैहिस्सलाम अमीन थोडा थोड़ा आते थे ।

कुरआन मजीद और दीगर आस्मानी किवातों के नुजूल में फर्क 

कुरआन मजीद और दीगर आसमानी किताओं के नुजूल में तीन तरह का फर्क है ।

1 . यह किताबें लिखी हुई आई और कुरआन मुकद्दस पढ़ा हुआ । यानी वह सब तहरीरी और कुरआन तकरीरी शक्ल में आया !

2 . वह सब किताबें पैगम्बरों को किसी खास जगह बुला कर दी गई मगर कुरआनी आयात अरब के गली कूचों बल्कि हुजूर सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम के विस्तर शरीफ में आई ताकि हिजाज का हर ज़र्रा अज़मत वाला हो जाए कि वह कुरआने मुकद्दस का जाए नजूल है ।

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3 . वह कितावें यकबारगी उतरी ! और कुरआने मुकद्दस तेईस साल में , ताकि हुजूर सललल्लाहो अलैहि वसल्लम से हमेशा हमकलामी होती रहे ! और मुसलमानों के लिए अमल करना आसान हो ! क्योंकि यकदम सारे एहकाम पर अमल करना मुश्किल होता है ! देखो बनी इस्राईल यकदम तोरात मिलने से घबरा गए और बोले हमने सुना और ना फरमानी की ।

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मेरे इस्लामी भाईयों । रमजानुल मुबारक ( Ramzan Mubarak ) के साथ कुरआने मजीद  ( Quan ) का जो गहरा तअल्लुक है ! वह किसी पर मखफी नहीं , उसका नुजूल उसी माह में नबी अकरम सल लल्लाहो * अलहि वसल्लम के कल्बे अकदस पर शुरू हुआ !

इस तअल्लुक को रसूलुल्लाह सल लल्लाहो अलैहिवसल्लम से बढ़ कर कौन जान सकता है । रमजान व कुरआन का तअल्लुक इस इर्शादे नबवी से भी वाजेह हो जाता है जो हज़रत अब्दुल्लाह बिन अमर रदियल्लाहो तआला अन्हुमा से मरवी है कि नबी अकरम सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया :

रोजा और कुरआन कयामत के दिन बंदे की शफाअत करेंगे , रोजा कहेगा , ऐ अल्लाह ! मैंने इसे खाने और ख्वाहिशात से दिन में रोके रखा । कुरआन कहेगा . मैंने इसे रात को सोने से रोके रखा , मैं इसकी शफाअत । करता हूं हमारी शफाअत कुबूल फरमा । चुनान्चे दोनों की । सिफारिश कुबूल कर ली जाएगी ।

( मिश्कात : स . 173 )

लिहाजा हमें भी कुरआने मुकद्दस की तिलावत को अपना मामूल बनाना चाहिए ! ताकि कुरआने मुकद्दस के फजाइल व फवाइद से हम भी बेहरावर हो सकें ।

तरतील के साथ पढ़ो –ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

इर्शादे रब्बानी है और कुरआन खूब ठहर ठहर कर पढ़ो । हज़रत अली रदियल्लाहो तआला अन्हो ने बयान फरमाया ! कि तरतील का माअना है ! हरूफ को उनके मखरिज व सिफात की सही अदायगी के साथ पढ़ना ! और वक्फ ( ठहरने की जगहों को पहचानना ।

कुरआने मुकद्दस को तरतील के साथ पढ़ना वाजिवे शरई है ! और इसका सीखना भी हर मुसलमान पर लाजिम है । अगर कोई शख्स तरतील का लिहाज किए वगैर कुरआने मुकद्दस की तिलावत करे ! तो उसको सवाब के बजाए गुनाह होगा ।

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लिहाजा हमें अपने बच्चों को दीनी तालीम के लिए ऐसे असातजा और ऐसे मदारिस का इंतिखाब करना चाहिए ! जहां तरतील के साथ कुरआने मुकद्दस पढ़ना सिखाया जाता हो ! और असातजा को भी खास तौर पर अपने पास पढ़ने वाले तलया के मख़ारिज व रोजे कयामत जवाबदेह होना पड़ेगा ।

अल्लाह के प्यारे रसूल का मामूल-

हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदियल्लाहो तआला अन्हुमा को यह शर्फ हासिल है ! कि हुजूर नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम उन्हें हर साल रमजानुल मुबारक Ramzan Mubarak  में सारा कुरआन मजीद सुनाते ! और विसाल के साल दो-बार कुरआन मजीद सुनाया ।

