Qurbani Ka Tarika- अस्सलामो अलैकुम भाइयो और बहनो इस पोस्ट में हम जानेंगे क़ुर्बानी का तरीका ( Qurbani Ka Tarika ) और क़ुरबानी से रिलेटेड कई सवालों के जवाब जैसे –
- क़ुर्बानी क्या है ?
- कुरबानी किसके लिए होनी चाहिए ?
- फ़जीलत क्या है ?
- नमाज़ और कुरबानी का हूक्म
- कुर्बानी का जानवर केसा हो
- क़ुर्बानी का तरीका – Qurbani Ka Tarika ?
- कुरबानी के गोश्त का क्या करना चाहिए ?
- कुरबानी के बाल सींग और खुर भी नामए आमाल मे
- क़ुर्बानी किस पर वाजिब हैं ?
क़ुरआन और हदीस की रौशनी में देखते है की यह क़ुर्बानी क्या है ? और क़ुर्बानी का तरीका क्या है Qurbani Kya Hai ? Or Qurbani Ka Tarika Kya Hai ?
इसकी हकीकत और फ़जीलत क्या है ? ताकि हमारी कुरबानी वाकई क़ुर्बानी बन सके महज़ एक रस्म बन कर न रह जाए
क़ुर्बानी क्या है ? Qurbani Ka Tarika Kya Hai ?
ज़कात, और फित्रा की तरह क़ुर्बानी भी एक माली इबादत है । (जो मालदारों पर वाजिब है ।) और हज़रत इबराहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत भी है । जो इस उम्मत के लिए (हमेशा) बाकी रखी गई है ।
क़ुर्बानी किसे कहते हैं ? Qurbani Kise Kahte Hai ?
खास जानवर को मख़सूस दिनो और वक़्तों में अल्लाह तआला की रजा के लिए सवाब की नियत से ज़ब्ह करने को कुर्बानी कहते है
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कुरबानी किसके लिए होनी चाहिए ? Qurbani Kiske Liye Hona Chahiye ?
“आप कह दीजिए बेशक मेरी नमाज़ और मेंरी कुरबानी और मेरी जिन्दगी और मेरी मौत सिर्फ अल्लाह तआला के लिए ही है ! और जो तमाम जहानो का परवरदिगार है ! (सूरए अनआम)
इस आयते मुबारका ने वाज़ेह तौर पर बता दिया कि एक मुसलमान की पूरी” जिन्दगी सिर्फ और सिर्फ अल्लाह तआला के लिए ही होती है ! मुसलमानो की हर इबादत सिर्फ उसी जात के लिए होती है जो उसका ख़ालिक़ व मालिक है !
कुरबानी भी जो एक अहम तरीन इबादत हैं ! और जिसके ज़रिए इंसान अपने रब’का तक़र्रूब हासिल करता है !वह भी महज़ रजाए मौला के लिए करनी चाहिए !
इसके अलावा न तो यह कुरबानी किसी बुत या बुजुर्ग के नाम पर हो न ही इसका ‘मकसद लोगों को दिखलाना या शौहरत हो वर्ना कुरबानी का सवाब और मकसद दोनो’ बर्बाद हो जाएंगे !
आज कल रिवाज़ है कि बाज़ मालदार लोग कीमती जानवर ख़रीदते हैं ! और फिर अखबारात व्हाट्सएप्प फेसबुक और सोशल मिडिया पर एहतिमाम से यह खबर और तस्वीर शेयर करते है ! इस दिखावे से हमें बचने की कोशिश करनी चाहिए ! कहीं हमारी क़ुरबानी जाय ना हो जाए !
रब्बे करीम हम सबकी कुरबानी क़ुबूल अता फरमाए !
अल्लाह तआला कुर्बानी क्यों चाहता है
रब्बे करीम अल्लाह तआला को तुम्हारें दिल का तक़वा चाहिए ! अल्लाह तआला को उऩ ( कूरबानियाे ‘) का गाेश्त और खून नही पहुँचता लेकिन उसको तुम्हारे दिल का तक़वा पहूँचता है ! ( सूरए हज )
इस आयत में कुरबानी का अस्ल फलसफा बयान फरमाया यानी जानवर को ज़िबह कर के महज़ गोश्त खाने खिलाने या उसका खुन’ गिराने से तुम अल्लाह की रजा कभी हासिल नही कर सकते ! न यह गाेश्त और खून उठकर उसकी ” बारग़ाह तक पहुंचता है !
