Ramzan Mubarak Images – Ramzan Wishes-Ramzan Ki Fazilat-Ramzan Festival
अस्सलामोअलयकुम भाईयो और बहनो इस पोस्ट में हमने माहे रमज़ान की बहुत सी खुबिया और फ़ज़ीलत का ज़िक्र किया है ! और आपको रमज़ान मुबारक इमेजेस (Ramzan Mubarak Images) रमज़ान विश (Ramzan Wishes),रमज़ान ग्रीटिंग्स ( Ramzan Greetings )और रमज़ान स्टेटस ( Ramzan Status ) के साथ रमज़ान की फ़ज़ीलत ( Ramzan Ki Fazilat )का जिक्र किया है ! आपकी सुविधा के लिए हमने रमज़ान मुबारक इमेजेस (Ramzan Mubarak Images) रमज़ान स्टेटस ( Ramzan Status ) की खूबसूरत इमेजेस बनाकर अपलोड की है ! जिन्हे आप ज्यादा से ज्यादा अपने रिश्तेदारो और दोस्तों में शेयर कीजिये ! और रमज़ान की मुबारक दीजिये ! और सवाबे दारेन हासिल कीजिये !
फजाईले माहे रमज़ान – Mahe Ramzan Ki Fazilat
हजरत अबू हुरैरा रजि अल्लाहु तआला अन्हू से रिवायत है ! कि नबी करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया यानी जब रमज़ान का महीना आता है ! तो जन्नत के दरवाजे खोल दिए जाते हैं
बुखारी शरीफ ज़-1 सफा 255
माहे रमज़ान और रहमते रहमान
नबी करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया ! अल्लाह तआला रमज़ान (Ramzan) की हर शब को वक़्ते इफ्तार एक लाख दोजखियो को दोजख से आजाद फरमाता है ! और वह दोज़खी ऐसे होते हैं ! की उन पर अजाब वाजिब हो चुका होता है ! जब रमज़ान (Ramzan) की आखिरी शब होती है ! तो उसमें इतनी तादाद में आजाद फरमाता है ! जितनी तादात में रमज़ान (Ramzan) की पहली शब् से लेकर आखिरी शब् तक आजाद कर चुका होता है !
मक्का मुअज़्ज़मा मे माहे रमज़ान – Shahre Makka main Mahe Ramadan
मक्का मुअज़्ज़मा मैं माहे रमजान – हजरत अब्दुल्ला बिन अब्बास रजिअल्लाहु तआला अन्हू से रिवायत है ! की हुजूर सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने इरशाद फरमाया ! जिसने मक्का में रमजान पाया रोजा रखा ! और रात में जितना हो सका क़याम ! किया यानी कि नवाफिल पड़ी ! तो अल्लाह उसके लिए दूसरी जगह की बनिस्बत एक लाख 100000 रमज़ान (Ramzan) का सवाब लिखेगा ! और हर दिन एक गुलाम आजाद करने का सवाब ! or हर रोज़ जिहाद में घोड़े पार सवार कर देने का सवाब ! और हर दिन में हसना और हर रात में हसना लिखेगा ! बहारे शरीयत
मेरे प्यारे आका सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम के प्यारे दिवानों ! अगर अल्लाह तआला ने आपको इस्तिताअत बख्शी है तो मक्का मुअज्जमा और मदीना मुनव्वरा में माहे रमज़ान मुबारक ( Ramzan Mubarak) गुजारने की कोशिश करो । अल्लाह तआला की बारगाह में दुआ है ! कि हमें माहे रमजान कैसे गुजारे इसकी तौफीक अता फरमाए । आमीन
माहे रमज़ान और शैतान कैद में – Mahe Ramzan Or Shaitan Qaid Mein
हजरत अबू हुररा रदियल्लाहु तआला अन्हो से रिवायत है ! कि नबी करीम रऊफ व रहीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमायाः जब माहे रमज़ान (Ramzan) आता है ! तो आसमान के दरवाजे खोल दिए जाते हैं ! जहन्नम के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं ! और शैतानों को कैद कर दिया जाता है ।
( बुरवारी : 255 . 1 )
