गौसे आज़म और डाकूओ का सरदार:-हुजूर गौसे आज़म र.अ. ( Hujoor Abdul Kadir Jilani R. A.) अभी बच्चे ही थे कि आपको इल्म का और मकबूलाने हक की सोहबत का शौक पैदा हुआ ! आपने अपनी वालिदा से अर्ज किया कि अम्मी जान ! मुझे इजाजत दीजिये ताकि मै बग़दाद जाकर इल्मे दीन हासिल करूं !
वालिदा ने फ़रमाया: बेटा ! जाओं इजाज़त है ! फिर चालीस दीनार लेकर हुजूर गौसे आज़म र.अ. ( Hujoor Abdul Kadir Jilani R. A.)को दिये कि लो ! यह ख़र्च के लिये साथ लेते जाओं !
हुजूर गोसे आज़म र.अ. ( Hujoor Abdul Kadir Jilani R. A.) ने वह दीनार ले लिये और एक बटुए में सीकर कमर के साथ बांध दिये ! बग़दाद जाने के लिये तैयार हो गये !
वालिदा ने रुखसत करते वक्त इरशाद फरमाया कि बेटा ! हमेशा सच बोलना ! और झूठ से हमेशा किनारा कश रहना ! हुजूर गौसे आज़म र.अ. ( Hujoor Abdul Kadir Jilani Radiyallahu Anhu ) वालिदा से रुखसत पाकर एक काफिले के हमराह बग़दाद को चल दिये !
काफिला एक जंगल में पहुंचा तो साठ घुडसवार डाकुओं ने इस काफिले पर हमला कर दिया ! काफिले को लूटना शुरू कर दिया ! एक डाकू हुजूर गोसे आजम र.अ. के पास भी आया और कहा ओ फकीर लड़के ! बता तेरे पास भी कुछ है ?
हुजूर गौसे आज़म र.अ. ( Hujoor Abdul Kadir Jilani R. A. ) ने फ़रमाया हां ! मेरे पास चालीस दीनार हैं ! डाकू ने पूछा कहां है ? फरमाया यह कमर में बंधे हैं ! डाकू ने इस बात को मजाक समझा और चला गया !
गौसे आज़म और डाकूओ का सरदार
फिर दूसरा डाकू आया और उसने भी आपसे यही सवाल किया !और आपने उसे भी यही जवाब दिया ! वह भी मजाक समझकर चला गया ! फिर तीसरा डाकू आया और उससे भी यही सवाल व जवाब हुआ !
इसी तरह बहुत से डाकुओं ने आपसे यही सवाल व जवाब किया ! तो आपने सभी से यही फरमाया कि हां ! मेरे पास चालीस दीनार हैं !
डाकूओं को कुछ शक गुजरा तो वह आपको पकडकर अपने सरदार के पास ले गये ! डाकुओं के सरदार ने भी आपसे यही सवाल किया कि ! क्यो ऐ फकीर लड़के ! तुम्हारे पास भी कुछ है ? आपने फरमाया कि हां हैं !
सरदार ने पूछा कि क्या है ? फ़रमाया: चालीस दीनार ! सरदार ने पूछा कि कहां हैं ? फ़रमाया कमर में बधे हैं ! सरदार ने आगे बढकर तलाशी ली तो वाकई चालीस दीनार निकल आये !
डाकूओं का सरदार बडा हैरान हुआ ! कि इस लड़के ने अपना माल बताया ! जबकि डाकूआँ से माल छुपाया जाता है ! चुनांचे डाकूओं के सरदार ने बडे तअजज़ुब के साथ हुजूर गौसे आज़म र.अ. ( Hujoor Abdul Kadir Jilani R.A.) से पूछा कि लड़के तुमने यह माल हमसे छुपाया क्यों नहीं ? साफ़ साफ़ बता क्यो दिया ?
आपने फ़रमाया : मेरी वालदा ने मुझसे सच बोलने का वायदा किया था ! इसलिये मैंने सच ही बोला ! सच ही बोलता रहूंगा ! ताकि वालिदा के साथ वायदा शिकनी न हो जाये !
शेख अब्दुल कादीर जिलानी के बचपन का किस्सा
डाकूओं के सरदार ने यह बात सुनी ! तो चीख़ मारकर रोने लगे ! और कहा कि अफ़सोस ! यह लडका तो अपनी वालिदा के साथ किये गये वायदे का इतना ख्याल रखे ! और मैं जो अपने रब से वायदा करके आया हूं ! आज तक उसे निबाह न सका !
ऐ लड़के ! इधर ला हाथ ! में तेरे हाथ पर आइंदा के लिये तौबा करता हूं ! यह कहकर उसने सच्चे दिल से तौबा की ! और फिर अपने मातेहत डाकूओं से कहा कि जाओं भाइ ! मेरे साथ अब तुम्हारा कोई वास्ता नहीं !
उन डाकूओं ने जवाब दिया कि आप हमारे सरदार ही रहेंगे ! वह इस तरह कि हम सब भी इस बुरे काम से तौबा करते हैं ! तौबा करने वालों में आप ही हमारे सरदार हैं !
चुनांचे उन सबने भी सच्चे दिल से तौबा की और लूटा हुआ माल वापस करके आइंदा अच्छी ओंर शरई जिन्दगी गुजारने लगे !
(बजहतुल-असरार, सफा 57 )
सबक: अल्लाह वाले कभी झूठ नहीं बोलते ! उनकी इस सदाकत से गुमराह लोग राह पाते हैं ! यह भी मालूम हुआ कि हुजूर गोसे आजम र.अ. ( Hujoor Abdul Kadir Jilani R. A.) बचपन ही से गुमराहों के लिये हादी और मुरशिदे कामिल थे !
ये भी पढ़े – हुजूर गौसे पाक की चाँद करामाते