Ramzan Mubarak

रमज़ानुल मुबारक और जिबीले अमीन के साथ कुरआन मजीद का दौर – Ramzan Mubarak Or Jibril Amin Ke Sath Quaran Ka Dour 

रमजानुल मुबारक Ramzan Mubarak में तिलावते कुरआन का यह आलम था ! कि हजरत जिब्रीले अमीन अलैहिस्सलाम रमज़ानुल मुबारक Ramzan Mubarak में सिदरह छोड़ कर हुजरा – ए – नववी में आ जाते ! एक रमजान से दूसरे रमजान तक जो हिस्सा – ए – कुरआन नाज़िल हो चुका होता ! उसका हुजूर सल्ललल्लाहो अलैहि वसल्लम से दोर करते , यानी जिबीले अमीन आपको कुरआन सुनाते और आप जिबील अमीन को ।

 अल्लाह व रसूल से मुहब्बत का तकाजा – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हों से रिवायत है ! कि जो शख्स यह पसंद करता कि वह अल्लाह और उसके रसूल सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम से मुहब्बत करे ! पस वह कुरआन मजीद की तिलावत करें ।

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और नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इशाद फरमाया ! बेशक ! अल्लाह तआला के कुछ दोस्त होते हैं । जब पूछा गया कि वह कौन है ? तो फरमाया , कुरआन वाले एहलुल्लाह है और खास लोग है ।

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नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम की ज़बाने मुकद्दस से निकलने वाले अल्फाज कभी गलत नहीं हो सकते ! हम में से हर शख्स अल्लाह से मुहब्बत का दावा करता है ! लेकिन जिसे ज़बाने नबी सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह का दोस्त कह दे !

फिर उसकी अजमतो का क्या कहना । लिहाजा अगर अल्लाह से दोस्ती के दावा में अपने आपको सच्चा साबित करना है ।

तो कुरआन मुकद्दस की तिलावत , उसके एहकाम पर सख्ती से अमल करने को अपना मामूल बनाना होगा । अल्लाह तआला हमें इसकी तौफीक अता फरमाए । आमीन ।

अल्लाह की रस्सी – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

कुरआने मजीद जिसे कायनात के रुश्द व हिदायत के लिए अल्लाह तआला ने नाजिल फरमाया उसके तअल्लुक से हजरत अबू सईद रदियल्लाहो तआला अन्हो बयान करते हैं ! कि अल्लाह के रसूल सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया ! अल्लाह की किताब अल्लाह की रस्सी है जो आसमान से जमीन की तरफ ममदूद ( खिंची हुई है ) !

इस हदीस से यह बात वाजेह होती है कि अगर कोई मप्रफते खुदावंदी हासिल करना चाहता है ! तो उसे कुरआने मुकद्दस का सहारा लेना होगा ! क्योंकि इस हदीस में उसे अल्लाह की रस्सी कहा गया है यानी उसके जरिया रव तक रसाई मुमकिन है ।

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इसी माहूम की एक और हदीस अल्लाह के प्यारे हबीय सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम से मन्हूल हा आपने फरमाया ! ‘ कुरआन Quran का एक किनारा अल्लाह तआला के दस्ते कुदरत में है ! और दूसरा किनारा तुम्हारे हार्थों में , पस उसको मजबूती से थाम लो बेसक ! उसके बाद न तुम हलाक होगें और न ही गुमराह होगें ।

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” हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है कि ताजदारे मदीना सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया तर्जुमा : बिलाशुवा अल्लाह तआला ने आसमान व जमीन को पैदा करने से एक हजार साल पहले सूरह ताहा व यासीन पढ़ी । जब फरिश्तों ने कुरआन सुना तो उन्होंने कहा , उस उम्मत को बशारत हो जिस पर कुरआन नाजिल होगा और उन सीनों के लिए खैर खूबी होजो उसे अपने अंदर महफूज करेंगे । और उन जवानों के लिए खुशखबरी हो जिन से कुरआनी अल्फाज अदा होगें । ( अहयाउल उलूम )

मुकर्रव फ़रिश्तों में तजकिरा – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

एक मुकाम पर कुरआने मुकद्दस के दर्स की मेहफिल में शरीक होने के हवाले से और अल्लाह के घर में तिलावत करने के हवाले से रहमते आलम सल – लल्लाहों अलैहि वसल्लम का फरमान पढ़िए ! और अपनी बेकरारी को दूर करके सुकून की दौलत से मालामाल हो जाइए ।

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अल्लाह के प्यारे रसूल सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया जो कौम अल्लाह तआला के घरों में से किसी घर में जमा होकर कुरआन मजीद की तिलावत करे ! और मुदारसत और दौर करे तो अल्लाह तआला की तरफ से उन पर सकीनत नाज़िल होती है !

