Home इस्लामिक महीने Mahe Rajab ki Fazilat ( माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत )

Mahe Rajab ki Fazilat ( माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत )

Mahe Rajab Ki Barkat or fazilat – माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत

रजबुल मुरज्जब ( इस्लामी कैंर्लेडर का’ 7वा’ महीना”) Mahe Rajab बेहद मुहतऱम व मुकर्रम महीना है ! रसूले करीम सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम का इर्शाद है ! कि’ “अल्लाह तआला ‘ ने जब अर्ज़ व समा ( जमीन व आसमान ) पैदा फ़रमाए ! तो महीनो का शुमार मुकर्रर फरमाया !

फिर उनमे से चार हुरमत वाले ( इज्जत बड़ाई वाले ) महीने फरमाए’ है ! जिनमें” से माहे रजब को अल्लाह तआला का अपना महीना होने की वजह से ज्यादा फ़जीलत हासिल है ।

इसके बाद तीन माह तरतीब से बाबरकत ( बरकत वाले ) हैं ! ज़ीक़ अदह जिलहिज्जह और मुहर्रमुलहराम । शअबान के मुतअल्लिक़ फ़रमाया कि मेरा यानि हुजूर सल्लल्लाही अलैहे वसल्लम का महीना है ! और रमजानुल मुबारक अल्लाह के महबूब की उम्मत का महीना है ।

Mahe Rajab ki Fazilat 

रजब के बारे मे हुजूर रिसालत सल्लल्लाहो अलैहि व सल्लम्र का इर्शाद है ! कि अगऱ कोई मुसलमान इस माह में एक रोजा रखे और अल्लाह तआला से आख़िरत की तलब रखे ! तो अल्लाह करीम उसे मकबूलियत अता फ़रमाता है ! और जन्नत नसीब करता है !

और अगर कोई दो रोज़े रखे तो उसे इसी तरह दो हिस्से सवाब मिलेगा ! इसी तरह रोज़े रखने की ज्यादा तादाद के मुताबिक अल्लाह तआला उस बन्दे के हक़ में अपने अफ़जाल व इकराम और अतियात में इजाफा फ़रमाता है ।

गरज कि माहे रजब (mahe rajab) को इस वास्ते से मुतहहर कहा जाता है ! कि जो कोई इसमें रोज़े रखता है ! इबादत गुजारी करता है ! वह गुनाहों से पाक हो जाता है !

हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि माहे रजब (mahe rajab) में एक रोज़ा रखने का सवाब तीस साल के रोज़ो के सवाब के बराबर है !

इस मुक़द्दस महीने मे रोज़ेदार और इबादत गुजार बंदो को अल्लाह तआला बेशुमार बरकते और बुजुर्गी अता फरमाता है । हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इर्शादे गिरामी है – कि बुजुर्गी से मुराद दीदारे इलाही है ।

और यह मरहमत सबसे अफ़ज़ल व अकरम है ! और जब ऐसा शख्स मौत के क़रीब होता है ! तो अल्लाह करीम उस पर मौत की सख्ती आसान फरमा देता है ! और वह कब्र के अजाब से महफूज और हमेशा खुश व खुर्रम रहता है !

 

माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत

हजरत इकरमह – इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते हैँ कि रसूले पाक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि रजब – तो खुदा का महीना है ! और मेरा और मेरी उम्मत का महीना शअबान हे !

हजरत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं कि रसूले करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का फ़रमान है कि “रजब और शअबान के महीनों में मुसलमानों को जरूर रोजे रख़ने चाहिएं !

हजरत अनस ऱजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है ! कि रसूले मकबूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के इर्शाद के मुताबिक माहे रजब ( Mahe Rajab ) हुरमत के लिए, शअबान इबादत के लिए और रमजान शरीफ़ ( Ramadan Sharif ) इनामाते इलाही हासिल करने के लिए है !

माहे रजब ( Mahe Rajab ) मे बन्दे की नेकिया दोगुनी हो जाती हैं ! शअबान मे बुराइया दूर होती हैं ! और रमजान में अल्लाह तआला की करामात का जुहूर होता है !

इस लिहाज से माहे रजब नेकी मे आगे बढने का, शअबान नेकी में मुतवस्तित ( न कम न ज्यादा ) चलने वालों का, और रमजान शरीफ़ ( Ramzan Sharif ) गुनहगारो’ की बख़्शिश का महीना है !

Mahe Rajab Ki Barkat or fazilat – माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत

‘हजरत जुन्नून मिस्री रहमतुल्लाह अलैह फ़रमाते हैं कि – माहे रजब खेती बोने के वास्ते है । शअबान (Shaban) उस खेती को पानी देने के लिए ,और रमजान अपनी कामयाब बोई हुई खेती की फस्ल काटने का महीना है !

कुछ अल्लाह वालो ने फ़रमाया – कि साल तो एक पेड़ की तरह है ! माहे रजब उस पेड़ के पत्ते निकालने का है ! और शअबान (Shaban) में वह पेड़ फलता फूलता है ! फिर रमजान ( Ramzan Sharif ) के महीने में उसमे फल आते हैं।

हजरत इमाम हुसैन रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत हे कि माहे रजब (Mahe Rajab) में तुम रोजे रखो क्यों’कि इस माह के रोजे अल्लाह तआला की बारगाह में तौबा हैँ !

Mahe Rajab Ki Barkat or fazilat – माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत

हजरत शेख़ इमाम हिबतुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु अपने उस्ताद हज़रत मैमून बिन मेहरान रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत करते है ! कि हज़रत अबूजर गिफारी रजियल्लाहु अन्हु ने फ़रमाया कि हुजूर मकबूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इर्शाद है –

कि जो शख्स माहे रजब (Mahe Rajab) के शुरू में रोजे रखता है ! उसने गोया तमाम माह के रोजे रख लिए ! और जो कोई इस माहे मुबारक (Mahe Rajab) में जिस क़दर ज्यादा रोजे रखता है ! उसकी उसी क़दर बदी नेकी में तब्दील ही जाती है !