मेरे प्यारे आका सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम के प्यारे दिवानों ! इस हदीस में इस बात का भी बयान है ! कि शैतानों को रमजान (Ramzan Mubarak) के महीना में कैद कर दिया जाता है ! इस पर सवाल पैदा होता है ! कि जब शैतानों को कैद कर दिया जाता है ! तो फिर क्यों लोग रमज़ान Ramzan के महीने में गुनाह करते है ? इस सवाल के मुतअद्दिद जवाबात दिये गए हैं । अव्वल यह कि बड़े – बड़े शयातीन को कैद कर दिया जाता है ! और छोटे छोटे शैतान खुले फिरते हैं ! जिनकी वजह से लोग गुनाह करते हैं । जैसा कि दुसरी हदीस में इरशाद हुआ ! यानी सरकश और बड़े बड़े शयातीन कैद कर दिए जाते हैं ।
दौमः यह कि गुमराह करने वाला एक खारजी शैतान और एक दाखली शैतान है जिसको और उर्दू में हमज़ाद कहते हैं । खारजी शयातीन को कैद कर दिया जाता है ! दाखली शैतान को कैद नहीं किया जाता है । जिसकी वजह से लोग गुनाहों में मुबतिला रहते हैं ।
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सौमःयह कि शैतान के ग्यारह माह बहकाने और बसाविस का असर इस कद्र रासिख हो जाता है ! कि उसकी एक माह की गैर हाजरी से कोई फर्क नहीं पड़ता । और लोग बदस्तूर बुराई और गुनाह में मुबतिला रहते है ।
चहारूमः बुराई में मशगूल लोगों को कम अज़ कम इस माह में तो यह तस्लीम कर लेना चाहिए कि उनकी गलतकारियों और बे राह रवियों में शैतान के वसवसे से ज्यादा खूद उनकी जात और बुरे इरादों का दखल है । क्योंकि इस माह में जब शयातीन मुकय्यद कर दिए जाते हैं और वह लोग फिर भी बुराइयों और बुरे कामों से बाज़ नहीं आते , हद तो यह है कि बाज़ जगहों पर रात भर जुआ और लहवो – लहब का बाजार गर्म होता है ।
( जैसे की रमजान (Ramzan Mubarak) इसी लिए आया हो ! ) और सहरी के फौरन बाद लोग ख्वाबे गफलत का शिकार होकर नमाज़े फ़ज़्र को भी तर्क कर देते । हैं लिहाजा उनकी बुराई और बुरे कामों के वह खुद जिम्मेदार हैं ।
रहमत,मगफिरत और आग से आज़ादी – Rahmat Maghfirat Or Aag se Azadi
हदीस शरीफ में है कि हुजूर ताजदारे राहते कल्ब व सीना सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया रमजान Ramzan ऐसा महीना है जिसका अव्वल रहमत है , उसके दर्मियान में बख्शिश है और उसके आखिर में आग से आज़ादी है ।
मेरे प्यारे आका सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम के प्यारे दिवानो ! मजकूरा हदीस शरीफ में रमजानुल मुबारक (Ramzan Mubarak) की बरकत और बुजुर्गी का जिक्र किया गया है ! जिससे रमजानुल मुबारक (Ramzan Mubarak) की एहमियत और फजीलत जाहिर होती है ! माहे रमजान (Ramzan Mubarak) में रोजा रखना ! इफतारी करना और करवाना ! कयामुल्लेल करना और दिन के वक्त भूख और प्यास से सब्र व जब्त और हर बुरी चीज़ से परहेज करना ! यह तमाम अफआल वह हैं जो हम गुनाहगार मुसलमानों की बख्शिश और नजात का वसीला है ।
हयाते इंसानी के तीन अदवार और रमज़ानुल मुबारक के तीन अशरे
मेरे प्यारे आका सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम के प्यारे दिवानो । अगरचे इंसान की हयात बेशुमार मराहिल से गुज़र कर इर्तिकाए मराहिल तय करती हुई अपनी इतिहा को पहुंचती है ! लेकिन हयात के तीन दोर काबिले ज़िक्र हैं ।
पहला दौर दुनिया की जिन्दगी है ! जिसका तअल्लुक रूह और जिस्म से वाबस्ता है ! और जिंदगी का यह दौर पैदाइश से लेकर मौत तक है ! इस दौर में हर इंसान अपनी रूह और जिस्मदोनों को पुरसुकून तरीके से माही आसाइश पहुंचाना चाहता है ! और मसाइल व आलाम से नजात चाहता है । –
हयात का दूसरा मरहला मौत से लेकर कयामत तक का है ! जिसे आलमे बर्जख कहा जाता है ! जिंदगी के इस मरहले की हकीकत अल्लाह तआला ही को मालूम है ! सिवाए उसके कि जितना इल्म अल्लाह तआला ने इंसान को दिया है ! सिर्फ इसी हद तक इंसान इस मरहले के बारे में जानता हे !