अल्लाह तआला की रहमत उनको ढांप लेती है ! और फरिश्ते उनको घेर लेते हैं ! or उनका अहाता कर लेते है और अल्लाह उनका तजकिरा अपने मुकर्रब फरिश्तों के पास करता है ! , or जिसने अमल करने में सुस्ती की उसकानसब नामा उसको फायदा नहीं देगा ।

( सहीहुल जामेअ व मुख्तसर मुस्लिम )

कुरआन की शफात – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

बज्जाज की रिवायत है कि कुरआन का पढ़ने वाला जब इतिकाल कर जाता है और उसके एहल खाना तजहीज व तकफीन में मस्रूफ होते हैं उस वक्त कुरआन हसीन व जमील शक्ल में आता है ! और उस कुरआन पढ़ने वाले के सर के पास उस वक्त तक खड़ा रहता है ! जब तक वह कफन में लपेट न दिया जाए ।

फिर जब वह कफन में लपेट दिया जाता है ! लो कुरआन कफन के करीब उसके सीने पर होता है । फिर जब उसको कब्र के अंदर रख दिया जाता है ! और मिट्टी डाल दी जाती है ! और उससे इसके खेश व अकारिब रूखसत हो जाते है ! तो उसके पास मुनकर नकीर आते हैं ! और उसको कब में बिठाते हैं इतने में कुरआन आता है । और इस मय्यत और उन फरिश्तों के दर्मियान हाइल हो जाता है । वह दोनों फरिश्ते कुरआन (Quran) से कहते हैं ! हटो ताकि हम इससे सवाल करें ! तो कुरआन कहता है ! कि रब्बे काबा की कसम | यह नहीं हो सकता ।

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बिला शुबा यह मेरा साथी और दोस्त है !और उसकी हिमायत व हिफाजत से किसी हाल में बाज नहीं आ सकता ! ( इसकी पूरी हिमायत करता रहूंगा । ) अगर तुम्हें किसी और चीज़ का हुक्म दिया गया है ! तो तुम उस हुक्म की तामील के लिए जाओ ! और मेरी जगह छोड़ दो ! क्योंकि मैं जब तक इसे जन्नत में दाखिल न कर लूंगा ! इससे रुखसत नहीं हो सकता । उसके बाद कुरआन अपने साथी की तरफ देखेगा ! और कहेगा कि मैं कुरआन हूँ ! जिसे तुम आवाज या बिला आवाज़ पढ़ते थे ।

हर हर्फ़  के एवज रुत्बा बुलंद होगा ।

कुरआन पाक ( Quran ) की तिलावत करने वाले की फजीलत में एक और हदीस हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहो तआला अन्हुमा से मंकूल है ! कि नबी करीम सल – लल्लाहों अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमायाः कयामत के दिन कारी कुरआन से कहा जाएगा ! कि पढ़ और सीडिया चढता चला जा ! और जिस तरह तू दुनिया में तरतील के साथ पढ़ता था आज भी पढ़ तेरी मंजिल वहां है जहां तू आखरी आयत पढेगा ।

इससे बढ़ कर कोई सवाब नहीं ।

कुरआने मुकद्दस ऐसी किताब है कि उसका देखना ! तिलावत करना ! उसे याद करना ! इसके माअनी में गौर करना यह सारी चीजे इबादत में शुमार होती हैं ! कुरआन मुकद्दस की तिलावत करने पर अल्लाह तआला इतना सवाब अता फरमाता है ! जो हमारी अकल से वरा है , जैसा कि रसूलुल्लाह सललल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं जिसने कुरआन पढ़ा फिर उसने यह समझा कि

उसको जो सवाय मिला है ! उससे बढ़ कर किसी को सवाब मिल सकता है ! तो उसने यकीनन उसको मामूली समझा जिसको अल्लाह तआला ने अजीम किया है ।

