Home गौसे आज़म हुजूर गौसे आज़म की पहली तक़रीर

हुजूर गौसे आज़म की पहली तक़रीर

Gous e Azam:-सरवरे आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ओंर गौसे आजम रहमतुल्लाह अलैह –

Gous e Azam

हुजूर गौसे आजम (Gous e Azam) रहमतुल्लाह अलैह  फ़रमाते हैं कि मैंने एक दिन जुहर से कुछ पहले जागते में हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज्यारत की ! तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझसे फरमाया: बेटा!

तुम वअ्ज क्यों नहीं कहते? मैंने अर्ज किया हुजूर ! मैं बग़दाद में बडे बडे फुसहा के सामने बोल नहीँ सकता ! हुजूर  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया अच्छा अपना मुंह खोलो !

चुनांचे मैंने अपना मुंह खोल दिया तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मेरे मुंह में अपना लुआबे दहन सात मर्तबा डाला ! और फ़रमाया: लो ! अब मजमे में बिलाखोफ़ वअ्ज कहना शुरू कर दो !

चुनांचे में नमाज़ जुहर के बाद वअ्ज कहने बैठ गया ! तो लोग खुद ब खुद ही मेरा वअ्ज सुनने के लिये बैठ गये ! यहां तक कि बहुत भीड हो गयी !

इस मजमे में हजरत मौला अली रजिय’ल्लाहु तआला अन्हु भी मेरे सामने तशरीफ़ फरमा नजर आये ! और मुझसे फरमाने लगे: बेटा ! अब वअ्ज क्यो नहीं कहते?

मैंने अर्ज़ किया: हुजूर ! इतने बडे मजमे में बोलने की हिम्मत नहीं पडती ! हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु ने फ़रमाया अच्छा अपना मुंह खोलो ! चुनाचे मैंने अपना मुंह खोला तो हजरत अली ने छ: मर्तबा अपना लुआबे दहन डाला !

मैंने अर्ज़ की हुजूर छ: मर्तबा क्यो ? तो उन्होंने फ़रमाया: हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के अदब की वजह से !वह इसलिये कि हुजूर ने सात मर्तबा लुआबे दहन मुबारक डाला और मैं हुजूर की बराबरी कैंसे कर सकता हूँ ?

यह अदब के खिलाफ़ होता ! हुजूर गौसे आजम (Gous e Azam) फ़रमाते हैं ! फिर मेरे सारे हिजाब उठ गये ! मै खूब वअ्ज कहने लगा ।

(बहजतुल असरार, सफा 25 , फ़तावा हदीसिया-इब्ने  हजर सफा 213 )

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हुजूर गौसे आजम

सबक : हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने विसाल शरीफ़ के बाद भी बदस्तूर जिन्दा हैं ! अपने गुलामों के  पास तशरीफ़ भी ले जाते हैं और नजर वाले खुशनसीब लोग जागते हुए भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ज्यारत करते हैं ! हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने गुलामों की आज भी मदद करते है ! आपका लुआबे दहन भी हजारों भेदों और उलूम का चश्मा है ।

यह भी मालूम हुआ कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के फैज व सदके से सहाबा-ए-किराम अलैहिमुस्सलाम भी जिन्दा हैं ! और अपने गुलामों के पास तशरीफ़ ले जाते हैं !

अहले नजर जागते हुए भी उनकी ज्यारत करते हैं । उनका लुआबे दहन भी सैकडों राजे और उलूम का चश्मा है !फिर जिनकी थूक हजारों जरासीम और बीमारियों को लिये हुए हो वह लोग इन पाक हस्तियों के बराबर कैसे हो सकते हैं ?

यह भी मालूम हुआ कि हुजूर गौसे आज़म (Gous e Azam) रहमतुल्लाह अलैह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु की नस्ल से हैं ! और सय्यद हैं !

यह भी मालूम हुआ कि हुजूर गोसे आजम रहमतुल्लाह अलैह हुजूर सल्लल्लाहु अलैहिवसल्लम और हजरत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु के मंजूरे नज़र हैं ! और हिदायत के लिये उन्ही की तरफ से मामूर हैं ! फिर अगर हुजूर गौसे आज़म (gouse azam) रहमतुल्लाह अलैह से मुहब्बत न होगी ! तो हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और हज़रत अली रजियल्लाहु तआला अन्हु क्योंकर राजी हो सकते हैं ?

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