Sunday, May 12, 2024
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Imam Hussain Ki Shahadat Ka Waqiya

Imam Hussain Ki Shahadat Ka Waqiya

हज़रत इमाम रजियल्लाहु तआला अन्हु जब खेमे में अपना आखरी दीदार देकर मेदान में फिर तशरीफ़ लाये तो यजीदियों ने यकबारगी आप पर हमला कर दिया !

आपने भी डटकर उनका मुकाबला फरमाया ! मगर जालिमों ने इस कद्र हमले किये कि हज़रत का तने अनवर जख्म से चूर हो गया ! आपके घोडे में भी चलने की ताक़त न रही !

हज़रत इमाम एक जगह खडे हो गये ! एक जदअद नामी खबीस शख्स ने बढ़कर आपको तलवार मारी ! आपने उसका हाथ पकडकर ऐसा झटका दिया ! कि उसका हाथ कंधे से जुदा हो गया !

हजरत इमाम उस वक्त सबको उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे थे ! गोया यह ख्याल फरमा रहे थे ! कि इतनों में कोई ग़मगुसार ( ग़म दूर करने वाला ) नहीं है ! सब ही खून के प्यासे हैं !

आखिरकार उन जालिमो ने दूर ही से तीर मारना शुरू किये ! कि एक जालिम का तीर आपकी नूरानी पेशानी पर आकर लगा ! खुन का एक फव्वारा जारी हुआ ! आपने वह खून चुल्लू में लेकर मुंह पर मला ! ओर फ़रमाया कल क्यामत के दिन इसी हाल में अपने नानाजान के पास जाऊंगा ! और अपने मारने वालों की शिकायत करूंगा !

इस वक्त हज़रत इमाम के तने अनवर पर 72 ज़ख़्म नेजे ओर तलवार के आ चुके थे ! जिनकी वजह से आप बहुत निढाल हो गये थे ! और किब्ला रू होकर अपने मौला की याद कर रहे थे ! और अर्ज कर रहे थे कि :

Imam Hussain Ki Shahadat Ka Waqiya

या रब गनी बन्दा है एक बंदा -ए – मोहताज

तेरी ही इनायत से हुआ ख़ल्क़ का सरताज

सर नज़र को लाया है दरबार में गुलाम आज

है हाथ तेर मौला मेरे आज मेरी लाज़

हंगामे तरद्दुद है, मदद कीजिये मौला

वह तोहफ़ -ए-दुरवेश न रद्द कीजिये मौला

कहता नहीं कुछ और यह _ काबे का मुसाफिर

इक जां है सो कुरबान है, एक सर है सो हाजिर

अब तक हैं तेरी राह में हू साबिर व शाकिर

बेकस पे करम कीजिए मौला दमे आख़िर

सीने पर मेरे जानू ए क़ातिल न गिरा हो

खंजर के तले नाम तेरा विर्दे जुबां हो

वाकिफ नहीं इस मरहला-ए-सअब से शब्बीर

तक़दीर पे राजी हू मैं, ऐ मालिके तकदीर

प्यासा हु कई रोज से बेकस व दिलगीर

इन खुश्क रगों में कहीं रुक जाये न शमशीर

मुजतर्र मेरा होना खलल -अंदाजे अदब हो

तड़पू बशरीयत से जो उस दम तौ गज़ब हो

आई यह निदा कान में फिर शाहे हुदा के

रहमत तुझे ऐ बंदा-ए-मकबुले खुदा के

सह सब्र से और शुक्र से सब तीर जफा के

ले ताजे शहादत मेरी सरकार मे आके

गमगीन न हो, हम तुझको बहुत शाद करेंगे

जेरे दमे खंजर तेरी इमदाद करेगे

इतने में एक जालिम का तीर आपके हलक में आकर लगा ! ज़रआ इब्ने शुरैक ने आपके दस्ते मुबारक पर और शिमर ने आपके गले मुबारक पर तलवार मारी !

और सनान इब्ने अनस ने पुश्त मुबारक पर नेजा मारा !

तक़दीर व कजा से नही जब कोई भी चारा

नेजा किसी जालिम ने पसे पुश्त से मारा

तब रूहे नबी बोली उठा चैन हमारा

इस तेगे अलम से जिगर व दिल है दोपारा

हजरत इमाम हन मुतवातिर ज़र्बोसे चकराकर घोडे से गिरे

आया यह वक़्त किब्ल-ए-हाजाते दीन पर

काबे को ढाया संगदिलों ने जमीन पर

Imam Hussain Ki Shahadat Ka Waqiya

उस वक्त दोपहर ढल चुकी थी ! ओंर नमाजे जुहर का वक्त था ! हज़रत इमाम हुसेन रजियल्लाहु तआला अन्हु ने उस वक़्त भी उस सूरत में नमाज को अदा किया !

कि गिरते हुए मुंह किब्ले की तरफ़ किया ! घोडे पर क्याम था ! ओर जब ग़श से झुके तो रुकू था ! और जब जमीन पर गिरे ! तो सिर के बल कि वह सजदे का मकाम था !

