Ramzan ka Chand Dekhne ki Dua in Hindi (रमज़ान का चाँद)

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Ramzan Ka Chand Dekhkar रमज़ान का इस्तकबाल किस तरह करे ? Ramadan Welcome :-

मस्नून है कि 29 शबानुल मुअज्जम को बाद नमाजे मगरिब चाँद देखा जाए ! Ramzan Ka Chand – चाँद नजर आ जाए तो दूसरे दिन से रोजा रखा जाए ! और अगर Ramzan Ka Chand नजर न आए तो दूसरे दिन फिर चाँद देखें ।

अल्लाह तआला ने इरशाद फरमायाः ऐ महबूब ! लोग आपसे चाँद के बारे में पूछते हैं ! आप फरमा दीजिए कि वह लोगों और हज के लिए वक्त की अलामत है । ” लिहाज़ा चाँद ही जरिया हमें रमजान की शुरुआत और इख्तिताम का इल्म हो सकता है तो हमें चाँद देखकर ही रोजा रखना चाहिए ।

जैसा कि नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने रमज़ान का जिक्र करते हुए इरशाद फरमाया : चाँद देखकर रोज़ा रखो और चाँद देख कर इफतार करो , अगर Ramzan Ka Chand रमज़ान का चाँद नज़र न आए तो तीस दिन पूरे करो । ( बुखारी शरीफ : 256 )

Ramzan-Ka-Chand
Ramzan-Ka-Chand-Mubarak-

Ramzan Ka Chand Dekhkar Padhne Wali Dua Hindi Mein

रमज़ान का चांद देखकर पढ़ने वाली दुआ
बिस्मिल्लाह हिर्रमान निर्रहीम
अल्लाहुम्मा अहिल्लहु बिल युमनि वल ईमानि वस सलामति वल इस्लामि वत्ताफ़ीकि
लिमा तुहिब्बु व तरदा रब्बी व रब्बु कल्लाह

 

ऐ अल्लाह ! हम पर यह चाँद अम्न व ईमान और सलामती व इस्लाम के साथ गुज़ार ! और उस चीज़ की तौफीक के साथ जो तुझ को पसंद हो ! और जिस पर तू राजी हो ! मेरा रब और तेरा रब अल्लाह है ।

रोज़ा कब फर्ज़ हुआ ? Roza Kab Farz Hua

मेरे प्यारे आका सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम के प्यारे दीवानो | रोजा एलाने नबुव्वत के पंद्रहवी साल यानी दस शव्वाल 2 हि . में फर्ज हुआ । अल्लाह तबारक व तआला का फरमान है ! ऐ ईमान वालो ! तुम पर रोज़े फर्ज किए गए ! जैसे कि अगलों पर फर्ज हुए ! कि कहीं तुम्हें परहेज़गारी मिले ।

अल्लाह तआला ने इस आयत में बतौर खास जिक्र फरमाया ! कि यह इबादत सिर्फ तुम ही पर फर्ज नहीं की जा रही है ! बल्कि तुमसे पहले लोगों पर भी फर्ज हो चुकी है ।
( सूर : बकर 2 , आयत 183 )

चुनाचे तफ्सीरे कबीर व तफसीरे अहमदी में है ! कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर हजरत ईसा अलैहिस्सलाम तक हर उम्मत पर रोजे फर्ज रहे ।

चुनान्चे हज़रत आदम अलैहिस्सलाम पर हर क़मरी महीने की तेरहवी , चौदहवी और पंद्रहवीं तारीख के रोज़े और हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की कोम पर आशूरा का रोज़ा फर्ज रहा । बाज रिवायतों में है कि सबसे पहले हजरत नूह अलैहिस्सलाम ने रोजे रखे ।

सहरी और इफ्तारी सहर क्या है ?

सहर का माअना है ” पोशीदगी ” जादू और फेफड़े को इसी लिए सहर कहते हैं ! कि वह छुपे होते हैं ! सुब्ह सादिक को भी सहर कहने की यही वजह है ! कि उस वक्त की रोशनी रात की तारीकी में छुपी होती है ।

Ramzan Ka Chand वक्ते सहर गीरिया व जारी

अल्लाह तबारक व तआला ने कलाम मजीद में इरशाद फरमाया ! और पिछले पहर माफी मांगने वाले । बाज़ मुफस्सिरीन ने फरमाया ! कि इस आयत से नमाज़े तहज्जुद पढ़ने वाले मुराद है ! और बाज के नजदीक इससे वह लोग 5 मुराद है ! जो सुबह उठ कर इस्तिगफार पढ़ें !

चूंकि उस यक्त दुनियावी शोर कम होता है ! दिल को सुकून होता है ! रहमते इलाही का नुजूल होता है । इसलिए उस वक्त तौबा व इस्तिगफार , दुआ वगेरा बेहतर है ।

सहर के वक्त तौबा व अस्तगफार करना अल्लाह के बरगुजीदा बंदों की आदते करीमा रही है । रोजाना की मस्रूफियतों की वजह से हमें सहर के वक्त उठने का मौका नहीं मिलता ! कि हम उस वक्त बारगाहे समदिय्यत में इरितगफार करें !

लेकिन माहे रमजानुल मुबारक में रोजाना सहरी के लिए हम बेदार होते हैं ! तो हमें चाहिए कि कम अज कम दो रकअत नफिल अदा कर के बारगाहे रब्बुल इज्जत में सर बसजूद हो जाएं ! और इस्तिगफार करके सहर के वक्त मगफिरत तलब करने वालों में शामिल हो जाएं ।

रमजान मुबारक में तहज्जुद की नमाज़ के बारे में जाने

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