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ताजे करामत – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है ! कि ताजदारे कायनात सल लल्लाहो अलैहि । वसल्लम ने फरमाया ! कुरआन पाक की तिलावत करने वाला कयामत के दिन आएगा ! कुरआन कहेगा ऐ परवरदिगार ! इसे आरास्ता फरमा दे । चुनान्चे उसे इज्जतो शर्फ का ताज पहनाया जाएगा ।फिर वह कहेगा , ऐ परवरदिगार | इसे और नवाज़ दे । उसके बाद उसे इज्जत व शर्फ का जोड़ा पहनाया जाएगा । फिर वह कहेगा , ऐरब ! इससे राजी हो जा । अल्लाह तआला इससे राजी हो जाएगा । फिर कुरआने मुकद्दस की तिलावत करने वाले से कहा जाएगा ! तुम कुरआन पढ़ते जाओ और बुलंदी पर चढ़ते जाओ । यहां तक कि वह हर आयत के साथ एक दरजा बढ़ता चला जायेगा ।

( तिर्मिज़ी ज . 2 . स . 119  )

दिलो का जंग – ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

जब दिल ख्वाहिशात में डूब जाते हैं ! और तरह तरह के गुनाह करने लगते हैं और वह अल्लाह तआला की याद से गाफिल हो जाते हैं और अपना मकसदे जिंदगी फरामोश कर जाते हैं , उनकी कैफियत यह हो जाती है कि उन पर तह बतह जंग चढ़ जाता है और यह जंग पूरे जिस्म के फसाद का सबब बन जाता है ।

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जैसा कि ताजदारे कायनात सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इर्शाद फरमाया बेशक ! दिलों को भी जंग लग जाता है जिस तरह लोहे को जंग लग जाता है ! जब उसे पानी लग जाए । अब इस जंग को कैसे साफ किया जाए !  अपने दिल को कैसे सैकल किया जाए . वह कौन सी चीज़ है ।

जिसके जरिये दिल पर लगे हुए जंग को दूर किया जाए ? सहाबा – ए किराम के दिलों में भी इस किस्म के सवालात पैदा हुए थे , उन्होंने मुअल्लिमे इंसानियत सल लल्लाहों अलैहि वसल्लम की बारगाह में अर्ज किया ! उनकी सफाई किस तरह होती है ? फरमाया ! मौत को कसरत से याद करना ! और कुरआन की तिलावत करना । ( मिश्कात 189 )

अस्लाफ़े किराम का तिलावत का अंदाज

रसूले आजम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम से लेकर सहाबा – ए – किराम रदियल्लाहो तआला अन्हुम और ताबेईन से लेकर आज तक के ओलिया किराम की जिंदगी का मुताला करें ! तो हमें सबके सब तिलावते कुरआन के साथ दिल को हाज़िर रखने वाले ही मिलेंगे ! तरगीब के लिए इन बुजुर्गो के चंद वाकिआत नकल कर रहे है ! ताकि हम भी वक्ते तिलावत अपने दिलों को हाजिर रख सकें ! और हम पर खुशूअवखुजूअ की कैफियत तारी रहे।

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हजरत उमर रदियल्लाहो तआला अन्हो नमाज में ऐसी सूरतें पढ़ते ! जिनमें कयामत की होलनाकियों का जिक्र या खुदा की अजमत व जलालत का बयान होता ! और इन चीजों से आप इस कदर मुतास्सिर होते कि रोते-रोते हिचकी बंध जाती !

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चुनान्चे हज़रत इमाम हसन रदियल्लाहो तआला अन्हो बयान करते हैं ! कि हज़रत उमर एक बार नमाज़ पढ़ रहे थे ! जब इस आयत पर पहुंचे बिला शक व  शुब्हा तेरे रब का अजाब वाकेअ होकर रहेगा .! इसका कोई देफअ करने वाला नहीं । तो इस कदर रोए कि रोते रोते आँखें वरम कर आई ।

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कंजुल उम्माल में है कि एक नमाज में आपने यह आयत पढ़ी ! और जब उसकी किसी तंग जगह में डाले जाएंगे ! ज़ंजीरो  में तो वहां मौत मांगेगें ।

यह आयत पढ़ कर आप पर ऐसा खोफ व खुशू तारी हुआ और आपकी हालत इतनी गैर हुई कि अगर लोगों को यह मालूम न होता कि आप पर इस तरह की आयतों का ऐसा असर हुआ करता है तो समझते कि आप वासिले बहक हो गए ।

