Home नमाज़ का तरीका Janaze ki Namaz ka Tarika Aur Janaze ki Namaz ki Dua

Janaze ki Namaz ka Tarika Aur Janaze ki Namaz ki Dua

Janaze Ki Namaz ka Tarika:-अस्सलामो अलैकुम  रहमतुल्लाहि व बारकवातोहु  , इस पोस्ट में जनाज़े की नमाज़  ( Janaze Ki Namaz ) का तरीका और जनाज़े की दुआ ( Janaze Ki Dua ) के वारे में बताया गया है ! पूरी पोस्ट पढ़िए आपके बहुत से कन्फूज़न दूर हो जाएंगे !  इंशाअल्लाह !

Janaze ki Namaz ka Tarika Hindi Mein

जनाज़े की नमाज़ की नियत – Janaze Ki Namaz Ki Niyat

नियत की मैने नमाज़े जनाज़ा ( Janaze Ki Namaz ) पढ़ने की ,मय 4 तकबीरो के , सना वास्ते अल्लाह तआला के , दुरूद शरीफ़ वास्ते  रसूलुल्लाह के , दुआ वास्ते इस मय्यत के ( पीछे इस इमाम के ) मुंह मेरा काबे शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहुअक्बर कहते हुए कानो तक हाथ उठाकर नाफ़ के निचे हाथ बाँधना है !

फिर सना पढ़ना है !

*सुबहाना कल्ला हुम्मा व बिहम्दिका व तबारा कस्मुका व त’आला जद्दुका व जल्ला सनाउका वला इलाहा गैरुका*

नॉट- जनाज़े की नमाज़ ( Janaze Ki Namaz ) में सना के अलफ़ाज़ में व जल्ला सनाउका शब्द भी बोलना पढ़ेगा

दूसरी तक़बीर के बाद दुरूद शरीफ़ पढे !

*अल्लाहुम्मा सल्ली अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा सल्लैता आला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम मजिद.

अल्लाहुम्मा बारीक़ अला मुहम्मद व आला आली मुहम्मद कमा बारकता आला इब्राहिम वा आला आली इब्राहिमा इन्नका हमिदुम मजिद* सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम *

जनाज़े की दुआ

तीसरी तक़बीर के बाद अगर मय्यत बालिग मर्द या औरत है, तो यह दुआ पढे !

अल्लाहुम्मग़ फ़िर लि हय्यिना वमय्यितिना वशाहिदिना वग़ाइबिना व सग़ीरिना व कबीरिना व ज़करि ना वउन्साना  अल्लाहुम्म मन अहययतहू मिन्ना फ़ अहयिही अलल इस्लाम 0 वमन् तवफ़्फ़ै तहू मिन्ना फ़ तवफ़्फ़हू अलल ईमान 0  

फिर बगैर हाथ उठाये अल्लाहु अकबर कहे  और दोनों हाथ छोड़ दे ! और पहले दाहिनी तरफ़ ( सीधे कंधे की जानिब  ) फिर बायीं तरफ़ ( उल्टे कंधे की जानिब  )  सलाम फेरे !

अगर मय्यित नाबालिग लड़का हो तो यह दुआ पढे:

अल्लाहुम्मज अल्हु लना फ़रतंव्वज अल्हु लना अजरंव्व ज़ुख़-रंव्वज अल्हु लना शाफ़िअतंव मुशफ़्फ़आ 

अगर मय्यित नाबालिग लड़की की हो तो यह दुआ पढे:ः

अल्लाहुम्मज अल्हा लना फ़रतंव वज अल्हा लना अजरंव व ज़ुख़-रंव वज अल्हा लना शाफ़िअतं व मुशफ़्फ़अह 

यानी –

‘इज अल्हु के जगह पर ‘‘इज अल्हा ‘‘ और शाफ़िअतंव मुशफ़्फ़आ  के जगह  पर ‘‘ शाफ़िअतं व मुशफ़्फ़अह‘

पढ़ना चाहिये ! फिर अल्लाहु अकबर कहकर सलाम फेर देना चाहिये !

मय्यित को कब्र मेँ रखते समय यह पड़े‘‘ बिस्मिल्लाहि ‘वअला सुन्नति ‘रसूलिल्लाहि या फिर यह पढ़े – बिस्मिल्लाहि ‘वअला मिल्लति रसूलिल्लाहि

पहली मर्तबा मिट्टी डालते वक्त

मिन्हा खलक़नाकुम् 

( इसी से हमने तुम को पैदा किया )

दूसरी मर्तबा मिट्टी डालते वक्त

 व फ़ीहा नुईदुकूम 

( और इसी में हम तुम को लौटायेंगे )

तीसरी मर्तबा मिट्टी डालते वक्त

व मिन्हा नुख़रिजुकुम् तारतन् उख़रा 

( और उसी से कियामत के रोज तुम को फिर से  निकाल कर खड़ा करेंगे ) .

( सूरः ताहा-55 )

आम तौर पर कब्रस्तान जाने पर

 अस्सलामु अ़लैकुम् अह्-लद्दियारि मि-नल मुअ्मिनी न वल् मुसलिमी-न  वइन्ना इन् शाअल्लाहु बिकुम् लाहिक़ू-ऩ नस् अलुल्ला-ह लना व-लकुमुल् आफ़ियत

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