Roza Rakhne ke Fayde in Hindi (रोज़ा रखने के फायदे)

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रमजान में रोज़ा रखने के फायदे-Ramzan Me Roza Rakhne Ke Fayde

Roza Rakhne ke Fayde:- अल्लाह तआला अलीम व हकीम है ! इसके हर काम और हर हुक्म में कोई न कोई हिकमत ज़रूर शामिल होती है ! यह और बात है ! कि इंसान का जहन उसको न समझ सके ! मगर उसका कोई भी हुक्म हिकमत से खाली नहीं है !उसने हमें रोज़ा (Roza) रखने का हुक्म फरमाया !

बजाहिर इसमें कोई फायदा नजर नहीं आ रहा है ! लेकिन इसमें जरूर फायदे हैं ! जैसा कि मुफरसीरीने किराम ने बयान फरमाया है :

रोज़ा के फवाइद

1 . अल्लाह तबारक व तआला ने रोजे (Roza) का एक फायदा तकवा बयान फरमाया है ! ऐ ईमान वालो ! तुम पर रोजे (Roza) फर्ज किए गए ! जैसा कि तुम से अगलों पर फर्ज किए गए थे ! इस उम्मीद पर कि तुम्हें परहेजगारी मिले ।

हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है ! कि रसूलुल्लाह सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने तीन बार सीने की तरफ इशारा करके फरमाया तकवा यहाँ है ।

तकवा दिल की उस कैफियत का नाम है ! जिसके हुसूल के बाद इसान गुनाह करने से डरता है ! और खौफे इलाही की वजह से गुनाह से झिजक महसूस करता है !

इंसान के दिल में गुनाहों की अकसर ख्वाहिशात हैवानी कुव्वत की ज्यादती से पैदा होती है ! रोजा (Roza) रखने से हेवानी कुव्वत कम हो जाती है ! यही वजह है कि जो नौजवान माली मजबूरियों की वजह से निकाह नहीं कर सकते ! और साथ ही नफसानी स्वाहिशात पर काबू भी नहीं रखते ।

उनका इलाज रसुलुल्लाह सल – लल्लाहो अलैहि । वसल्लम ने रोज़ा बताया है । और फरमाया है । कि शहवत को तोड़ने और कम करने के लिए रोज़ा (Roza) बेहतरिन चीज है ।

Ramzan Me Roza Rakhne Ke Fayde

2 . जिस तरह हर चीज अपने जिद से पहचानी जाती है ! इसी तरह खाने पीने की कद्र भी रोज़ा (Roza) रखने से होती है ।  शिकम सैरहो कर खाना खाने वाले अमीरों को रोज़ा (Roza) रखने से यह पता चलता है ! कि जब चंद घण्टों की इख्तियारी भूख की यह कैफियत है । तो जो गरीब हैं उनकी हफों की इज़तिरारी भूख का क्या आलम होगा ?

लिहाजा रोजा (Roza) इसलिए फर्ज किया गया है ! कि साहिवे इस्तिताअत मुसलमानों को गैर मुसततीअ इंसानों की भूख और प्यास का अंदाजा हो सके ! और वह उनकी इमदाद व इआनत पर आमदा हो सकें ।

3 . गरीब और फाका कश लोग सारा साल भूख और प्यास में गुजारते है ! अल्लाह तआला ने उनकी मुशादेहत कायम करने के लिए एक माह सारे मुसलमानों पर भूख और प्यास की कैफियत तारी कर दी ।

4 . अल्लाह तआला ने इंसानों को बेशुमार नेअमतों से नवाज़ा है ! इन नेअमतों में से खाना । पानी और बीवी यह ऐसी नेअमतें हैं । जो इंसानों की रोजाना की ज़रूरतें हैं ।

अल्लाह तआला इन्हीं नेअमतों के ज़रिये मुसलमानों की आजमाइश करना चाहता है ! कि कितने लोग अल्लाह की इताअत में चंद साअत इन नेअमतों के इस्तेमाल से हाथ रोक कर अल्लाह की बंदगी ! और अल्लाह की महब्बत में सारी चीजे कुर्बान करने का जजवा – ए – सादिक रखते हैं ।

रोज़ा साइन्स की नज़र में Roza In Scince

Roza Rakhne Ke Fayde Batate Hue हकीम मुहम्मद तारिक महमूद चुगताई अपनी तस्नीफ ” सुन्नते नबवी और जदीद साईन्स ‘ ‘ में रकमतराज़ है ! प्रोफेसर मोर पार्ड ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की पहचान है ! उन्होंने अपना वाकिआ बयान किया ! कि मैंने इस्लामी उलूम का मुताला किया ।