तीसरा मरहला कयामत के बाद न खत्म होने वाली जिंदगी है ! यह जिंदगी हिसाब व किताब के बाद जज़ा के तोर पर जन्नत की सूरत में या सजा के तारे पर दोजख की सूरत में होगी ।
रोज़ा ऐसी इबादत है कि नबी करीम सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम के इरशाद के मुताबिक जिंदगी के उन तमाम मराहिल में कारआमद साबित होता है रमजान का पहला अशरा रहमत का है जो जिंदगी के खुसूसन पहले मरहले में अशद जरूरी है ।
दूसरा अशरा मगफिरत का है जो जिंदगी के दूसरे मरहले के लिए कारआमद है कि उसकी वजह से कम में राहत मिलेगी और तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है जो जिंदगी के तीसरे मरहले में कारआमद है । तो गोया जिसने रमज़ान के पूरे माह के रोजे रखे उसे जिंदगी के तमाम मराहिला राहत व सुकून मयस्सर आएगा । रब्बे कदीर हमें तौफीक अता फरमाए ।
रमज़ान का चाँद और आँखों की तकलीफ दूर – Ramzan Ka Chand Ankho Ki Taqlif Dur
जो शख्स माहे रमजानुल मुबारक का चांद देख कर हन्द व सना बजा लाए ! और सात मर्तबा सुरए फातिहा पढ़ ले तो उसे महीना भर आँखों में किसी भी किस्म की शिकायत नहीं होगी ।
( नुजहतुल मजालिस ज . न . स . 575 )
फरिश्तों में फ़ख़्र्र – Mahe Ramzan Or Farishto Mein Fakhr
हज़रत अली मुर्तजा रदियल्लाहु तआला अन्हो से मरवी है कि नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि जब तुम महीने के आगाज पर चाँद की दुआ पढ़ लिया करो तो अल्लाह तआला फरिश्तों में इजहारे फख्र फरमाएगा और कहेगा मेरे फरिश्तों ! गवाह रहो मैं ने अपने बंदे को दोजख से आजाद कर दिया ।
( नुजहतुल मजालिसः ज . 1 , स . 575 )
नूर का शहर – Ramadan Mubarak Or Noor Ka Shahar
नबी अकरम नूरे मुजस्सम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जो शख्स माहे रमजानुल मुबारक में इबादत पर इस्तिकामत इख़्तियार करता है अल्लाह तआला उसे हर रकअत पर नूर का एक शहर इनाम देगा ।
बख़्शिश का जिम्मा – Bakhshish Ka Zimma
नबीए कोनेन साहिबे काबा कोसैन सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : जो शख्स माहे रमज़ानुल मुबारक (Ramzan Mubarak) मे अपने वालिदैन की खिदमत अपनी इस्तिताअत के मुताबिक सर अजाम देता है ! अल्लाह तआला उस पर खुसूसी नज़रे रहमत फरमाता है ! और उसकी बख्शिश का मैं जिम्मा लेता हूं ।
और जो औरत माहे रमजानुल मुबारक (Ramzan Mubarak) में अपने खाविंद की रजा जोई में मसरूफ रहती हे ! अल्लाह तआला उसे जन्नत में हज़रत मरयम व हज़रत आसिया की मईयत ( साथ ) अता फरमाएगा ।
( नुजहतुल मजालिसः जि .1 , स . 577 )
रमज़ानुल मुबारक साल का दिल- Ramzanul Mubarak Saal Ka Dil
हुजूर नबी अकरम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : माहे रमजानुल मुबारक (Ramzan Mubarak) साल का दिल है ! जब यह दुरूस्त रहा तो पूरा साल दुरूस्त रहेगा ।
आफात से महफूज़ Aafat Se Mahfooz
किताबुल बरकत में हज़रत मसऊदी रहमतुल्लाह अलैह से मरवी है ! कि जो माहे रमज़ानुल मुबारक (Ramzan Mubarak) की पहली शब सूरए फतह पढ़ता है ! वह साल भर हर किस्म की आफात व बलय्यात से महफूज रहता है ।
अज़ाब से छुटकारा का जरिया