इतने में शिमर आया ओर आपके सीने मुबारक पर बैठा गया ! इमाम ने आंखें खोलकर पूछा तू कौन है ? उसने बताया कि में शिमर हूं। फरमाया: जरा सीना खोलकर दिखा ! उसने सीना खोला तो दाग़ सफेद नज़र आया !

आपने फ़रमाया: सच फ़रमाया नानाजान ने रात को ख्वाब में ! कि तेरे कातिल के निशान यह हैं ! वही निशान तुझमें मौजूद है ! फिर आपने फ़रमाया: ऐ शिमर ! तू जानता है कि आज कौन सा दिन है ! कहा जुमे का ! फ़रमाया वक्त कौन सा है ? कहा ख़ुत्बा पढ़ने और नमाजे जुमा अदा करने का !

फ़रमाया इस वक्त खतीब मिम्बर पर ख़ुत्बा पढ़ते होंगे ! और तू उनके नवासे के साथ यह सुलूक कर रहा है ! जहां रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बोसा दिया करते थे ! तू वहां खंजर फेरना चाहता है !

देख इस वक्त मैं अपनी दाहिनी तरफ़ ज़करिया मासूम ओंर बायीं तरफ़ यहृया मासूम को देख रहा दूं ! ऐ शिमर ! ज़रा मेरे सीने से हट कि वक़्ते नमाज़ है में किब्ला रुख होकर नमाज़ पढू !

नमाज़ पढ़ते में जो चाहे करना ! कि नमाज में जख़मी होना मेंरे बाप की मीरास है ! शिमर आपके सीने से उतरा और इमाम किब्ला रुख होकर नमाज में खुदा से राज़ व न्याज्ञ में मशगूल हुए !

शिमर ने हज़रत इमाम आली मकाम का सजदे ही में दस मुहर्रम हिजरी साठ को जुमे के दिन 56  साल पांच माह की उम्र शरीफ़ में सर तन से जुदा कर दिया !

!! इन्ना लिल्लाहि व इन्ना ड़लैहि राजिऊनं !!

Imam Hussain Ki Shahadat Ka Waqiya

डूबा शफ़क में जब माहताबाने मुस्तफ़ा

यानी हुसैन इब्ने अली जाने मुस्तफा

बादे खज़ां थी और गुलिस्ताने मुस्तफा

जब गिर पड़ा जमीन पे वह जानाने मुस्तफा

खुद मुस्तफा ने फ़र्शे ज़मीन से उठा लिया

और फ़ातिमा ने गले से लगा लिया

आया जो वक़्ते ज़ुहर तो सज्दा अदा किया

तन पे खुद देखे ज़ख्म शुक्रे खुदा किया

तय आपने तमाम मक़ामे रज़ा किया

दुशमन ने जबकि सर काे बदन से जुदा किया

खुद मुस्तफा ने फ़र्शे ज़मीन से उठा लिया

और फ़ातिमा ने गले से लगा लिया

खुं से भरा हुआ जाे बदन का लिबास था

हूर व मलक को देख कर उसे दिल उदास था

पर शाहे करबला को न मुतलक हरास था

जिस दम गिरे जमीन पे तो कोई न पास ‘था

खुद मुस्तफा ने फ़र्शे ज़मीन से उठा लिया

और फ़ातिमा ने गले से लगा लिया

(तजकिरा सफा 86 -64 , तनक़ीह सफा 12 -112 )

Imam Hussain Ki Shahadat Ka Waqiya

सबक  : हजरत इमाम मज़लूम पर जिस कद्र जालिमों ने जुल्म व सितम किया ! आपने उसी कद्र सब्र व शुक्र का मुजाहिरा फ़रमाया !

आपने हर हाल में अल्लाह की याद की ! और खुदा को किसी वक्त भी फ़रामोश नहीं फ़रमाया ! आख़री वक्त जबकि आपका तने अनवर ज़ख्मो से चूर था ! जिसकी वजह से आप निढाल हो चुके थे !

उस वक्त भी आपको नमाज़ का ख्याल रहा ! नमाज़ की ही हालत में जामे शहादत नोश फरमाया ! फिर वह लोग जो हट्टे कट्टे होकर भी कभी नमाज़ नहीं पढते ! और जो भांग चरस स्मेक शराब पीने शौकीन हैं ! और खिलाफे शरा हरकतों के फिदाई हैं एसे लोग किस मुह से हज़रत इमाम आली मकाम से किसी निसबत का दम भर सकते हैं?

हमे भी चाहिये कि हज़रत इमाम आली मक़ाम के प्यारे तरीके को सामने रखे ! फिस्क व फुजूर के खिलाफ़ हो जायें 1 आलाए कलिमतुल हक़ की ख़ातिर बातिल के मुक़ाबले में डट जायें !

अल्लाह की याद किसी हाल में भी तर्क न करें ! नमाज़ के इस क़दर आदी बन जाये कि बडी से बडी तकलीफ़ में भी न छूट सके !

 

khwab Mein Hujoor Ki Jiyarat

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