और रोजे (Roza) के बाव पर पहुंचा ! तो चौक पड़ा । कि इस्लाम ने अपने मानने वालों के लिए कितना अजीम फारमुला दिया है । अगर इस्लाम अपने मानने वालों को और कुछ न देता ! सिर्फ रोजे (Roza) का फारमुला ही देता । तो फिर भी इससे बढ़कर उनके पास और कोई नेअमत न होती ।

मैंने सोचा कि इसको आजमाना चाहिए ! फिर मैंने रोजे मुसलमानों के तर्ज पर रखना शुरू कर दिए ! में अरराए – दराज से मेअद के वरम ” Stomatch Inflammation ” में मुबतिला था ! कुछ दिनों के बाद ही मैंने महसूस किया । कि इसमें कमी वाकेअश हो गई है ! मैंने रोज़ों (Roza) की मश्क जारी रखी ।

फिर मैंने जिस्म में कुछ और तबदीली भी मेहसूस की । और कुछ अरसा बाद मैंने अपने जिस्म को नार्मल पाया । हत्ता कि मैंने एक माह के बाद अपने अंदर इंकिलाबी तबदीली महसूस की ।

Roza Rakhne ke Fayde  पॉप एफ . गाल की नजर में

यह हालैंड का बड़ा पादरी गुजरा है ! उसने रोजे (Roza) के बारे में अपने तजुर्बात बयान किए हैं । मुलाहिजा हो ।

मैं अपने रूहानी पैरोकारों को हर माह तीन रोजे (Roza) रखने की तलकीन करता हूँ ! मैंने इस तरीका – ए – कार के जरिया जिस्मानी और वजनी हम आहंगी महसूस की ।

मेरे RI मरीज़ मुझ पर मुसलसल जोर देते हैं ! कि मैं उन्हें कुछ और तरीका बताउं। लेकिन मैंने यह उसूल वजेअ कर लिया । कि इन में वह मरीज जो लाइलाज हैं ! उनको तीन योम नहीं बल्कि एक माह तक रोजे (Roza) रखवाए जाएँ ।( ऐजन )

रोज़ा के फजाईल अहादीस की रोशनी में मुश्क से ज़्यादा खुश्बुदार

हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है । कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : कसम है । उस जात की जिसके कब्ज – ए – कुदरत में मेरी जान है । रोज़ादार के मुँह की बू अल्लाह के नजदीक मुश्क से ज्यादा बेहतर है । ( बुखारी शरीफ )

 

में ही इसका बदला दूगा

हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है । कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद * फरमाया : अल्लाह तबारक व तआला फरमाता है । रोजे मेरे लिए है । और मैं ही इनका बदला दूंगा । और दूसरी नेकियों का अजर दस गुनाह कर दूंगा ।

नमाज़ हज व ज़कात यह इबादतें भी बंदा अल्लाह ही के लिए करता है । लेकिन इन आमाल की जजा हुसूले रज़ाए इलाही का जरिया तो है । लेकिन मौला का हुसूल सिर्फ रोजे की जजा में है । आखिर ऐसा क्यों ?

इसकी चंद वजहें हैं :

1 . बंदा जब नमाज़ पढ़ता है । तो उसकी अदायगीए सलात को लोग देखते हैं । हज करता है । तो उसके अरकान की अदायगी को लोग देखते हैं । जकात देता है । तो उससे भी लोग बाखबर होते है ।

लेकिन रोज़ा एक ऐसी इबादत है । कि उसका इल्म रोज़ादार और परवरदिगार के अलावा किसी और को नहीं होता । बंदा वक्ते सेहर घर वालों के साथ सहरी कर भी ले । लेकिन लोगों की नजरों से ओझल होकर । दिन के उजाले में अगर खा ले तो किसी को उसकी क्या खबर ?

लेकिन बंदा अपने मौला की खुशी की खातिर और उसके खौफ से न छुप कर खाता है । और न अपनी पियास को बुझाने की कोशिश करता है । बल्कि दामने सब्र को थाम कर अपने मोला की रज़ा की खातिर ख्वाहिशाते नफ्स को पूरी नहीं करता ।

तो अल्लाह तआला को बंदे का यह अमल इतना पसंद आता है । कि रब जजा और सिला में खूद अपनी ज़ात को पेश फरमा देता है । इसलिए कि रोज़ा में राई के दाने के बराबर भी रिया का दखल नहीं होता ।  और अल्लाह की बारगाह में वही इबादत काबिले कुबूल है जो रिया से पाक हो ।

रोज़ा के फवाइद

2 . इस्तगना अल्लाह तआला की सिफत है । और बंदा रोज़ा रख कर इस्तगना की सिफत को अपनाता है । तो वह एक गुना सिफ़ते खुदावंदी का मजहर हो जाता है ।