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इसी तरह जदा इब्ने औफी का भी वाकिआ है जो सहाबी थे , एक मर्तबा इमामत कर रहे थे ! और किरात में एक आयत पढ़ी तो वह बेहोश हो गए ! और बाद में इंतिकाल कर गए ।

इसी तरह अबू जहीर रदियल्लाहो तआला अन्हो जो ताबेई थे ! उनके सामने सालेह अल्मरी ने तिलावते कुरआन की तो वह बेहोश होकर रहलत कर गए ।

तिलावते कुरआन के फ़वाइद

जहां कुरआने मुकद्दस की तिलावत से हमारा नामा – ए – आमाल नेकियों से भरता रहता है वहीं इसमें दुनियावी फयाइद भी हैं इस कलाम में शिफ़ा भी है जैसा कि अल्लाह तअला ने इशाद फरमाया और हम कुरआन में । उतारते है वह चीज जो ईमान वालो के लिए शिफ़ा और रहमत है । यानी कुरआने मुकद्दस की तिलावत से शिफ़ा मिलती है ! और मरीज को राहत हो जाती है । बेशुमार वाकिआत हमें किताबों में मिलेंगें !

जिसमें कुरआने मुकद्दस की आयत से ऐसे ऐसे मरीजों को शिफा मिली है ! जिसकी आफियत और सेहत यावी एक मुश्किल अम्र था । जैसा कि हकीम मोहम्मद तारिक महमूद चुगताई अपनी तस्नीफ ‘ सुन्नते नबवी और जदीद साईन्स में लिखते है । दिल को जाने वाली खून की रगों में रूकावट आने से दौरा पड़ता है ! सांस की नालियां बंद हो जाएं तो सांस लेने में तकलीफ होती है ! यह दोनों बीमारियां छाती में घुटन से पैदा होती है ।

ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

कुरआने मुकद्दस की आयत ने इस बाब  में अपनी इफादियत का बड़ा एहम तजकिरा फरमाया है तुम्हारे पास तुम्हारे रब की तरफ से हिदायत का सर चश्मा आया है जो कि सीने के अंदर के मसाइल के लिए शिफा है ।

इस आयते मुबारका को सुबह व शाम तीन मर्तबा पढ़ कर मरीज़ अपने ऊपर फूंक ले तो इन मसाइल से नजात हो जाती है ।

Mahe Ramzan Tiwate Quran Ke Fayde

एक बुजुर्ग के साहबजादे को दिल का दौरा पड़ा । उन्होंने किसी डा . से रुजू करने के बजाए अपने बेटे पर कुरआने मजीद की आयत पढ़ कर सुबह व शाम दम किया ! यह नौजवान तंदरूस्त हो गया ।

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उन बुजुर्ग को मालूम होने पर हम अपने दिल और दमा के मरीजा को पिछले दस सालों से कुरआन मुबारक आयत सुबह व शाम तीन मर्तबा पढ़ने ! और नमाज़ पढ़ने से इन बीमारियों का एक भी मरीज़ जाए न हुआ । अल्लाह का फज्ल और कुरआन मजीद की बरकत ही है ।

एक दो साल का बच्चा शदीद दमा में मुबतिला था ! उसको दवाए देने के बजाए कुरआने मजीद की यह आयत  सुबह व शाम तीन – तीन बार पढ़कर फूकने की हिदायत की ! और गर्म पानी में शहद देने की हिदायत की । उस बच्चे को पिछले दो माह से दमा का एक भी दौरा नहीं पड़ा । कुरआने मजीद हर हाल में शिफा है ।

ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

इसके अलावा और भी बहुत से वाकिआत उन्होंने अपनी तरनीफ में तहरीर फरमाया है ! यहां इसी पर इख्तिसार किया जाता है । इन फवाइद को मद्दे नज़र रखते हुए हमें कुरआने मुकद्दस की तिलावत की कोशिश करनी चाहिए ! और दिन में कम अज़ कुछ आयतें ज़रूर पढ़ लेनी चाहिए ! कि इसमें बेशुमार फवाईद व फज़ाइल हैं ।

अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ है ! कि हमें इस की तौफिक अता फरमाए । आमीन

समाअते कुरआन मजीद – Ramzan Mubarak Or Samaate Quran Mazid

कुव्वते समाअत भी अल्लाह तआला की बहुत बड़ी नेअमत है ! इंसान के पास अगर कुव्वते समाअत न हो तो भली बात भी नहीं सुनता ! बल्कि अज़ान व कुरआन जैसी का मुकद्दस आवाजे भी नहीं सुन सकता । ऐसा शख्स जो कुव्वते समाअत से महरूम हो ! वह अपने दिल में हजारहा आरजुएँ लिए रहता है कि काश ! अल्लाह मुझे सुनने की कुव्वत अता फरमाता ! तो मैं भी अच्छे कलाम सुनता !