अक्सर उलमाए दीन और क़ुरआने करीम व हदीसे नबवी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की रू से तमाम साल मे चौदह रातें हैँ कि जिनमे शबे बेदारी करना बडे सवाब का मूजिब है !

यानी मुहर्रम कीं पहली रात, दसवीं मुहर्रम की रात , रजब की पन्दहर्वी रात, रजब की ही सत्ताईसवीं रात , शअबान की पन्द्रहवी रात ,चौदह शअबान की रात ,रमजान की पहली ओर आखिरी ताक रातें ( पहली, तीसरी, पांचवीं, सातवीं, नवीं और 21 वीं 23 वी 25 वी, 27 वी व 29 वीं रातें ) और दोनों ईदो’ की रातें !

इसी तरह साल में यह दिन इबादत गुजारी के लिए बहुत मुबारक हैं ! आशूरए मुहर्रम यानी दस मुहर्रम का दिन ,शअबान की पन्द्रहवीं का दिन, जुमे का दिन, दोनों ईदो का दिन , और जिलहिज्जह के दस दिन ! इनके अलावा माहे रमजानुल मुबारक के मुतअलिक ज्यादा ताकीद’ है !

mahe rajab ki fazilat ( माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत )

अक्सर सहाबा रजियल्लाहु अन्हुम ने हजरत सलमान रजियल्लाहु अन्हु के हवाले से रिवायत की है ! कि हुजूर अकरम सल्लल्लाहौ अलैहि वसल्लम ने माहे रजब का चांद देख कर फ़रमाया – ऐ मुसलमानो । अगर कोई माहे रजब मे (Mahe Rajab) मोमिन या मोमिना’ तीस रकअत नमाज़ पढे और हर रकअत में एक -बार ‘ ‘सूरए फातिहा तीन बार “सूरए इख़लास ‘” ( कुलहुवल्लाह शरीफ़ ) और तीन बार कुल या -अय्युहल काफिरून ’ पढे तो अल्लाह तआला उसके तमाम गुनाह बख़्श देता है !

और उसे इस कदर सवाब अता फरमाता हैं ! कि जिस क़दर एक माह रोज़े रखने वाले को मिलता है ! और ” आइन्दा साल के नमाज़ पढने वालों में उसका नाम पहले दर्ज़े कर लिया जाता है ! उसके आमाल नामे मे इस क़दर सवाब लिखा जाएगा जितना बद्र मे शहीद होने वाले को सवाब है !

और उसके एक हजार दर्जे ज्यादा किए जाएंगे और अगर कोई शख्स तमाम माह रोजा रखे और बाकाएदा नमाज़ पढ़ता रहे ! तो आग से नज़ात अता फरमाता है ! और उसके हक़ में जन्नत वाजिब हो जाती है ! और उसको अल्लाह तबारक व त्आला की हुज़ूरी का शरफ़ भी हासिल होगा !

 

माहे रजब की बरकत और फ़ज़ीलत

हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि मैँने जो कुछ कहा है ! उसकी ख़बर मुझे जिब्रईल अलेहिस्लसाम ने दी है ! और फ़रमाया !अल्लाह का रसूल एक ऐसी अलामत है ! जिसकी वजह से मुश्रिक और मुनाफिक लोगों और तुम्हारे ( यानी नमाज अदा करने वालों ) के बीच फ़र्क होगा !

और तुम्हारी तमीज हो सकेगी ! और क्योंकि जो नमाज़ तुम पढोगे (रजब की नमाज़ ) वह मुनाफिक़ नहीं पढ़ सकता !

हजरत _ अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु के हवाले से रिवायत की गई है ! कि हुजूर नबीए करीम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया ! कि जो शख्स रजब की सत्ताईसवीं तारीख़ को रोजा रखता है ! उसको 50 माह के रोजो का सवाब मिलता है

और यह वह मुक़द्दस दिन है ,कि जब हजरत जिब्रईल अलेहिस्लसाम हुजूर अकरम सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की खिदमत में हाजिर हुए ! ओंर उसी शब हुजूर सल्लल्लाहो अलेहे वसल्लम को बेतुल मुकद्दस का सफ़र कराया गया ! और अल्लाह जल्ल शानुहू ने अपने हबीबे पाक सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को मेराज अता की !

Mahe Rajab Ki Barkat or fazilat 

सत्ताईसवीं रजब को हजरत अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु एतिकाफ की हालत मे सुब्ह करते थे !और जुहर के वक़्त नमाज़ पढने के थोडी देर बाद नफ़्ल पढा करते थे ! जिसमे चार रकअत नमाज़ इस तरह अदा करते कि हर रकअत मेँ एक बार सूरए फातिहा, सूरए फ़लक़, सूरए नास, सूरए अलक़द्र तीन-तीन बार, सूरए इख़लास 50 बार पढ़ते ! और अस्र तक दुआ में मशगूल रह’ करते थे ! और रिवायत है ! कि हुजूर मकबूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का भी यही अमल था !

और हुजूर सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का इर्शाद आली हैं ! कि जो शख्स रजब के महीने मे’ खुलूसे दिल से दुआ मांगे तो अल्लाह तआला उसकी दुआ क़ुबूल फ़रमाता है ! और उसके गुनाह माफ कर देता है ! और जो कोई इस माह मे गुनाह करे ताे उसके -एक गुनाह का दस गुना अजाब होता है !

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