3 . बातिल खुदाओं की इबादत कयाम , रूकु , सुजूद , तवाफ , नज़र व नियाज़ ! और उनकी खातिर लड़ाई भी की गई । लेकिन किसी बातिल खुदा के लिए कभी रोज़ा नहीं रखा गया । इसलिए अल्लाह तआला ने फरमाया कि ” रोज़ा खूसुसन मेरे लिए है ।

4 . कयामत के दिन दीगर इबादात लोगों के हक में : हकदारों को दे दी जायेंगें । लेकिन रोज़ा किसी को नहीं दिया जाएगा । जैसा कि एक हदीस कुदसी में है । कि अल्लाह तआला फरमाता है ।

बनी आदम का हर अमल उसके गुनाहों का कफ्फारा बन जाता है ! सिवाए रोज़ा के , रोज़ा मेरे लिए है ! और मै उसका बदला दूंगा ।

 मकअदे सिदक़ में

गमख्वारे उम्मत नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया : जब फरिश्ता रोज़ा लेकर बारगाहे इलाही में हाज़िर होता है । तो अल्लाह तआला रोजे से मुखातिब होकर फरमाता है ! क्या मेरे बंदे ने तेरी तकरीम व ताजीम की ?

रोज़ा अर्ज करता है ! ईलाही !  इसने मुझे अपने नफ़्स के निहायत ही आला मुकाम में रखा । मुझे नमाज़ व तरावीह से राहत पहुंचाई । और मेरी खिदमत के लिए तमाम दिन कमर बरता रहा ।

अपनी निगाह को हराम से बचाया । कान को बातिल की आवाज़ से बाज़ रखा । तो अल्लाह तआला फरमाता है ।  हम उसे मकअदे सिदक में उतार कर उसकी इज्जत व कद्र अफजाई करेगें ।

बेहसाब किताब जन्नतम

हजरत कअब रदियल्लाहो तआला अन्हो फरमाते हैं । कि जो शख्स रमज़ान शरीफ के रोजे पूरे करे ! और उसकी नियत यह भी हो कि रमज़ान के बाद भी गुनाहों से वचता रहूँगा । वह बगैर हिसाब व किताब और बगैर सवाल व जवाब के जन्नत में दाखिल होगा ।

 

रोज़ादार कहाँ है ? 

हजरत सहल रदियल्लाहो तआला अन्हो ने नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम से रिवायत की है ! कि , आपने फरमाया जन्नत का एक दरवाजा जिसे रय्यान ” कहा जाता है । उससे सिर्फ रोजेदार दाखिल होंगे । इनके सिवा कोई और दाखिल न होगा !

कयामत के दिन निदा दी जाएगी ! कि रोजेदार कहाँ है ? तो वह आएंगे ! और जब दाखिल हो जाएंगे तो दरवाजा बंद हो जाएगा ! और फिर इससे कोई दूसरा दाखिल न हो सकेगा !

( बुखारी जि . 1 . सं . 254 ) ,

पूरे साल रोजे की तमन्ना

नबी करीम सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया । अगर अल्लाह तआला के बंदे रमजान की फजीलत जान लें । तो मेरी उम्मत तमाम साल रोज़ा से रहने की ख्वाहिशमंद होती । ( बहकी )

रोजे ढाल हैं

हजरत अबू हुरैरा रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है !  कि आकाए कौनैन सल – लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया ! यानी रोज़ा ढाल है । ( मुस्लिम स . 363 )

मुहद्दिसीन किराम ने इस हदीस की वज़ाहत करते हुए फरमाया है ।

1 . रोजेदार के सामने जब किसी गुनाह का मुहरिक आता है !  तो रोज़ा उसके लिए ढाल बन जाता है । और वह इस गुनाह से रूक जाता है ।

2 . जहन्नम की आग के लिए रोजा ढाल बन जाएगा । और रोज़ादार की मगफिरत करा देगा ।

3 . रोज़ा के सबब से इसान अपने नफ्स के शर से मेहफूज़ रहता है । और अपने नफ्स और बदन को गुनाहों से बचाता है । इसलिए फरमाया गया रोज़ा ढाल है ।

सत्तर साल की मुसाफत पर

हजरत अबू सईद खुदरी रदियल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है । वह कहते हैं कि रसूलुल्लाह सल लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया ! जो शख्स भी एक दिन अल्लाह तआला की राह में रोजा रखेगा । अल्लाह तआला जहन्नम की आग को उसके चेहरे से सत्तर साल की मुसाफत तक दूर रखेगा ।

( मुस्लिम रा . 361 )

 

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