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लेकिन बहुत से ऐसे भी बंदे है ! जो कुव्वते समाअत से माला माल तो है ! लेकिन उनको अजा व कुरआन और नअत के 7 बजाए गाने ! और म्यूज़िक वगैरा से दिलचस्पी है ! और वह अपनी गाड़ियों से लेकर दुकानों व मकान सब में गानों ! गज़लों और म्युजिक ही को सामाने तसकीन समझते है ।

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माहे रमजानुल मुबारक Ramzan Mubarak  ऐसे लोगों को भी कुरआने (Quran)। मुकद्दस की तिलावत सुनने पर आमादा कर देता है ! और वह भी कुरआन मुकद्दस तरावीह में सुन कर अपनी रूह को मुनव्वर कर लेते हैं ! आइए समाअते कुरआन की बरकतें और कुरआन सुनने वालों की कैफियत कुरआन मुकद्दस की रोशनी में समझे ! ताकि समाअते कुरआन ( Quran ) का जज़बा भी पैदा हो और कैफियते सुरूर हो ।

सामईने कुरआन के तबक़ात Ramzan Mubarak Or Quran Ke Tabqat 

कुरआने मुकद्दस सुनने वालों के मुख्तलिफ तबके हैं ! और हर तबका समाअत का एक तरीका रखता है !  सबसे पहले हम उस तबके का जिक्र कर रहे हैं ! जिन्होंने फकत कुरआने मुकद्दस की समाअत को इख्तियार किया और मंदरजा जेल आयात से इस्तिदलाल किया ।

जो कान लगा कर बात सुनें फिर उसके बेहतर पर चलें ! यह हैं जिनको अल्लाह ने हिदायत फरमाई ! और यह है जिनको अकल है ।

वह लोग जिन्होंने समाअत कुरआन को अपने लिए इख्तियार फरमा कर !बतारे हुज्जत मजकूरा आयतें पेश की ! इसके अलावा भी आयात व अहादीस का जखीरा समाअते कुरआन से मुतअल्लिक है ।

समाअते कुरआन से मुतअल्लिक मजकूरा तबका ने आयात के साथ साथ अहादीसे से भी इस्तिशहाद किया है !

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जैसा कि हुजूर रिसालत मआब  सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम से हजरत मसऊद रदियल्लाहो तआला अन्हों ने अर्ज किया , मैं क्यों कर आपके सामने तिलावत की जसारत करूं कि आप पर कुरआन उतरा है ! हुजूर रहमते आलम सल – लल्लाहो तआला अलैहि वसल्लम ने फरमाया ! मैं अपने अलावा दूसरे से तिलावते कुरआन सुनना पसंद करता हूं !

 ( मिश्कात शरीफ : स . 190 )

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मजकूरा हदीसे मुबारका से हुजूर सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम की पसंद का इल्म हुआ ! कि कुरआने मुकद्दरा सुनना हुजूर सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम को पसंद है ! तिलावते कुरआने मुकद्दस के सुनने पर हुजूर रहमते आलम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम और सहाबए किराम रदियल्लाहो तआला अन्हुम पर अजीम सी कैफियत्त तारी होती ! जैसा कि कौले रसूल खैरूलअनाम सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम है ।

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मुझे सूरए हूद और उस जैसी सूरतों ने जिसमें अजाबे इलाही का जिक्र है , बूढ़ा कर दिया । कुरआने मुकद्दस में सामेअ की दो किस्मे बयान की गई है ! एक किस्म के बारे में यूँ इर्शाद हुआ और उनमें से बाज़ तुम्हारे इर्शाद सुनते है ! यहां तक कि जब तुम्हारे पास से निकल कर जाएं ! इल्म वालों से कहते है कि अभी उन्होंने क्या फरमाया !