शेरे खुदा मुश्किल कुशा हजरत अली मुर्तजा रदियल्लाहु तआला अन्हो फरमाते हैं कि अगर अल्लाह तआला को उम्मते मुहम्मदिया को अजाब से दो चार करना होता ! तो उसे माहे रमज़ान (Ramzan Mubarak) और सूरए इख्लास कभी अता न फरमाता ।
बाज बुजुर्गाने दीन से मंकूल है कि हजरत जिब्रील अलैहिस्सलाम आसमान वालों के लिए अमान हैं और सैयदे आलम जमीन वालों के लिए और माहे रमज़ानुल मुबारक नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम की उम्मत के लिये अमान है ।
माहे रमज़ान के एहतिराम का इनाम
बुखारा के शहर में एक मजूसी ( आग की पूजा करने वाले ) का लड़का मुसलमानों के बाजार में रमजान के महीने में खाना खा रहाथा , यह देख कर उसके बाप ने अपने लड़के के मुंह पर तमांचा मारा और सख्त नाराज हुआ , लड़के ने कहा : अब्बा जान ! तुम भी तो रमजान में हर रोज़ दिन के वक्त खाते रहते हो ! बाप ने कहा , वाकई में रोजा नहीं रखता और खाना भी खाता हूं , मगर खुफिया तोर पर घर बैठ कर खाता हूं , मुसलमानों के सामने नहीं खाता हूं ! इस माहे मुबारक का एहतराम करताहूँ ।
कुछ अरसे के बाद उस मजूसी का इंतिकाल हो गया तो बुख़ारा के किसी नेक आदमी ने उसे ख्वाब में देखा कि वह जन्नत में टहल रहा है , उन्होंने मजूसी से पूछा तू जन्नत में कैरो दाखिल हो गया ? तू तो मजूसीथा ! उसने कहा , वाकई मैं मजूसी था मगर मौत का वक्त करीब आया तो माहे रमजान के एहतेराम की बरकत से अल्लाह तआला ने मुझे इस्लाम लाने की तौफीक दी और में मुसलमान होकर मरा और यह जन्नत रमज़ान के एहतराम में इस्लाम मिलने पर अल्लाह तआला ने अता फरमाई ।
( नुजहतुल मजालिस : स . 580 )
मेरे प्यारे आका सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम के प्यारे दीवानो ! गोर करो कि एक आतिश परस्त ने माहे रमज़ान का एहतेराम किया ! तो अल्लाह रब्बुल इज्जत ने उसके एवज़ उसे ईमान की दौलते बेबहा से नवाज कर जन्नत अता फरमा दी ! तो हम तो मुसलमान हैं ! अगर हम अय्यामे रमज़ान की कद्र करेंगे ! उसकी हुर्मत को पामाल न करेंगे ! तो जरूर रब्बे कदीर के फज्ल व करम के मुस्तहिक करार पायेंगें । रब्बे कदीर की बारगाह में दुआ है की कद्र करने की तौफीक अता फरमाए ।
माहे रमज़ान की बहुर्मती की सजा-Mahe Ramjan Ki Be-Hurmati Ki Sajaa
कयामत के दिन एक शख्स को ऐसी हालत में लाया जाएगा कि फरिश्ते उसको खूब मार पीट रहे होंगे , रहमते आलम सललल्लाहो अलैहि वसल्लम से वह सहारा तलाश करेगा , आप उनसे दर्याफ्त फरमाएंगे , उसका क्या गुनाह है कि इतना मार रहे हो ? वह कहेंगे उसने माहे रमज़ानुल मुबारक को पाया मगर फिर भी अल्लाह तआला की नाफरमानी पर डटा रहा । हुजूर सिफारिश करना चाहेंगे तो हुक्म होगा , मेरे हबीब सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम इसका दावा तो माहे रमजान ने किया है , आप सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाऐंगें जिसका दावेदार माहे रमजान है मैं उससे बेज़ार हूँ ।
( नुजहतुल मजालिसः स . 580 )
ऐ खालिके अर्ज व समा ! अपने महबूब सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम के सदके ! हमें माहे रमजान का एहतराम करने की तौफीक अता फरमा ! और हर उस काम से बचा जो माहे रमज़ान (Ramzan Mubarak) की बेहुर्मती का सबब बने । आमीन !