उसके यहां तो तुम्हारे दिल का तक़वा और अदब पहूंचता है ! कि केसी खुश दिली और जोशे मुहब्बत के साथ एक कीमती और नफीस चीज़ उसकी इजाज़त से उसके नाम पर कुरबान कर दी ! गोया इस कुरबानी से जाहिर कर दिया कि हम खुद भी तेरी राह मे इसी तरह कुरबान होने के लिए तय्यार है । – माखूज़ अज़ फवाएदे उस्मानी –
नमाज़ और कुरबानी का हूक्म एक साथ – Qurbani Ka Hukm
“बेशक हमने आपको कौसर अता की, पस आप अपने रब के सामने नमाज़ पढ़े ! और ” कुरबानी (Qurbani) करें ! बिला-शुबहा आपका दुश्मन ही बेनिशान होने वाला है !
( सूरए कौसर)
दीने इस्लाम में नमाज़ को जाे कुछ मकाम व मरतबा है उससे हर मुसलमान बखूबी वाकिफ़ है ! यही दीन का सुतून और मोमिन की मेराज है ! यही काफिर और मोमिन के दर्मियान फ़र्क़ करने वाली चीज है !
इसी तरह माली इबादात में कुरबानी का एक खास मकाम है ! क्यों कि अस्ल तो यह था कि अपने जान और माल” की कुरबानी दी जाती ! और बवक़्ते जरुरत हर मुसलमान दीने इस्लाम के लिए यह सब कूछ कुरबान कर देता ! लेकिन आम हालात मे जिलहिज्जह की दसवीं तारीख़ को हज़रत इब्राहीम व इस्माईल अलेहिस्सलाम की यादगार में जानवर जिबह करने को ही काफी करार दे दिया ! इस आयते मुबारका में दोनो’ का हुक्म एक साथ दिया जा रहा है ! जिसेसे कुरबानी की अज़मत का अंदाजा लगाया जा सकता है !
कुरबानी के गोश्त का क्या करना चाहिए ?
‘ ‘ पस जब वह जानवर अपने पहलू पर गिर जाए ( यानी जिबह मुकम्मल हो जाए ) तो उससे खुद भी खाओ और खिलाओ उनको जाो सब्र किए बैठे है ! और उनको मी जो बेकरारी जाहिर करते हैं’ ! ( यानी सवाल करते है ‘) इसी तरह हम ने उन जानवरो’ को तुम्हारें काबू में दे दिया है ताकि तुम शुक्र अदा करो !( सूरए हज )
इस आयत से मालूम हुआ कि जानवरों से खुद खाना जाइज़ और दुरुस्त है ! बल्कि अगर सारा गोश्त खुद ही रख ले तो यह भी जाइज़ है ! लेकिन पसंदीदा नहीं ! उलमा फ़रमाते हैं कि गोश्त के तीन हिस्से करने चाहिए !
एक अपने घर में रख दो ! दूसरा करीबी रिश्तेदारों में तक्रसीम कर-दे ! और तीसरा हिस्सा ” गरीब और कमजोर लोगों ‘कों दे दे ! इस तरह एक कुरबानी से सिलए रहमी और मसाकीन की इमदाद करने जैसै अजीम फवाएद और नेकियां भी समेट सकता है !
आखिर में फ़रमाया कि गोश्त ज़रूर खाओ ! मगर साथ अपने रब का शुक्र अदा करो ! ताकि नेमतों में मजीद इजाफा हो ! फिर यह भी देखो कि कितने ताक़तवर जानवरों को तुम कितनी आसानी से -ज़िबह कर लेते हो !यकीनन यह अल्लाह करीम ही की जात है जिसने तुम्हें उन पर क़ाबू दे दिया है ! इस लिए उसका दिल से खूब शुक्र अदा करो।
कुरबानी के बाल सींग और खुर भी नामए आमाल मे
हज़रत आएशा रज़ियल्लाहु अन्हा से रिवायत है ! कि नबी करीम सल्लललाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया: कुरबानी के दिन ( दस जिलहिज्जह. को ) कोई नेक अमल अल्लाह तआला के नज़दीक कुरबानी का खून बहाने से बढ़ कर महबूब और पसंदीदा नहीं और कयामत के दिन कुरबानी करने वाला अपने जानवर के बालों, सींगों और खूरो को ले आएगा “( और यह चीजे सवाबे अजीम मिलने का ज़रिया बन