यह तो वह लोग जो कुरआन सुनते हैं मगर उनके दिल हाजिर नहीं होते ! वह लोग जो कुरआन सुनते हैं ! और उनका दिल गैर हाजिर रहता है ! कुरआन ही ने उनकी मुजम्मत की है ! और उन लोगों से खिताब फरमाया । और उन जैसे न होना जिन्होंने कहा हमने सुना और नहीं सुनते ।

और दूसरी किरम कुरआन सुनने वालों की वह है ! जिनका जिक्र इस आयते करीमा में आया , अल्लाह इर्शाद फरमाया है । और जब सुनते हैं वह जो रसूल की तरफ उतरा ! तो उनकी आंखे देखो कि आंसूओं से उबल रही हैं ! इसलिए कि वह हक को पहचान गए हैं ।

यह आयत उन लोगों के बारे में नाजिल हुई जो | पहले नसरानी थे , जब कुरआन करीम की आयतें नाज़िल हुई ! और उन्होंने सुना तो उनके दिल की दुनिया बदल गई !  आंखों से आंसू जारी हो गए ! और उन्होंने मज़हबे इस्लाम को कुबूल कर लिया । अगर हम ईमान के साथ कुरआने मुकद्दस के सुनने के आदी हो जाएं ! तो हमारे दिलों की दुनिया भी बदल जाएगी ! और हमारे दिल में ईमान की वह रोशनी पैदा होगी ! कि हम बुराइयों से इजतिनाब करके नेकियों की तरफ माइल हो जाएंगें ।

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मंदरजा बाला सुतूर में समाअते कुरआन और कुरआन शरीफ के असरात से मुतअल्लिक आपने पढा ! यह बातें इसलिए कलमबंद की गई ताकि माहे रमजानुल मुबारक में सिर्फ कुरआने मुकद्दस यूँ ही न सुना जाए ! बल्कि हुजूरीय कल्ब के साथ सुनने का जज़्बा पैदा हो ! और न कोशिश करें ! कि जिन आयतों को तरावही में कारी ने तिलावत किया है !

उनके माना और मफहूम को तर्जुमा माहे रमजान Ramzan गुजार ! और तफसीर में पढ़ लें । इंशाअल्लाह अजीब सी लज्जत पैदा होगी ! और ईमान में इजाफा होगा । हालते नमाज में पूरे कुरआन मुकद्दस को सुनने का मौका ! सिर्फ और सिर्फ माहे रमजानुल मुबारक ( Ramzan Mubarak ) में ही आता है ! लिहाजा इस वक्ते सईद को जाएअ होने से बचाएं ! और हमातन गोश होकर कुरआने मुकद्दस समाअत फरमाएं ।

समाअते कुरआन की फजीलत Ramzan Mubarak Or Quran Ki Fazilat 

हजरत अबू हुरेरा रदियल्लाहो तआला अन्हो बयान करते हैं कि अल्लाह के रसूल सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमायाः!  जो कुरआन मजीद की आयत सुनता है ! अल्लाह तआला उसके लिए इजाफा की हुई नेकी लिख देता है ! और जो उसकी तिलावत करता है ! तो यह आयत कयामत के दिन इसलिए नूर होगी ।

मजकूरा हदीस शरीफ समाअते कुरआन की फजीलत को जामे है ! कि अल्लाह तआला सामईने कुरआन को इजाफा की हुई नेकी लिखता है । उस नेकी में कितना इजाफा किया जाता है ! उसका ज़िक्र न फरमाने में यह हिकमत पोशीदा है !

कि अल्लाह तआला करीम है ! वह अपनी शाने करीमी के एतबार से उस नेकी में इजाफा फरमाता है । हमें तो समाअते कुरआन के लिए सिर्फ इतना ही काफी है ! कि हमारे नबी सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने समाअते कुरआन का एहतमाम फरमाया है !

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और कुरआन सुनना भी हुजूर सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम की सुन्नत है ।

अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ है ! कि हमें कुरआन पाक पढ़ने , सुनने और उस पर अमल करने की तौफिक अता फरमाएं । और इस पोस्ट को पढ़ने वाले की खासकर अमल की तौफिक अता फरमाएं । आमीन बजाहे सय्यदुल मुरसलीन अलैहित्तहय्यतो वस्सना । तम्मत बिल खैर ।

ramzan mubarak or Nujul-e-Quran

Allah Tbarak T’aala Hame Mahe Ramzan Mubarak Me Or Rozana Hi  Jyada Se Jyada Quran Padhne Or Samjhne Ki Toufik Ataa Farmaaye !

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